सेक्स और इन्सान

माना जाता है कि इन्सान इस पृथ्वी का सबसे समझदार प्राणी है. लेकिन यह इन्सान ही है, जो सेक्स न करके हस्त-मैथुन कर रहा है. "एक...दो...तीन...चार...हा...हा...हा....हा........." यह इन्सान ही है, जो पब्लिक शौचालय में लिख आता है, "शिवानी रंडी है.....", "भव्या गश्ती है", "मेरा लम्बा है, मोटा है, जिसे मुझ से Xदवाना हो, फ़ोन करे......98..........", आदि अनादि. यह इन्सान ही है, जो हिंसक होता है तो दूसरे की माँ, बहन, बेटी को सड़क पे Xद देता है. "तेरी माँ को xदूं........तेरी बेटी को कुत्ते xदें ........तेरी बहन की xत मारूं". यह इन्सान ही है, जो बलात्कार करता है और सेक्स के लिए न सिर्फ बलात्कृत लड़की का बल्कि अपना भी जीवन दांव पर लगा देता है. यह इन्सान ही है, जो गुब्बारे तक में लिंग घुसेड़ सुष्मा, सीमा, रेखा की कल्पना कर लेता है. यह इन्सान ही है, जो कपड़े पहने है, चूँकि उससे अपना नंग बरदाश्त ही नहीं हुआ. लेकिन फिर ढका अंग बरदाश्त नहीं होता तो वही कपड़े स्किन-टाइट कर लेता है. आज की फिल्में देखो तो हेरोइन अधनंगी है, पुरानी फ़िल्में देखो तो हेरोइन ने कपड़े पूरे पहने हैं लेकिन इत्ते टाइट कि अंग-अंग झाँक रहा है. वैजयंती माला-आशा पारेख की फिल्में याद करें. यह इन्सान ही है, जो सेक्स नहीं करता सो दूसरों को सेक्स करते देखता है. पोर्न जितना देखा जाता है उतना तो लोग मंदिर-गुरूद्वारे के दर्शन नहीं करते होंगे. यह इन्सान ही है, जो गीत भी गाता है तो उसमें सिवा सेक्स के कुछ नहीं होता. "तू मुझे निचोड़ दे, मैं तुझे भंभोड़ दूं. आहा...आहा." यह इन्सान ही है, जिसने शादियों का आविष्कार किया, जिससे परिवार अस्तित्व में आया, जिससे यह धरती जो सबकी माता है, उसे टुकड़ों में बांट दिया गया, ज़मीन को जायदाद में बदल दिया गया और इन्सान इन्सान के बीच दीवारें खिंच गईं, दीवारें क्या तलवारें खिंच गईं. "ज़र, ज़ोरू और ज़मीन, झगड़े की बस वजह तीन." लेकिन तीन नहीं, वजह एक ही है....और वो है सेक्स का गलत नियोजन चूँकि सेक्स के गलत नियोजन की वजह से ही ज़र, जोरू और ज़मीन अस्तित्व में आये हैं. "ये तेरी औरत है." "ये तेरा मरद हुआ आज से." जबकि न कोई किसी की औरत है और न ही कोई किसी का मर्द. इन्सान हैं, कोई कुर्सी-मेज़ थोड़ा न हैं, जिन पर किसी की मल्कियत होगी? वैसे और गहरे में देखा जाए तो वस्तुओं पर मलकियत भी इसीलिए है कि इंसानों पर मल्कियत है. अगर इन्सानों पर मलकियत न हो, अगर परिवार न हों तो सारी दुनिया आपकी है, आप कोई पागल हो जो मेज़-कुर्सी पर अपना हक जमाओगे. सारी दुनिया छोड़ टेबल-कुर्सी पर हक़ जमाने वाले का तो निश्चित ही इलाज होना चाहिए. नहीं? वो सब पागल-पन सिर्फ घर-परिवार-संसार की वजह से ही तो है. जब पति-पत्नी सम्भोग करते हैं तो वहां बेड पर दो लोग नहीं होते, चार होते हैं. पति की कल्पना में कोई और ही औरत होती है और पत्नी किसी और ही पुरुष की कल्पना कर रही होती है. वैसे वहां चार से ज़्यादा लोग भी हो सकते हैं......ख्यालात में पार्टनर बदल-बदल कर भी लाए जा सकते हैं. यह है जन्म-जन्म के, सात जन्म के रिश्तों की सच्चाई. शादी आई तो साथ में ही वेश्यालय आया. उसे आना ही था. रामायण काल में गणिका थी तो बुद्ध के समय में नगरवधू. और नगरवधू का बहुत सम्मान था. 'वैशाली की नगरवधू' आचार्य चतुर-सेन का जाना-माना उपन्यास है, पढ़ सकते हैं. 'उत्सव' फिल्म देखी हो शायद आपने. शेखर सुमन, रेखा और शशि कपूर अभिनीत. 'शूद्रक' रचित संस्कृत नाटक 'मृच्छकटिकम' पर आधारित थी यह फिल्म. वेश्या दिखाई गई हैं. खूब सम्मानित. आज भी किसी नेता, किसी समाज-सुधारक की जुर्रत नहीं कि वेश्यालय हटाने की सोच भी सके. वो सम्भव ही नहीं है. जब तक शादी रहेगी, वेश्यालय रहेगा ही. सनी लियॉनी को आखिर उस भारतीय समाज ने स्वीकार किया, जहाँ फिल्म अभिनेत्री अगर शादी कर ले तो उसे रिटायर माना जाता था. BB ki Vines, Carryminati, All India Bakchod, ये तीन टॉप के इंडियन youtube चैनल हैं. इन सब की एक साझी खूबी है. जानते हैं क्या? सब खुल कर माँ-बहन-बेटी xदते हैं. All India Bakchod ने तो अपने नाम में ही सेक्स का झंडा गाड़ रखा है. इन्सान ने सेक्स को बुरी तरह से उलझा दिया. बस फिर क्या था? सेक्स ने इन्सान का पूरा जीवन जलेबी कर दिया जबकि सेक्स एक सीधी-सादी शारीरिक क्रिया है, जिसे विज्ञान ने और आसान कर दिया है. विज्ञान ने बच्चे के जन्म को सेक्स से अलग कर दिया है. अब लड़की को यह कहने की ज़रूरत नहीं, "मैं तेरे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ." और लड़के को विलन बनते हुए यह कहने की कोई ज़रुरत नहीं, "डार्लिंग, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन देखो अभी यह बच्चा हमें नहीं चाहिए तो तुम किसी अच्छे से डॉक्टर से मिल कर इसे गिरा दो. यह लो पचास हज़ार रुपये. और चाहिए होंगे तो मांग लेना." विज्ञान ने यह सहूलियत दे दी है कि पुरुष और स्त्री एक दूसरे की स्वास्थ्य रिपोर्ट ले कर सेक्स में जाएँ. जगह-जगह शौचालय ही नहीं सार्वजनिक सम्भोगालय भी बनने चाहियें, जहाँ कोई भी स्त्री-पुरुष अपनी मर्ज़ी से सम्भोग कर सकें . उलझी हुई समस्याओं के समाधान इतने आसान और सीधे होते हैं कि उलझी बुद्धि को वो स्वीकार ही नहीं होते. इन्सान इस पृथ्वी का सबसे समझदार प्राणी है, उसकी बुरी तरह उलझी समस्यायों के समाधान इतने आसान कैसे हो सकते हैं? वो कैसे स्वीकार ले? वो कैसे स्वीकार कर ले कि उसकी समस्यायों के समधान हो भी सकते हैं. आपको पता है सड़क किनारे कुत्ता-कुतिया को सम्भोग-रत देख लोग उनको पत्थर मारने लगते हैं, जानते हैं क्यों? कैसे बरदाश्त कर लें, जो खुद नहीं भोग सकते, वो कुत्ते भोगें? मेरा प्रॉपर्टी का काम रहा है शुरू से. पुरानी बात है. एक जवान लड़का किसी लड़की को ले आया फ्लैट पे. उन दिनों नई-नई अलॉटमेंट थी. कॉलोनी लग-भग खाली थी. कुछ शरारती लोगों ने बाहर से कुंडी लगा दी और 100 नम्बर पे फोन कर दिया. पुलिस आ गई, लड़का-लड़की हैरान-परेशान. बेचारों की खूब जिल्लत हुई. दुबारा न आने की कसमें खा कर गए. बाद में जिन्होंने फ़ोन किया था, वो ताली पीट रहे थे. एक ने कहा, "साला, यहाँ ढंग की लड़की देखती तक नहीं और ये जनाब मलाई खाए जा रहे थे. मज़ा चखा दिया. हहहाहा..........." सेक्स जो इन्सान को कुदरत की सबसे बड़ी नेमत थी, सबसे बड़ी समस्या बन के रह गया. चूँकि इन्सान इस पृथ्वी का सबसे मूढ़ प्राणी है. नमन...तुषार कॉस्मिक

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