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हनुमान जयंती विशेष :-- हनुमान जी के लिए 16 कुंवारी कन्याएं!

रावण को मारने के बाद जब हनुमानजी भरत से मिलते हैं और उन्हें बताते हैं कि राम आ रहे हैं तो भरत ने कहा कि हनुमान जी को कुछ उपहार देंगे. भरत, "देवो वा मानुषो वा त्वमनुक्रोशादिहागतः । प्रियाख्यानस्य ते सौम्य ददामि ब्रुवतः प्रियम् ।। ६.१२८.४३ ।। गवां शतसहस्रं च ग्रामाणां च शतं परम् । सुकुण्डलाः शुभाचारा भार्याः कन्याश्च षोडश ।। ६.१२८.४४ ।। हेमवर्णाः सुनासोरूः शशिसौम्याननाः स्त्रियः । सर्वाभरणसम्पन्नाः सम्पन्नाः कुलजातिभिः ।। ६.१२८.४५ ।। निशम्य रामागमनं नृपात्मजः कपिप्रवीरस्य तदद्भुतोपमम् । प्रहर्षितो रामदिदृक्षया ऽभवत् पुनश्च हर्षादिदमब्रवीद्वचः ।। ६.१२८.४६ ।। अर्थात हे कोमल प्राणी! तुम एक दिव्य प्राणी हो या एक इंसान हो, जो करुणा करके आये हो? तुमने जो मुझे इतनी बढ़िया खबर दी है, उसके बदले में मैं तुम्हें एक सौ हजार गाय, एक सौ सबसे अच्छे गांव और पत्नियों बनाने के लिए16 स्वर्ण रूपी अच्छे आचरण की कुंवारी कन्याएं दूंगा. इन लड़कियों के कानों में सुंदर छल्ले हैं, इनकी नाक और जांघें सुंदर हैं, ये चाँद के रूप जैसी रमणीय हैं और अच्छे परिवार में पैदा हुई हैं." हनुमान जी के...
यह क्या भोकाल है? फेसबुक डाटा चोरी हो गया! अबे फेसबुक पे ज़्यादातर डाटा डाला ही इसलिए जाता है कि वो चोरी जाए-चाहे साधी जाए लेकिन जाए और दूर तक जाए.

दिल्ली में सीलिंग

राजा गार्डन से धौला कुआं को चलो तो शुरू में ही सड़क के दोनों तरफ मार्बल की मार्किट है. ये दूकान-दार कोई छोटे व्यापारी नहीं हैं. करोड़ों के मालिक हैं. लाखों का धंधा रोज़ करते होंगे. इन्होनें अपनी दुकानों के आगे सैंकड़ों फुट जगहें घेर रखीं थीं. मार्बल का काम ही ऐसा है. जगह चाहिए. आज ही पढ़ा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी मोनिटरिंग कमिटी के सदस्य वहां से गुज़र रहे थे. एकाएक उनका ख्याल बन गया. आधी मार्किट सील कर दी. कुछ दंगा-वंगा भी हुआ. कोई दुकानदार गिरफ़्तार भी हो गए. अब ऐसे लोगों के साथ खड़े हैं सब के सब नेता. केजरीवाल भी. एक दम बकवास बात है. मेरा मानना है कि जो इस धरती पर आ गया, उसे रहने की जगह मिलनी ही चाहिए और किराए का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. असल में तो प्रॉपर्टी का कांसेप्ट ही खत्म होना चाहिए. लेकिन वो बहुत दूर की बात है अभी. कम से कम गरीब लोगों को बक्श दिया जाना चाहिए या फिर उन्हें तरीके के घर मिलने चाहियें और वो भी मुफ्त. लेकिन ऐसे अमीर, ऐसे करोड़ों अरबों के मालिकों द्वारा ज़मीन की घेरा-घारी न रोकेंगे तो अराजकता ही फैलेगी और दिल्ली में अराजकता ही है. जिसका जहाँ मन करता है, ...

केजरीवाल: एक लघु समीक्षा

जब केजरीवाल ताज़े-ताज़े उभर रहे थे, शायद २०१२ की बात है, तब मैंने एक लेख लिखा था. टाइटल था, "मूर्ख केजरीवाल." और यकीन जानिये कदम-दर-कदम केजरीवाल ने मुझे सही साबित किया है. ताज़ा मिसाल उनके माफ़ीनामे हैं, जो उन्होंने मानहानि के मुकद्दमों से पीछा छुड़ाने के लिए दिए हैं. कतई अपरिपक्व हैं केजरी सर. बस लगा दिए आरोप. बिना किसी पुख्ता सबूत के. सुनी-सुनाई उड़ा दी. ऐसा तो मैं फेसबुक पर लिखते हुए भी नहीं करता. ज़रूरत हो तो थोड़ा रिसर्च कर लेता हूँ. रिफरेन्स भी खोज के डाल देता हूँ. मुझे पता है कि सवाल उठेंगे. सवाल उठेंगे तो जवाब भी होने चाहियें. और यह साहेब राष्ट्र की राजनीति बदलने चले थे. जनाब को अभी बहुत सीखना है. असल में तो यह केजरीवाल की ही बेवकूफी है कि आज मोदी विराजमान है. कांग्रेस के नीचे से सीट खींच ली, जिसे झट से भाजपा ने लपक लिया. लाइफ-टाइम अवसर था. संघ नब्बे सालों में वो न कर पाया जो केजरी-अन्ना ने उसे करने का मौका दे दिया. सो कुल मिला कर मेरा मानना यह है कि राष्ट्र केजरीवाल की मूर्खताओं का नतीजा भुगत रहा है. दूसरा उनका कमजोर पक्ष है, अपने साथियों को साथ लेकर न चलना. मैंने सु...

कानून और हम

वकील नहीं हूँ. प्रॉपर्टी बिज़नस का छोटा सा कारिन्दा हूँ. वक्त-हालात ने कोर्टों के चक्कर लगवाने थे-लगवा दिए. शुरू में बड़ी मुसीबत लगती थी, अब खेल जैसा लगता है. बहुत कुछ सिखा गया ज़िन्दगी का यह टुकड़ा. ब्लेस्सिंग इन डिस्गाइज़ (Blessing in Disguise)...यानि छुपा हुआ वरदान. कानून व्यवस्था कैसे बेहतर हो-फायदेमंद हो - व्यक्ति और समाज दोनों के लिए? यही विषय है यहाँ .....तो चलिए मेरे साथ ....... 1) अगर आपके पास प्रॉपर्टी है तो 'रजिस्टर्ड वसीयत' ज़रूर करें अन्यथा बाद आपके लोग उस प्रॉपर्टी के लिए दशकों कोर्टों में लड़ते रहेंगे. और हो सके तो प्रॉपर्टी का विभाजन भी कर दें, मतलब किसको कौन सा फ्लोर मिलेगा, कौन सी दूकान मिलेगी, ज़मीन का कौन सा टुकड़ा मिलेगा. यकीन जानें, लाखों झगड़े सिर्फ इस वजह से हैं कोर्टों में चूँकि प्रॉपर्टी छोड़ने वाले ने यह सब तय नहीं किया. Partition Suit कहते हैं इनको. दशकों लटकते हैं ये भी. 2) कोर्ट में जो भी डॉक्यूमेंट दाखिल किये जाते हैं, वो एफिडेविट यानि हल्फिया-बयान यानि शपथ-पत्र के अतंर्गत दिए जाते हैं. इसे ओथ कमिश्नर से attest करवाने के बाद दाखिल किया जा...
I read somewhere, "A hero is only as good as his villain." Wow! Great Words!!
A wise man was dying.  A TV New Reporter asked him: "As you are dying, what do you think of life sir?" "A Good riddance", he replied.
जित्ता धन, समय और ऊर्जा आज तक मन्दिर, गुरूद्वारे और चर्चों में लगा है, उत्ता अगर वैज्ञानिकता पैदा करने में लगा होता तो इंसान को शायद ही नकली खुदाओं के आगे हाथ जोड़ने- मत्थे रगड़ने की ज़रूरत पड़ती.
A park is just like parking. Parking is used to park vehicles. A park is used to park human beings. 
"Ignorance of Law is no Excuse." Right. But the irony is, law is not taught in schools or colleges as a mandatory subject. Does this mean, people learn law by birth? Wow!

Who are we?

Who are we? Newer and updated versions of our parents and Older and outdated version of our kids.

सड़क-नामा

भारत में सड़क सड़क नहीं है...भसड़ है. यह घर है, दुकान है. इसे घेरना बहुत ही आसान है. इसपे सबका हक़ है, बस पैदल चलने वाले को छोड़ के. उसके लिए फुटपाथ जो था, वो अब दुकानें बना कर आबंटित कर दिया गया है. उन दुकानों के आगे कारों की कतार होती है. पदयात्री सड़क के बीचो-बीच जान हथेली पर लेकर चलता जाता है. रोम का ग्लैडिएटर. कहीं पढ़ा था कि एक होता है ‘राईट टू वाक (Right to walk)’, पैदल चलने का हक़, कानूनी हक़. बताओ, पैदल चलने का भी कोई कानूनन हक़ होता है? मतलब अगर कानून आपको यह हक़ न दे तो आप पैदल भी नहीं चल सकते. खैर, एक है पैदल चलने का हक़ ‘राईट टू वाक (Right to walk)’ और दूसरा है ‘राईट टू अर्न (Right to earn)’ यानि कि कमाने का हक़. जब इन दोनों हकों में कानूनी टकराव हुआ तो कोर्ट ने ‘राईट टू अर्न’ को तरजीह देते हुए फुटपाथ पर रेहड़ी-पटड़ी लगाने वालों को टेम्पररी जगहें दे दीं. तह-बज़ारी. अब वो अस्थाई जगह, स्थाई दुकानों को भी मात करती हैं. जिनको दीं थीं, उन में से शायद आधे भी खुद इस्तेमाल नहीं करते. किराए पर दे नहीं सकते कानूनन, भला फुटपाथ भी किराए पर दिया जा सकता है कोई? लेकिन आधे लोग किराया ...

आलोचक

हाँ, मैं सिर्फ आलोचना करता हूँ. और समझ लीजिये, आलोचना शब्द का अर्थ गहन नज़र से देखना होता है, नुक्स निकालना नहीं. लोचन यानि नज़र का प्रयोग. शरीर की ही नहीं बुद्धि की नज़र का भी प्रयोग करना.

सेकुलरिज्म

नहीं, हम एक सेक्युलर स्टेट बिलकुल नहीं है........एक सेक्युलर स्टेट में नास्तिक, आस्तिक, अग्नास्तिक सबकी जगह होनी चाहिए... स्टेट को किसी भी धारणा से कोई मतलब नहीं होता. वो निरपेक्ष है. उसका धर्म संविधान और विधान है. पुराण या कुरान नहीं.....ऐसे में किसी भी तरह की प्रार्थना का कोई मतलब नहीं है स्कूलों में....लेकिन आपके सब स्कूल चाहे सरकारी हों चाहे पंच-सितारी हों, सुबह-सुबह बच्चों को गैर-सेक्युलर बनाते हैं....उनकी सोच पर आस्तिकता का ठप्पा लगाते हैं. आपके तो अधिकांश स्कूलों के नाम भी संतों, गुरुओं के नाम पर हैं. मैंने नहीं देखा कि किसी स्कूल का नाम किसी वैज्ञानिक, किसी फिलोसोफर. किसी कलाकार के नाम पर हो. आपने देखा कि किसी स्कूल का नाम आइंस्टीन स्कूल हो, नीत्शे स्कूल हो, गलेलियो स्कूल हो, या फिर वैन-गोग स्कूल हो......देखा क्या आपने? नाम होंगे सेंट फ्रोएब्ले, सेंट ज़विओर, गुरु हरी किशन स्कूल या फिर दयानंद स्कूल..... अगर प्रार्थना ही करवानी है तो दुनिया के अग्रणी वैज्ञानिकों, कलाकारों, समाज-शास्त्रियों, फिलोसोफरों को धन्य-वाद की प्रार्थना गवा दीजिये. उसमें ऑस्कर वाइल्ड भी, शेक्स...

सम्भोग

सम्भोग शब्द का अर्थ है जिसे स्त्री पुरुष समान रूप से भोगे. लेकिन कुदरती तौर पर स्त्री पुरुष से कहीं ज़्यादा काबिल है इस मामले में. उसका सम्भोग कहीं गहरा है, इतना गहरा कि वो हर धचके के साथ कहीं गहरा आनंद लेती है, पुरुष ऊपर-ऊपर तैरता है, वो गहरे डुबकियाँ मार रही होती है, जभी तो हर कदम में बरबस उसकी सिसकियाँ निकलती हैं. और फिर ओर्गास्म. वो तो इतना गहरा कि पुरुष शायद आधा भी आनंदित न होता हो. कोई सेक्सो-मीटर हो तो वो मेरी बात को साबित कर देगा. और उससे भी बड़ी बात पुरुष एक ओर्गास्म में खल्लास, यह जो शब्द है स्खलित होना, उसका अर्थ ही है, खल्लास होना. खाली होना, चुक जाना. लेकिन वो सब पुरुष के लिए है, वो आगे जारी नहीं रख सकता. लेकिन स्त्री के साथ ऐसा बिलकुल नहीं है. वो एक के बाद एक ओर्गास्म तक जा सकती है. जाए न जाए, उसकी मर्ज़ी, उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमता और एच्छिकता, लेकिन जा सकती है. तो मित्रवर, निष्कर्ष यह है कि सम्भोग शब्द बहुत ही भ्रामक है. सेक्स में सम्भोग बिल...