इस बार नबी का जन्म-दिन ऐसे मनाया गया जैसे कम-से-कम दिल्ली में तो मैंने पहले कभी नहीं देखा. निश्चित ही यह बाहुबल, वोटिंग-बल, संख्या-बल भी दिखाने को था. सडकें सडकें नहीं थी, जुलुस स्थल थी आज. नारे बुलंद हो रहे थे, "सरकार की आमद...मरहबा...मरहबा."
पश्चिम विहार, दिल्ली में रहता हूँ. पास ही विष्णु गार्डन इलाका है. विष्णु गार्डन में बहुत सी जींस बनाने की अवैध फैक्ट्री हैं. सब काम मुसलमानों के हाथ में हैं. आज नबी के जन्म का जुलुस निकाल रहे थे. घोड़े वाले मन्दिर से पश्चिम विहार मात्र आधा किलोमीटर है, यकीन मानें मैं यह दूरी पार ही नहीं कर पाया, सडकों पर इतना जमघट. मुझे कार वापिस घुमानी पड़ी और 4-5 किलोमीटर का चक्कर काट दूसरे रूट से घर आना पड़ा. यह सब धर्म, मज़हब, दीन कुछ भी नहीं है. यह सब बकवास है जो हिन्दू, सिक्ख और अब मुस्लिम भी करने लगे हैं. यह धार्मिक आज़ादी नहीं, धार्मिक बर्बादी है. बंद करो सड़क पर नमाजें, जुलुस, जलसे, शोभा-यात्राएं, कांवड़-शिविर. सड़क इन कामों के लिए नहीं है. वो सिर्फ चलने के लिए है. वो दूकान-दारी के लिए नहीं है. धार्मिक(?) दुकान-दारी के लिए भी नहीं.
क्या है मेरा नज़रिया?
१. मेरा नज़रिया यह है कि नबी हों, गुरु हों, अवतार हों, महात्मा हों, कोई भी हों, एक तो सरकारी छुटियाँ बंद कर देनी चाहियें इन सब के जन्म से मरण तक के किसी भी दिवस पर. अगर ऐसे छुटियाँ ही करते रहे तो पूरा साल छुट्टियों को ही देना पड़ेगा.
२. दूसरा कैसा भी पब्लिक फंक्शन करना हो, वो बंद हॉल या फिर खुले मैदानों में करें, कोई लाउड स्पीकर नहीं, कोई शोर-शराबा नहीं. आम जन-जीवन को डिस्टर्ब करने की किसी को इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए.
३. तीसरा और सबसे ज़रूरी. अगर आपने सच में ही अपने नबी के जीवन का फायदा दीन-दुनिया तक पहुँचाना है तो उनके जीवन, उनकी कथनी, उनकी करनी पर खुली बहस आयोजित करें, आमंत्रित करें. और यह बहस मात्र आपके दीन, आपके नबी की हाँ में हाँ मिलाने को ही नहीं होनी चाहिए, इसमें 'न' कहने वालों को भी आने दीजिये.
आने दीजिये अगर कोई उनको पैगम्बर नहीं मानता तो.
आने दीजिये अगर कोई उनको आखिरी पैगम्बर नहीं मानता तो.
आने दीजिये अगर कोई खुद को पैगम्बर मानता है तो.
आने दीजिये अगर कोई अल्लाह-ताला को इनसानी अक्ल पर लगा ताला मानता है.
आने दीजिये अगर कोई क़ुरान में लिखी उन आयतों पर सवाल उठाता है जो काफिरों के खिलाफ हिंसा को आमंत्रित करती हैं.
आने दीजिये ऐसे लोगों को जो क़ुरान के हर शब्द, हर वाक्य पर सवाल उठाते हों.
फिर देखिये क्या निकल के आता है. अगर सरकार की कथनी-करनी में दम होगा तो हम भी कहेंगे, "सरकार की आमद... मरहबा.....मरहबा." और सच में ही सरकार के जीवन से सारी दुनिया बहुत कुछ सीख पायेगी.
लेकिन है इतनी हिम्मत मुसलमानों में कि दुनिया भर में ऐसे आयोजन कर सकें?
मुझे गहन शंका है. और मेरी शंका अगर सही है तो समझ लीजिये दुनिया को गहन अन्धकार में धकेलने के औज़ार हैं ऐसे आयोजन जो आज दिल्ली में किये जा रहे थे.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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