गुरु शिष्य सम्बन्ध — कुछ अनछूए पहलु

शिष्य  गुरु को माफ़ नहीं करते...........जीसस को जुदास ने बेचा था, उनके परम शिष्यों में से एक था......ओशो का अमेरिका स्थित कम्यून  जो नष्ट हुआ उसमें मा शीला का बड़ा हाथ था....... उनकी सबसे प्रिय शिष्या थी

अक्सर आप देखते हैं कि आप किसी को कोई काम सिखाओ ...वो आप ही के सामने अपनी दूकान सजा कर बैठ जाता है........इसलिए तो सयाने व्यापारी  अपने कर्मचारियों के लिए अलग केबिन बनाते है.....खुद से दूर रखते हैं........अपने कारोबार में जितना पर्दा रख सकते हैं, रखते हैं.

गुरु भी समझते हैं इस बात को....वो अक्सर शिष्यों को खूब घिसते हैं, बेंतेहा पिसते हैं ..........कभी कार मिस्त्री के पास काम करने वाले लड़कों को देखो...वो उस्ताद की मार भी खाते हैं और गाली भी और गधों की तरह काम भी करते हैं........उनको काम जो सीखना है और गुरु भी गुरु घंटाल है, उसे भी पता है कि जितना काम ले सकूं, ले लूं.........खुर्राट वकील के पास काम करने वाले नए नए वकीलों को देखो.....उनसे मजदूरों की तरह काम लिया जाता है,.... निपट मजदूरी.....सालों घिसा जाता है उनको

ऑस्कर वाइल्ड मुझे बहुत प्रिय हैं...... पता नहीं मेरे बाल उनसे कुछ मेल खाते हैं इसलिए या ख्याल ......वो एक जगह कहते हैं कि कोई भी बेहतरीन  काम बिना सजा पाए रहता नहीं........No good deed remains unpunished.....आप किसी को कुछ सिखाओ ....वो आपको माफ कर दे ऐसा होना बहुत मुश्किल है.....जिसे आप कुछ सिखाओ उसका ईगो...उसका अभिमान  आहत हो जाता है...आप उससे ज़्यादा कैसे जानते हैं........हो कौन आप...ठीक है वक्त आने पर आपको औकात दिखा दी जायेगी.....

पढ़ा था कहीं कि पैसे से सक्षम गुरु भी भिक्षा मांगते हैं.....असली गुरु....शिक्षा देते हैं लेकिन फिर साथ में भिक्षा भी मांगते हैं....भिक्षा इसलिए कि जिसे शिक्षा दी गयी है वो जब भिक्षा दे तो उसे लगे कि उसने भी कुछ दिया है बदले में...शिक्षा यूँ ही नहीं ली.........आप देखिये न   भिक्षा और शिक्षा  दोनों शब्द कितने करीब  हैं...सहोदर 

सच बात यह है कि आप कभी किसी ढंग की शिक्षा की कीमत चुका ही नहीं सकते....आप जो भी चुकाते हैं वो आपकी चुकाने की सीमा है, न कि उस शिक्षा की कीमत......मिसाल के लिए जिसने भी बल्ब दिया दुनिया को आप उसकी देन की कीमत कैसे चुकायेंगे...सदियों सदियों नहीं चुका सकते,,,,,,जिसने दुनिया  को आयुर्वेद  दिया उसकी कीमत  कैसे चुकायेंगे .....आप दवा की   कीमत  दे सकते  हैं, लेकिन उस के पीछे  के ज्ञान की कीमत कैसे चुकायेंगे? सही शिक्षा  बेशकीमती है. .

मैं तो गुरु शिष्य सम्बन्धों को पारम्परिक ढंग से नहीं मानता...मेरा मानना है कि हर व्यक्ति गुरु है कहीं, तो कहीं शिष्य है......बहुत लोगों से मैंने सीखा और बहुतों ने मुझ से सीखा....पहले तो लोग मानने को ही तैयार नहीं होते कि उन्होंने आपसे कुछ सीखा है....क्रेडिट देने में ही जान निकल जाती है....यहीं फेसबुक पर ही देख लीजिये......मेरा लिखा अक्सर चुराते हैं और यदि मना करूं तो मुझे ही गरियाते हैं.....क्रेडिट देकर राज़ी नहीं....जो लोग मान भी लेते हैं कि मुझ से कुछ सीखा है उनमें से कुछ के मानने में भी मानने जैसा कुछ है नहीं, वो वक्त पड़ने पर मुझ पर तीर चलाने से नहीं चूकते ......

एक लड़का  झुग्गियों में रहता था.....सालों पहले की बात बता रहा हूँ...मेरा दफ्तर था प्रॉपर्टी का......उसे काम पर लगा लिया....कुछ नहीं आता था उसे....साथ रह रह बहुत कुछ सीख गया....आज भी कहता है कि मुझ से सीखा है बहुत कुछ.....लेकिन पीछे उसके ज़रिये कुछ माल खरीदना था.....पट्ठा कमीशन मारने से नहीं चूका......कमीशन लेना गलत नहीं लेकिन उसे मैं अलग से उसके समय की कीमत दे रहा था इसलिए गलत था......महान शिष्य.

एक और मित्रनुमा शत्रु.....दोस्त की खाल में दुश्मन......बहुत कुछ मुझ से सीखा उसने.........जूतों के छोटे मोटे काम में था.......प्रॉपर्टी में आ गया ....आज तक खूब जमा हुआ है लेकिन पीठ पीछे कभी  मेरे खिलाफ  लात या बात चलाने में नहीं चूका...महान शिष्य.

जब भी कोई मुझे कहता है कि उसने मुझ से बहुत कुछ सीखा है, जीवन बदल  गया है, दशा और दिशा सुधर गयी है,  मेरा दिल दहल जाता है, पसीने छूट जाते हैं, पैर काँप जाते हैं, नज़र धुंधला जाती है, चींटी भी हाथी नज़र आती है  

मैंने ही लिखा था कहीं, “No Guru is real Guru until half the world wants him dead.”कोई गुरु महान नहीं जब तक आधी दुनिया उसकी मौत  न चाहती हो.



सिखाने की कीमत चुकानी पड़ती है बाबू मोशाय........

 गुरु शिष्य परम्परा बहुत महान मानी जाती है, मैं नहीं कहता कि जो मैंने लिखा है  वो ही एक मात्र सच है.....लेकिन वो भी एक सच है ....  यह थोड़ा वो पहलु है जो कम ही दीखता है, दिखाया जाता है,  सो बन्दा हाज़िर है, अपने फन के साथ, अपने ज़हर उगलते फन के साथ  

नमस्कार.....तुषार कोस्मिक.....कॉपी राईट

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