Saturday, 4 January 2020

बुड्ढा होगा तेरा बाप

INTRODUCTION & BENEFITS:--

"इंक़ेलाब ज़िंदाबाद" 


3 idiots फिल्म किस किस ने देखी  है? उसमें आमिर खान था, याद है? क्या नाम था उसका उस फिल्म में?

"रेंचो". 


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इंक़ेलाब का मतलब क्या है? क्रांति. मतलब बदलाव. मतलब उथल-पुथल. लेकिन पॉजिटिव. कुछ बेहतरी के लिए. तो मेरी रिक्वेस्ट है आप सब से की अगले पंद्रह मिनट आप पूरी तरह से अटेंटिव हो कर मेरी बात सुनें. आधे-अधूरे मन से नहीं, पूरे मन से सुनें. अपने फोन बंद करके सुनें. बिना पड़ोसी से बात किये सुनें. बिना यह सोचें सुनें कि  मैं कौन हूँ? बस इस बात पर ध्यान दें कि मैं क्या कह रहा हूँ. 


क्या पॉजिटिव इंक़ेलाब हो सकता है मेरी बात पंद्रह मिनट भर सुनने से, एक ऐसे ज़माने में जब आप सब के पास दुनिया भर की इनफार्मेशन मुट्ठी में है?

इंक़ेलाब यह हो सकता है कि आपकी उम्र कोई दस-बीस-तीस साल बढ़ जाए. इंक़ेलाब यह हो सकता है कि  आपकी हेल्थ में इज़ाफ़ा हो जाए, रोग से लड़ने की ताकत बढ़ जाए. 

तो शुरू करता हूँ STORIES:--

1. FIRST STORY:--जॉर्ज बर्नार्ड शॉ.अंग्रेज़ी के साहित्यकार थे. जाने -माने. स्कूलों में इनके लेख पढ़ाये जाते हैं. ये लंदन रहते थे. जब ये कोई साठ साल की उम्र के आस-पास पहुंचे तो इन्होने अपना बोरिया-बिस्तर लंदन से समेट  लिया. बोले अब नहीं रहना यहाँ. दोस्त-रिश्तेदार सब परेशान. क्यों नहीं रहना लंदन में? बोले नहीं, अब कतई नहीं रहना और सच में लंदन छोड़ दिया. और निकल पड़े नया ठिकाना खोजने  .... भटकते रहे गाँव-गाँव शहर-शहर. फिर एक कब्रिस्तान से गुज़र रहे थे तो एक कब्र पर लिखी इबारत पढ़ ठिठक गए. लिखा था, "यहाँ वो शख़्स  दफन  है जो सौ साल की कम उम्र में मर गया." बस. अब उन्होंने आगे कहीं न जाने की ठान ली और उसी गाँव में रहना स्वीकार  किया, जिस गाँव का वो कब्रिस्तान था. उनसे पूछा गया कि पूरी दुनिया छोड़, लन्दन छोड़ आप ने यहाँ क्यों ठिकाना बनाया? "

उनका जवाब था, "अगर मैं लन्दन रहता तो मैं जल्द ही बीमार पड़ जाता-मर जाता.. चूँकि मेरे इर्द-गिर्द मेरी उम्र के लोग लोग बीमार रहने लगे थे... मरते जा रहे  थे. दिन में दस बार मुझे यह याद दिलाया जाता था कि  मैं बूढ़ा  हो चुका हूँ, कमज़ोर हो चुका  हूँ. मुझे यह नहीं करना चाहिए, मुझे वह नहीं करना चाहिए. ऐसे माहौल में मैं कितने दिन स्वस्थ रहता? कितने दिन और ज़िंदा रहता? यहाँ देखो. यहाँ तो सौ साल के आदमी को भी कम उम्र समझा जाता है. यहाँ तो हर कोई मुझे जवान समझता है. मेरी उम्र के लोग नाचते फिरते हैं यहाँ."

और वो वहीं रहे और तकरीबन सौ साल जीए. स्वस्थ जीए. 

2. दूसरी STORY :-- फौजा सिंह. सिख हैं, इंग्लैंड में रहते हैं,  अपनी उम्र के ग्रुप में मैराथन चैंपियन रहे हैं, आज भी खूब दौड़ते हैं,  Adidas की मॉडलिंग करते देखा है मैंने इनको ..लोग प्यार से टरबंड टॉरनेडो ( पगड़ी वाला तूफान ) कहते हैं.....

पांच साल की उम्र तक चल नहीं पाए..टाँगे बहुत कमज़ोर थी....बच्चे छेड़ते थे.....छेड़ थी "डंडा" .  और ये कोई बचपन से ही नहीं दौड़ते थे. कोई पचास की उम्र के बाद ही इन्होने दौड़ना शुरू किया था. 

3. तीसरी STORY:-- MDH  के महाशय जी. इंटरनेट पर अक्सर लोग उनके बुढ़ापे का मज़ाक उड़ाते थे. कहते थे  कि  वो तो यमराज से अमर होने का वरदान लेकर आये हैं. 

मज़ाक उड़ाना चाहिए क्या? प्रेरणा लेनी चाहिए. 

DEDUCTIONS FROM THE STORIES:---- 

क्या साबित करना चाहता हूँ मैं? मैं साबित यह करना चाहता हूँ  फौजा सिंह की कहानी से, जॉर्ज की कहानी से, महाशय जी की कहानी से कि हमारा स्वास्थय, हमारी उम्र  हमारी सोच पर निर्भर करती है.हमारी मौत कब होगी यह तक हमारी सोच पर निर्भर करता है और हमारी सोच सामाजिक सम्मोहन पर निर्भर करती है.  समाज तय कर देता है. आपकी उम्र के साथ आपका  बुढ़ापा. बुढ़ापे के साथ रोग. उसके बाद एक निश्चित उम्र तक पहुँचते-पहुँचते मौत. 

हम अंग्रेजी बोलने में फख्र महसूस करते हैं. करना चाहिए. कोई बुराई नहीं लेकिन उनकी हर बुराई हमने नहीं खरीदनी. अंग्रेजी में  छह साल के बच्चे को भी कहते हैं, He is six years old. ध्यान दीजिये छह साल का बूढ़ा  ....  मतलब छह साल का बच्चा नहीं.....  छह साल का जवान नहीं   ........  छह साल का बूढा. मतलब सोच ही यह है कि  इंसान पैदा होते ही बूढ़ा  होना शुरू हो जाता है. भाड़ में गया बचपना. भाड़ में गयी जवानी. भाड़ में गयी मिडिल ऐज.... सीधा बुढ़ापा. पैदा  डायरेक्ट फ्लाइट बुढ़ापे में लैंड करती है. ऐसी सोच में जीएंगे तो कैसे यौवन आएगा, कैसे स्वस्थ  रहेंगे ?

तो आप क्या करें. जॉर्ज की तरह शहर छोड़ दें? वो प्रैक्टिकल नहीं है. सबके लिए सम्भव नहीं है. और सब ऐसे गाँव पहुँच गए तो उस गाँव को भी अपने जैसा बना देंगे. फिर हो सकता है उस गाँव के लोग इनके सामूहिक सम्मोहन के तले दब जायें.

तो क्या करें? 

CONCLUSIONS:-   आप बस यह जो मैंने कहा इसे जज़्ब कर लें. दिन रात. मेरी बात को दोहराते चले जाएँ. खुद को याद दिलाते चले जाएँ कि नहीं बीमार होना है, नहीं बूढ़े होना है, नहीं मरना है. आपको क्या लगता है कि फौजा सिंह ने, महाशय जी ने  यह सब बकवास नहीं सुनी होगे कि उम्र के साथ व्यक्ति यह नहीं कर सकता, वह नहीं कर सकता.कमज़ोर होता जाता है, मौत के करीब आ जाता है......सब सुना होगा, लेकिन इनकार कर दिया

आप ढीठ हो जाएँ कि नहीं मरना आप लम्बा जी जाएंगे. आप ढीठ हो जाएँ कि नहीं बीमार होना है  आपके स्वस्थ रहने  की संभावना बढ़ जायेगी.  इसे कहते हैं माइंड  ओवर मैटर.   मन की ताकत. मन का पीछा करता है तन. मन मज़बूत तो तन मज़बूत हो ही जाएगा. 

कोई भी उम्र हो आपकी, खिले-खिले चटक रंग पहनें. खेलें-कूदें.. पार्क  में झूला झूलें....स्टापू खेलें ....गिल्ली डंडा खेलें  .... खुद को कभी इस  विश्वास में मत डालें कि आप बूढ़े हो गए हैं. जिस  दिन आपने सामाजिक सम्मोहन ओढ़ लिया कि  अब आप बूढ़े हो चुके हैं. उस दिन गई भैंस पानी में. उस दिन आप बूढ़े हो गए. आपका  हमारा जीना-मरना सब सामाजिक सम्मोहन का नतीजा है. इस  सम्मोहन को तोड़ दें.  

इस advertisement, इस सम्मोहन, सामाजिक सम्मोहन के फेर में न आएं कि  इंसान कितनी उम्र में बूढ़ा  होता है, कितनी उम्र में  बीमार रहने लगता है. On average कितनी उम्र में मरता है. आप ने बहुत पुरानी  वह मशहूरी शायद  देखी हो, "साठ साल के बुड्ढे या साठ साल के जवान".  तो यह किसी झंडू च्यवनप्राश के सेवन पर बहुत कम निर्भर करता है आपकी सोच पर बहुत ज़्यादा निर्भर करता है तो सोच बदलिए, आपका Life Span  बदल जाएगा. आपका स्वास्थ्य  बदल जाएगा  और अगर कोई आपको बूढ़ा कहे तो उसे कहें, "बुड्ढा  होगा तेरा बाप!" अमिताभ की फिल्म भी है. देख लीजिये. 


और मेरे साथ ज़ोर से एक नारा लगाएं, "बुड्ढा  होगा तेरा बाप." 
स्वस्थ रहें. मस्त रहें. 

नमस्कार. 

4 comments:

  1. हमें हमारी सोच बदलनी होगी आपने कहानियो के जरिए सही समझा या

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