Wednesday, 13 November 2019

"करतारपुर कॉरिडोर"

करतारपुर कॉरिडोर खुलने से बहुत खुश हैं भारतीय, ख़ास कर के पंजाबी, ख़ास करके सिक्ख. अच्छी बात है. लेकिन कुछ शंकाएं हैं. ये जो पाकिस्तानी प्यार उमड़ रहा है, ये जो इमरान और सिद्धू की गल-बहियाँ दिख रही हैं......ये जो मेहमान-नवाजी दिखाई जा रही है पाकिस्तान की तरफ से......कुछ शंकाएं हैं, गहन शंकाएं हैं. पहली बात तो यह है कि पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क है, इस्लाम की बुनियाद पर खड़ा किया गया मुल्क है. नाम ही है पाकिस्तान. मतलब जो मुस्लिम है वो ही पाक है, बाकी सब नापाक, अपवित्र, गंदे, काफ़िर, वाज़िबुल-क़त्ल. इस्लाम में तो किसी भी और धर्म, दीन, मज़हब की गुंजाईश ही नहीं है. इस्लाम क्या है "ला इल्लाह-लिल्ल्हा, मुहम्मदुरूसूल अल्लाह". एक ही अल्लाह है, और बस मोहम्मद उसके रसूल हैं. कहानी खत्म. दी एंड. इसमें कहाँ किसी गुरु, किसी वाहेगुरु, किसी "एक ओंकार सतनाम" की गुंजाईश है? यहाँ यह भी ध्यान रखिये कि एकेश्वर की परिकल्पना जो सिक्खी में है, भारत में है, वो इस्लाम में नहीं है. इस्लाम का अल्लाह बड़ा खतरनाक है. कुरान कहती ज़रूर है कि अल्लाह बड़ा दयालु है, लेकिन है नहीं. वो गैर-मुस्लिम के प्रति बहुत ही हिंसक है. सो "ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम", गलत आख्यान है. ईश्वर से अल्लाह बिलकुल भिन्न है. इस सब में सिवा मस्ज़िद के कहाँ किसी गुरूद्वारे की गुंजाईश है? मैं सुनता हूँ अक्सर लोग कहते हैं कि थ्योरी कुछ अलग होती है और प्रैक्टिकल कुछ अलग होता है. मुझे हमेशा इस कांसेप्ट पर शंका रही है. मुझे लगता है कि थ्योरी ही अंततः प्रैक्टिकल होता है. विचार ही कर्म में बदलते हैं. नक्शा ही बिल्डिंग बनाता है. और इस्लाम का नक्शा क्या है? "सिर्फ इस्लाम ही असल दीन है, बाकी सब काफिर हैं, हीन हैं." फिर ये जो आपको करतारपुर में दिख रहा है, वो सब क्या है? "वक्ती है नाज़रीन. सियासत है हाज़रीन. पैसे-धेले की तंगी है जनाब. या शायद कश्मीर का कोई जवाब .... ये जो कुछ भी है लेकिन बहुत खुश होने की वजह नहीं है." हमेशा याद रखें, इस्माल सिर्फ इस्लाम है और मुसलमान सिर्फ मुसलमान है. और सिक्खों को यह सीखने कहीं और नहीं जाना है, अपना ही इतिहास देखना है. वो तो अपनी अरदास में बोलते हैं, "आरों से कटवाए गए, गर्म तवों पर बिठाए गए, खोपड़ियाँ उतरवा दी गईं.......लेकिन सिंहों ने धरम नहीं हारेया" और यह सब सच है. खालसा का जन्म ही ज़बर के खिलाफ हुआ था, वो कोई हिन्दू के पक्ष में नहीं था, वो ज़ुल्म के खिलाफ़ था. खालसा का अर्थ है, ख़ालिस व्यक्ति. शुद्ध-बुद्ध. संत सिपाही. वो किसी भी जबर के खिलाफ खड़ा होता है. और सिक्खों का इतिहास भी यही रहा है (सिर्फ चौरासी के आगे-पीछे का कुछ दौर-ए-दौरा छोड़ कर). यह याद रखना चाहिए कि "पंज प्यारे" कौन थे? वो थे दया राम, धर्म दास, मोहकम चंद, हिम्मत राय, साहिब चंद. ये वो लोग थे जिन्होंने गुरु गोबिंद की आवाज़ पर अपनी जान कुर्बान करने की तैयारी दिखा दी थी. ये पहले पांच खालसे थे. ये कोई भी थे लेकिन मुस्लिम कदाचित नहीं थे. यह याद रखना चाहिए कि जब खालसा पैदा हुआ तब ज़बर किस की तरफ से हो रहा था. ज़ालिम कौन था और ज़ुल्म किस पर हो रहा था? किसने गुरुओं को, उनके परिवारों को शहीद किया? गुरु गोबिंद के बच्चे दीवार में ईंट-गारे की जगह प्रयोग किये गए. जिंदा बच्चे. जरा सोच कर देखिये. कल्पना करना भी मुश्किल. जिगर फट जाए. रूह काँप जाएगी.उनके दो और बेटे जंग में शहीद हो गए. उनके पिता को पहले ही शहीद कर दिया गया था. और वो खुद, शायद टेंट में सो रहे थे, तब अटैक किया गया था, मुस्लिम द्वारा ही मारे गए. कहते हैं कि बन्दा बहादुर के बच्चों के टुकड़े उनके मुंह में ठूंसे गए थे. बाबा दीप सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनकी गर्दन कट गयी थी, वो फिर भी लड़ रहे थे. सिंह न हो किसी के खिलाफ लेकिन कौन था सिंह के खिलाफ, हिन्दू के खिलाफ? मुसलमान. मुख्यतः मुसलमान जनाब. मैं फिर से कहता हूँ, हमेशा थ्योरी समझनी चाहिए, प्रैक्टिकल अपने आप समझ आ जायेगा. मूर्ख हैं वो लोग जो कहते हैं कि थ्योरी सिर्फ थ्योरी हैं. न. इस्लाम की थ्योरी समझें. इस्लाम की थ्योरी यह है कि सिर्फ इस्लाम ही पाक-साफ़ है, बाकी सब बकवास है. वो थ्योरी कल भी वही थी और वो आज भी वही है और आगे भी वही रहेगी, चूँकि इस्लाम में किसी भी फेर-बदल की कोई गुंजाईश ही नहीं है. और इस्लामिक लोग सिंहों के उद्भव से पहले भी गैर-मुल्सिम पर आक्रमण कर रहे थे, और आज भी कर रहे हैं और पूरी दुनिया में कर रहे हैं. मुसलमान का भारत में हिन्दू से दंगा है, बर्मा में बौद्ध से अडंगा है, फलस्तीन में यहूदियों से पंगा है, यज़ीदी लड़कियों को कर दिया नंगा है. यूरोप का कानून बदलना है इनको, चूँकि शरिया ही चंगा है. वैसे बाकी सब लड़ाके हैं, बस इस्लाम अमन-पसंद है, इस्लाम बहुत ही भला है, बहुत चंगा है. और मोहम्मद आखिरी पैगम्बर हो चुके. बात खत्म. अब आपके गुरु कहाँ टिकेंगे? कुरान...इलाही किताब. उतर चुकी आसमान से. बस. आप कहते रहो कि गुरुबानी धुर की बाणी है. मुसलमान कैसे मानेंगे? न. थ्योरी को समझें. सब समझ आ जायेगा. वहां पाकिस्तान में तो सूफी संतों की मजारों पर बम फोड़े जाते हैं. मालूम क्यों? चूँकि सूफियों को इस्लाम से बाहर माना जाता है, इस्लाम के खिलाफ माना जाता है. आप मानते रहो कि सूफी मुस्लिम थे, मुस्लिम नहीं मानते और सही भी है. सूफी इस्लाम के खिलाफ ही थे, इस्लाम में से निकले विद्रोही थे. करतार-पुर कॉरिडोर खुलने की बधाइयां दे तो रहे हैं आप पाकिस्तान को, यह भी समझिये कि सत्तर सालों तक यह बंद ही क्यों था? यह बंद इसलिए था चूँकि पाकिस्तान पाकिस्तान है और आप नापाकिस्तान हैं. मुझे बहुत उम्मीद नहीं कि ये खुशियाँ बहुत लम्बे दौर तक टिकने वाली हैं. ख़ुशी होगी मुझे अगर मैं गलत साबित हुआ तो. नोट:- कृपया समझ लीजिये, इस पोस्ट में मैंने कहीं यह सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया है कि सिक्ख हिन्दू हैं या फिर हिन्दू या हिन्दुस्तान के लिए बनाये गए. नमन....तुषार कॉस्मिक

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