मैसेज है मेरा दिल्ली वालों को. मत दो वोट केजरीवाल को.
निश्चित ही सवाल पूछेंगे आप कि क्यों नहीं देना चाहिए वोट केजरीवाल को उसने बहुत कुछ सस्ता किया और बहुत फ्री किया. फिर क्यों कह रहा हूँ मैं कि उसे वोट नहीं देना चाहिए?
जवाब लीजिये.
पहला पॉइंट है. केजरीवाल इस्लामिक थ्रेट, जिसे लगभग सारी गैर-इस्लामिक दुनिया समझ रही है, महसूस कर रही है, उसे नहीं समझता. उसे लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम कि बात करना फ़िज़ूल है. गलत है वो. सौ प्रतिशत गलत है. मूर्ख है वो.
मुस्लिम नारे लगाते फिरते हैं.
"तेरा मेरा रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह".
"रोहिंग्या से रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह"
कलमा जानते हैं क्या है?
"ला-इलाहा-लिलल्लाह. मोहम्मदुर्रसूल अल्लाह."
भगवान सिर्फ एक है और वो है अल्लाह. और Muhammad is the messenger of Allah. बात खतम. और क़ुरान है वो मैसेज जो अल्लाह ने भेजा. जो माने वो ईमानदार. जो न माने बे-ईमान. काफिर.
क़ुरआन पढ़िए सब समझ आ जायेगा. गूगल पर है. अंग्रेजी तरजुमे के साथ. भरी पड़ी हैं आयतें गैर-मुस्लिम के खिलाफ. और उन आयतों का नतीजा पूरी दुनिया भुगत रही है. अगर ऐसा नहीं होता तो खालसा का सृजन ही नहीं होता? अगर ऐसा न होता तो चीन में इस्लाम पर अनेकों पाबंदियां न होती. अगर ऐसा न होता तो सन सैतालीस में मुल्क न बंटता. लाखों लोग न मारे जाते. कश्मीर से हिन्दू न भगाये जाते.
लेकिन केजरीवाल कहता है कि हिन्दू-मुस्लिम कुछ नहीं होता. धर्म की राजनीति नहीं करनी चाहिए. ठीक बात है. धर्म की राजनीति बिलकुल नहीं करनी चाहिए. फिर क्यों तीर्थ-यात्रा करवा रहे हो भाई? क्यों मुफ्त तीर्थ यात्रा करवा रहे हो?
दिल्ली वालो, आज सस्ते बिजली पानी पर अगर वोट देते हो तो याद रखो कि महाराणा प्रताप जंगल जंगल भटके लेकिन लड़ते रहे. घास की रोटी खाते रहे लेकिन लड़ते रहे. गुरु गोबिंद ने, उनके सारे परिवार ने और अनेक सिंहों ने शहीदियाँ दी, किसलिए? कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. न. बस आइडियोलॉजी की लड़ाई थी.
तुम्हें क्या लगता है कि मुस्लिम नहीं समझता आइडियोलॉजी की लड़ाई? आप जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, सहूलियत बढ़ा दो, वो फिर भी गैर-मुस्लिम सरकार से अंदर-अंदर लड़ता रहेगा. उसे अल्लाह का निज़ाम स्थापित करना होता है.
आइडियोलॉजी की लड़ाई में भाजपा का साथ दो दिल्ली वालो. भाजपा हिंदुत्व की बात करती है. हिंदुत्व अपने आप में कोई धर्म नहीं है. इसमें कुछ भी लगा-बंधा नहीं है. आप आस्तिक-नास्तिक, कुछ भी हो सकते हैं. आप राम कृष्ण की आलोचना कर सकते हैं. आज भी राम ने सीता छोड़ी जंगल में तो लोग सवाल उठाते हैं. यहाँ कोई ईश-निंदा blasphemy जैसा कानून नहीं है कि आपने राम-कृष्ण के खिलाफ कुछ लिख दिया कह दिया तो फांसी चढ़ा दिए जाओगे. यहाँ सोच पर पहरे नहीं बिठाये गए. यहाँ बहुत सी विरोधी विचार-धारा वाले लोग रहते हैं. और ऐसे ही समाज में सोच-विचार पैदा हो सकता है. जहाँ आपकी सोच को एक किताब के दायरे में बांध दिया जाए वहां आप सिर्फ गुलाम हो जाएंगे.
कौन सी आइडियोलॉजी को चुनना है आपने? यदि आपको ऐसी सोच वाला समाज चाहिए जहाँ वैचारिक गुलामी हो तो आप वोट दीजिये केजरीवाल को, हिन्दू मुस्लिम को कोई मुद्दा ही न समझने वालों को अन्यथा आपके पास भाजपा का विकल्प है. उसे वोट कीजिये.
दूसरा पॉइंट ... चीज़ें सस्ती होनी चाहिए.... मुफ्त भी होनी चाहिए लेकिन उसका यह तरीका नहीं है. इंसान का क्या है. उसे सब कुछ चाहिए. सबको सब कुछ चाहिए. मुफ्त चाहिए. और यह काफी कुछ संभव है. लेकिन वो तभी संभव है जब इंसान वैज्ञानिकों से, समाज-वैज्ञानिकों (सोशल साइंटिस्ट) से अपनी समाजिक और व्यक्तिगत मान्यताएं लें न कि किन्ही आसमानी कही जाने वाली किताबों से. इस धरती पर इंसान का वज़न, उसी मूर्खताओं का वज़न पूरे प्लेनेट को खतरे में डाले हुए हैं, अब प्लेनेट तभी बच सकता है यदि इंसान विज्ञान के मुताबिक जीने को राज़ी हो, समाज विज्ञान के मुताबिक जीने को राज़ी हो. और जो इंसान विज्ञान के साथ नहीं चलना चाहता, जो इंसान अपनी तथा-कथित धार्मिक-मज़हबी किताबों से, इलाही किताबों से टस से मस नहीं होना चाहता, उसको कुछ मुफ्त नहीं मिलना चाहिए. कुछ सस्ता नहीं मिलना चाहिए. यह कोई तरीका नहीं कि मूर्ख भीड़ पैदा किये जाओ. सब कुछ मुफ्त पाओ और अँधा-धुंध इस धरती को निचोड़ दो. न यह कोई तरीका नहीं है.
केजरीवाल उथला व्यक्ति है. यह "मुफ्त मुफ्त स्कीमें " गहरी समस्याओं के उथले हल हैं.
जैसे उसकी ओड-इवन स्कीम. दिल्ली में पॉलुशन है तो वो ओड इवन से थोड़ा न हल होगा? कुत्ते ज़्यादा होते हैं तो क्या करते हो? नसबंदी. इंसान ज़्यादा न हों तो क्या करते हो? नसबंदी. कार-स्कूटर-ट्रक ज़्यादा हों तो क्या करना चाहिए. गाड़ी बंदी. नयी मोटर व्हीकल पर पाबंदी. यह होते हैं हल. अगर है हिम्मत तो टकराओ समस्या से सीधा. यह उथले हल मत दो.
तीसरा पॉइंट ... साढ़े चार साल केजरीवाल कहता रहा कि भाजपा उसे काम नहीं करने दे रही और आखिरी छह महीने में, जब चुनाव करीब आ गए तो भाजपा ने उसे काम करने दिया? किसलिए? ताकि वोट केजरीवाल की तरफ खिसक जाए. इतनी मूर्ख है न भाजपा? वैरी गुड. किसे मूर्ख समझता है केजरीवाल? सब बकवास था. केजरीवाल खुद निकम्मा था. न-तज़ुर्बेकार था. अन्यथा जो नियामतें-रिआयतें वो चुनाव के ठीक पहले दे रहा था, वो पांच साल पहले से देना शुरू कर सकता था. मूर्ख बना रहा है जनता को, अब जनता को चाहिए उसे मूर्ख बनाये. रिआयतें जो दीं, ले भी लीं तो भी वोट भाजपा को दे. केजरीवाल तो खुद कहता था कि जो भी तुम्हार वोट खरीदने आये उससे पैसे ले लो, मन मत करो लेकिन वोट उसे मत दो. अब केजरीवाल तुम्हारा वोट खरीदने आया है. तुम्हें मुफ्त की चीज़ें देकर तुम्हारा वोट खरीदने आया है, उसे वोट मत देना. वो तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी समाजिक मान्यतों की लड़ाई लड़ने नहीं आया, उसे वोट मत देना.
चौथा पॉइंट ... जिनको केजरीवाल बहुत पढ़ा-लिख, बहुत समझदार लगता है, बता दूँ वो जब नया-नया आया था तो मुद्दा एक ही था लोकपाल. लोकपाल. बड़ी धीर-गंभीर शक्ल बना कर लोकपाल को प्रायोजित करते थे श्रीमान. सुना आपने दुबारा लोकपाल उसके मुंह से? हो गया करप्शन खत्म दिल्ली में? असल बात यह है कि समाज में न तो भ्र्ष्टाचार कोई एक मात्र मुद्दा है और न ही लोकपाल कोई एक रामबाण समाधान. वो बात ही उथली थी. उथला आदमी. उथली बात.
पांचवा पॉइंट ... जब वो आया था तो उसके साथ बहुत गण्य-मान्य लोग थे. अन्ना हज़ारे. किरण बेदी. कुमार बिस्वास. प्रशांत भूषण. योगेन्द्र यादव. कहाँ गए वो लोग? शुरू में ये सब लोग साथ थे केजरीवाल के. क्यों अलग-थलग हो गए ये लोग? चूँकि यह श्रीमान उनको साथ लेकर चल ही नहीं पाए. कोई एक-आध बंदा गया होता तो मैं इस मुद्दे को तूल नहीं देता, लेकिन इतने सारे लोग छोड़-छोड़, प्रमुख लोग साथ छोड़ जाएं तो ज़रूर कोई मसला है. और मसला यह है कि केजरीवाल को लोगों को अपने साथ लेकर चलना ही नहीं आता. जो चंद लोगों को अपने साथ नहीं लेकर चल पाया, वो इस भारत को, जहाँ रंग-बिरंगे लोग हैं, एक दम भिन्न-भिन्न मान्यताओं के लोग हैं, विपरीत मान्यताओं के लोग हैं, साथ लेकर चल पायेगा? कदापि नहीं. उसे वोट मत देना.
और आखिरी में बता दूँ तुषार कॉस्मिक नाम है मेरा. गूगल करेंगे मिल जाएगा. मैं कोई भाजपा का बंदा नहीं और न ही मोदी भक्त हूँ और न आरएसएस का स्वयं सेवक. मैं स्वतंत्र हूँ. आलोचक हूँ. मैं तो इस लोकतंत्र से भी आगे के तंत्र की रूप-रेखा दे चूका हूँ. मेरे ब्लॉग है. पढ़ सकते हैं. लेकिन फिलहाल जैसी व्यवस्था है उसके मुताबिक भाजपा को वोट देने के लिए कह रहा हूँ और कल अगर ये काम नहीं करेंगे, अपेक्षा के अनुसार काम नहीं करेंगे या कोई मूर्खता करेंगे तो इनके भी खिलाफ बोलूँगा, पुरज़ोर बोलूँगा.
सो यह मुफ्त का लालच छोड़ों, वैसे भी मुफ्त कुछ नहीं होता. किसी न किसी को कीमत अदा करनी ही पड़ती है.
तो अपील है मेरी, पुरजोर अपील है, वोट दो, भाजपा को वोट दो.
नमस्कार.
निश्चित ही सवाल पूछेंगे आप कि क्यों नहीं देना चाहिए वोट केजरीवाल को उसने बहुत कुछ सस्ता किया और बहुत फ्री किया. फिर क्यों कह रहा हूँ मैं कि उसे वोट नहीं देना चाहिए?
जवाब लीजिये.
पहला पॉइंट है. केजरीवाल इस्लामिक थ्रेट, जिसे लगभग सारी गैर-इस्लामिक दुनिया समझ रही है, महसूस कर रही है, उसे नहीं समझता. उसे लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम कि बात करना फ़िज़ूल है. गलत है वो. सौ प्रतिशत गलत है. मूर्ख है वो.
मुस्लिम नारे लगाते फिरते हैं.
"तेरा मेरा रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह".
"रोहिंग्या से रिश्ता क्या? ला-इलाहा-लिलल्लाह"
कलमा जानते हैं क्या है?
"ला-इलाहा-लिलल्लाह. मोहम्मदुर्रसूल अल्लाह."
भगवान सिर्फ एक है और वो है अल्लाह. और Muhammad is the messenger of Allah. बात खतम. और क़ुरान है वो मैसेज जो अल्लाह ने भेजा. जो माने वो ईमानदार. जो न माने बे-ईमान. काफिर.
क़ुरआन पढ़िए सब समझ आ जायेगा. गूगल पर है. अंग्रेजी तरजुमे के साथ. भरी पड़ी हैं आयतें गैर-मुस्लिम के खिलाफ. और उन आयतों का नतीजा पूरी दुनिया भुगत रही है. अगर ऐसा नहीं होता तो खालसा का सृजन ही नहीं होता? अगर ऐसा न होता तो चीन में इस्लाम पर अनेकों पाबंदियां न होती. अगर ऐसा न होता तो सन सैतालीस में मुल्क न बंटता. लाखों लोग न मारे जाते. कश्मीर से हिन्दू न भगाये जाते.
लेकिन केजरीवाल कहता है कि हिन्दू-मुस्लिम कुछ नहीं होता. धर्म की राजनीति नहीं करनी चाहिए. ठीक बात है. धर्म की राजनीति बिलकुल नहीं करनी चाहिए. फिर क्यों तीर्थ-यात्रा करवा रहे हो भाई? क्यों मुफ्त तीर्थ यात्रा करवा रहे हो?
दिल्ली वालो, आज सस्ते बिजली पानी पर अगर वोट देते हो तो याद रखो कि महाराणा प्रताप जंगल जंगल भटके लेकिन लड़ते रहे. घास की रोटी खाते रहे लेकिन लड़ते रहे. गुरु गोबिंद ने, उनके सारे परिवार ने और अनेक सिंहों ने शहीदियाँ दी, किसलिए? कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. न. बस आइडियोलॉजी की लड़ाई थी.
तुम्हें क्या लगता है कि मुस्लिम नहीं समझता आइडियोलॉजी की लड़ाई? आप जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, सहूलियत बढ़ा दो, वो फिर भी गैर-मुस्लिम सरकार से अंदर-अंदर लड़ता रहेगा. उसे अल्लाह का निज़ाम स्थापित करना होता है.
आइडियोलॉजी की लड़ाई में भाजपा का साथ दो दिल्ली वालो. भाजपा हिंदुत्व की बात करती है. हिंदुत्व अपने आप में कोई धर्म नहीं है. इसमें कुछ भी लगा-बंधा नहीं है. आप आस्तिक-नास्तिक, कुछ भी हो सकते हैं. आप राम कृष्ण की आलोचना कर सकते हैं. आज भी राम ने सीता छोड़ी जंगल में तो लोग सवाल उठाते हैं. यहाँ कोई ईश-निंदा blasphemy जैसा कानून नहीं है कि आपने राम-कृष्ण के खिलाफ कुछ लिख दिया कह दिया तो फांसी चढ़ा दिए जाओगे. यहाँ सोच पर पहरे नहीं बिठाये गए. यहाँ बहुत सी विरोधी विचार-धारा वाले लोग रहते हैं. और ऐसे ही समाज में सोच-विचार पैदा हो सकता है. जहाँ आपकी सोच को एक किताब के दायरे में बांध दिया जाए वहां आप सिर्फ गुलाम हो जाएंगे.
कौन सी आइडियोलॉजी को चुनना है आपने? यदि आपको ऐसी सोच वाला समाज चाहिए जहाँ वैचारिक गुलामी हो तो आप वोट दीजिये केजरीवाल को, हिन्दू मुस्लिम को कोई मुद्दा ही न समझने वालों को अन्यथा आपके पास भाजपा का विकल्प है. उसे वोट कीजिये.
दूसरा पॉइंट ... चीज़ें सस्ती होनी चाहिए.... मुफ्त भी होनी चाहिए लेकिन उसका यह तरीका नहीं है. इंसान का क्या है. उसे सब कुछ चाहिए. सबको सब कुछ चाहिए. मुफ्त चाहिए. और यह काफी कुछ संभव है. लेकिन वो तभी संभव है जब इंसान वैज्ञानिकों से, समाज-वैज्ञानिकों (सोशल साइंटिस्ट) से अपनी समाजिक और व्यक्तिगत मान्यताएं लें न कि किन्ही आसमानी कही जाने वाली किताबों से. इस धरती पर इंसान का वज़न, उसी मूर्खताओं का वज़न पूरे प्लेनेट को खतरे में डाले हुए हैं, अब प्लेनेट तभी बच सकता है यदि इंसान विज्ञान के मुताबिक जीने को राज़ी हो, समाज विज्ञान के मुताबिक जीने को राज़ी हो. और जो इंसान विज्ञान के साथ नहीं चलना चाहता, जो इंसान अपनी तथा-कथित धार्मिक-मज़हबी किताबों से, इलाही किताबों से टस से मस नहीं होना चाहता, उसको कुछ मुफ्त नहीं मिलना चाहिए. कुछ सस्ता नहीं मिलना चाहिए. यह कोई तरीका नहीं कि मूर्ख भीड़ पैदा किये जाओ. सब कुछ मुफ्त पाओ और अँधा-धुंध इस धरती को निचोड़ दो. न यह कोई तरीका नहीं है.
केजरीवाल उथला व्यक्ति है. यह "मुफ्त मुफ्त स्कीमें " गहरी समस्याओं के उथले हल हैं.
जैसे उसकी ओड-इवन स्कीम. दिल्ली में पॉलुशन है तो वो ओड इवन से थोड़ा न हल होगा? कुत्ते ज़्यादा होते हैं तो क्या करते हो? नसबंदी. इंसान ज़्यादा न हों तो क्या करते हो? नसबंदी. कार-स्कूटर-ट्रक ज़्यादा हों तो क्या करना चाहिए. गाड़ी बंदी. नयी मोटर व्हीकल पर पाबंदी. यह होते हैं हल. अगर है हिम्मत तो टकराओ समस्या से सीधा. यह उथले हल मत दो.
तीसरा पॉइंट ... साढ़े चार साल केजरीवाल कहता रहा कि भाजपा उसे काम नहीं करने दे रही और आखिरी छह महीने में, जब चुनाव करीब आ गए तो भाजपा ने उसे काम करने दिया? किसलिए? ताकि वोट केजरीवाल की तरफ खिसक जाए. इतनी मूर्ख है न भाजपा? वैरी गुड. किसे मूर्ख समझता है केजरीवाल? सब बकवास था. केजरीवाल खुद निकम्मा था. न-तज़ुर्बेकार था. अन्यथा जो नियामतें-रिआयतें वो चुनाव के ठीक पहले दे रहा था, वो पांच साल पहले से देना शुरू कर सकता था. मूर्ख बना रहा है जनता को, अब जनता को चाहिए उसे मूर्ख बनाये. रिआयतें जो दीं, ले भी लीं तो भी वोट भाजपा को दे. केजरीवाल तो खुद कहता था कि जो भी तुम्हार वोट खरीदने आये उससे पैसे ले लो, मन मत करो लेकिन वोट उसे मत दो. अब केजरीवाल तुम्हारा वोट खरीदने आया है. तुम्हें मुफ्त की चीज़ें देकर तुम्हारा वोट खरीदने आया है, उसे वोट मत देना. वो तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी समाजिक मान्यतों की लड़ाई लड़ने नहीं आया, उसे वोट मत देना.
चौथा पॉइंट ... जिनको केजरीवाल बहुत पढ़ा-लिख, बहुत समझदार लगता है, बता दूँ वो जब नया-नया आया था तो मुद्दा एक ही था लोकपाल. लोकपाल. बड़ी धीर-गंभीर शक्ल बना कर लोकपाल को प्रायोजित करते थे श्रीमान. सुना आपने दुबारा लोकपाल उसके मुंह से? हो गया करप्शन खत्म दिल्ली में? असल बात यह है कि समाज में न तो भ्र्ष्टाचार कोई एक मात्र मुद्दा है और न ही लोकपाल कोई एक रामबाण समाधान. वो बात ही उथली थी. उथला आदमी. उथली बात.
पांचवा पॉइंट ... जब वो आया था तो उसके साथ बहुत गण्य-मान्य लोग थे. अन्ना हज़ारे. किरण बेदी. कुमार बिस्वास. प्रशांत भूषण. योगेन्द्र यादव. कहाँ गए वो लोग? शुरू में ये सब लोग साथ थे केजरीवाल के. क्यों अलग-थलग हो गए ये लोग? चूँकि यह श्रीमान उनको साथ लेकर चल ही नहीं पाए. कोई एक-आध बंदा गया होता तो मैं इस मुद्दे को तूल नहीं देता, लेकिन इतने सारे लोग छोड़-छोड़, प्रमुख लोग साथ छोड़ जाएं तो ज़रूर कोई मसला है. और मसला यह है कि केजरीवाल को लोगों को अपने साथ लेकर चलना ही नहीं आता. जो चंद लोगों को अपने साथ नहीं लेकर चल पाया, वो इस भारत को, जहाँ रंग-बिरंगे लोग हैं, एक दम भिन्न-भिन्न मान्यताओं के लोग हैं, विपरीत मान्यताओं के लोग हैं, साथ लेकर चल पायेगा? कदापि नहीं. उसे वोट मत देना.
और आखिरी में बता दूँ तुषार कॉस्मिक नाम है मेरा. गूगल करेंगे मिल जाएगा. मैं कोई भाजपा का बंदा नहीं और न ही मोदी भक्त हूँ और न आरएसएस का स्वयं सेवक. मैं स्वतंत्र हूँ. आलोचक हूँ. मैं तो इस लोकतंत्र से भी आगे के तंत्र की रूप-रेखा दे चूका हूँ. मेरे ब्लॉग है. पढ़ सकते हैं. लेकिन फिलहाल जैसी व्यवस्था है उसके मुताबिक भाजपा को वोट देने के लिए कह रहा हूँ और कल अगर ये काम नहीं करेंगे, अपेक्षा के अनुसार काम नहीं करेंगे या कोई मूर्खता करेंगे तो इनके भी खिलाफ बोलूँगा, पुरज़ोर बोलूँगा.
सो यह मुफ्त का लालच छोड़ों, वैसे भी मुफ्त कुछ नहीं होता. किसी न किसी को कीमत अदा करनी ही पड़ती है.
तो अपील है मेरी, पुरजोर अपील है, वोट दो, भाजपा को वोट दो.
नमस्कार.
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