नहीं, हम एक सेक्युलर स्टेट बिलकुल नहीं है........एक सेक्युलर स्टेट में नास्तिक, आस्तिक, अग्नास्तिक सबकी जगह होनी चाहिए... स्टेट को किसी भी धारणा से कोई मतलब नहीं होता. वो निरपेक्ष है. उसका धर्म संविधान और विधान है. पुराण या कुरान नहीं.....ऐसे में किसी भी तरह की प्रार्थना का कोई मतलब नहीं है स्कूलों में....लेकिन आपके सब स्कूल चाहे सरकारी हों चाहे पंच-सितारी हों, सुबह-सुबह बच्चों को गैर-सेक्युलर बनाते हैं....उनकी सोच पर आस्तिकता का ठप्पा लगाते हैं.
आपके तो अधिकांश स्कूलों के नाम भी संतों, गुरुओं के नाम पर हैं. मैंने नहीं देखा कि किसी स्कूल का नाम किसी वैज्ञानिक, किसी फिलोसोफर. किसी कलाकार के नाम पर हो.
आपने देखा कि किसी स्कूल का नाम आइंस्टीन स्कूल हो, नीत्शे स्कूल हो, गलेलियो स्कूल हो, या फिर वैन-गोग स्कूल हो......देखा क्या आपने?
नाम होंगे सेंट फ्रोएब्ले, सेंट ज़विओर, गुरु हरी किशन स्कूल या फिर दयानंद स्कूल.....
अगर प्रार्थना ही करवानी है तो दुनिया के अग्रणी वैज्ञानिकों, कलाकारों, समाज-शास्त्रियों, फिलोसोफरों को धन्य-वाद की प्रार्थना गवा दीजिये. उसमें ऑस्कर वाइल्ड भी, शेक्सपियर भी, एडिसन भी, स्टीव जॉब्स, मुंशी प्रेम चंद भी, अमृता प्रीतम भी भी हों...
यह होगा सेकुलरिज्म का बीजा-रोपण. अभी हम सेकुलरिज्म को सिर्फ किताबों में रखे हैं.
और यह जो हिन्दू ब्रिगेड सेकुलरिज्म का विरोध करती है, वो कुछ-कुछ सही है. असल में वो विरोध अब अमेरिका तक में होने लगा है. वो विरोध सेकुलरिज्म के नाम पर इस्लाम जो फायदा उठाता है उसका है. इस्लाम में सेकुलरिज्म की कोई धारणा नहीं है. इस्लाम तो सिवा इस्लाम के किसी और धर्म को धर्म ही नहीं मानता. इस्लाम में जिहाद है. इस्लाम में अपनी सामाजिक व्यवस्था है. इस्लाम में अपना निहित कायदा-कानून है. तो फिर ऐसे में सेकुलरिज्म का क्या मतलब रह जाता है? लेकिन यहाँ विरोध इस्लाम का होना चाहिए न कि सेकुलरिज्म का. लेकिन भारत में चूँकि अधिकांश समय सरकार कांग्रेस की रही है. यहाँ हज सब्सिडी चलाई गई, यहाँ मुस्लिम के लिए अलग पर्सनल सिविल लॉ बनाया गया. यहाँ का बुद्धिजीवी भी हिन्दू की कमी तो लिखता-बोलता रहा लेकिन इस्लाम के खिलाफ चुप्पी साधे रहा. यहाँ तक कि ओशो भी कुरान के खिलाफ बोले तो जीवन के अंतिम वर्षों में.
हिन्दू को अखरता है. उसे लगता है कि यह छद्म सेकुलरिस्म है. बात सही है. किसी एक तबके के साथ गर्म और किसी दूसरे के साथ नर्म व्यवहार किया जाए, और फिर खुद को सेक्युलर भी कहा जाए तो यहाँ कहाँ का सेकुलरिज्म हुआ?
लेकिन हिंदुत्व वालों को तो सेकुलरिज्म वैसे ही अखरता है जैसे मुस्लिम को. जैसे इस्लाम में सेकुलरिज्म की कोई कल्पना नहीं, ऐसे ही हिंदुत्व वालों को भी सेकुलरिज्म एक आँख नहीं भाता. उन्हें तो सब वैसे ही हिन्दू लगते हैं, चाहे सिक्ख हों, चाहे बौद्ध, चाहे जैन. ईसाईयत और इस्लाम को वो भी धर्म नहीं मानते.
तो विरोध सबका का होना चाहिए- इस्लाम का भी और इस्लाम या किसी भी और तबके की नाजायज़ तरफ़दारी का भी, छद्म सेकुलरिज्म का भी. और हिंदुत्व का भी. लेकिन सेकुलरिज्म का नहीं.
सेकुलरिज्म अपने आप में दुनिया की बेहतरीन धारणाओं में से है.
नमन.....तुषार कॉस्मिक
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