Wednesday, 12 August 2015

डरपोक धर्म

जिस तरह से किसी को मंदिर मस्ज़िद में दिन रात यह कहने का हक़ है कि भगवान, अल्लाह, गॉड ऐसा है, वैसा है...... उसके अवतार, उसके पैगम्बर ये  हैं, वे हैं, उसी तरह से किसी को भी यह कहने का हक़ है कि वो इन सब बातों को गलत मानता है.....और उसको हक़ है यह  कहने  का  कि  उसकी नज़र में सही क्या है......

सेकुलरिज्म का और फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का मतलब यही है........इसमें तथाकथित मदिरवाद, मस्ज़िदवाद गुरुद्वारावाद की यदि छूट है तो इसमें इन सब को न मानने की भी छूट है......आप भगवान, अल्लाह, दीन, धर्म, मज़हब के बारे में अपना मत रख सकते हैं.

आप किसी भी चली आ रही परिपाटी को "हाँ" कर सकते हैं और मैं न कर सकता हूँ......आप उसके समर्थन में खड़े हो सकते हैं.....मैं उसके विरोध में खड़ा हो सकता हूँ.....आपके हिसाब से हिन्दू या मुस्लिम या ईसाई जीवन पद्धति सही हो सकती है, मेरे हिसाब से कोई और जीवन पद्धति .....आप मेरी विचारधारा को गलत कह सकते हाँ, मैं आपकी विचार धारा को....इसमें तकलीफ क्या है?

लेकिन तकलीफ है, तथा कथित धार्मिक को बड़ी तकलीफ है?

उसे बड़ा डर है....सदियों से जमी दुकानदारी गिर न जाए.......कहीं मंदिर मस्ज़िद ध्वस्त न हो जाएं...इसलिए तमाम तरह के तर्क घड़े जाते हैं.

किसी धर्म के खिलाफ मत बोलो? अटैक मत करो... तुम्हारा धर्म जो अटैक करता है हर रोज़ हमारी विचारधारा पर...हर रोज़ मंदिर से तुम चीखते हो, भगवान ऐसा है, वैसा है....वो जो अटैक करता है  तुम्हारा पंडित, वो? 

मुझे कहते  रहेंगे कि यदि मैंने अलां धर्म में से कुछ गलत देख लिख दिया तो दूसरे धर्म के विषय में क्यों नहीं लिखा.........असल मतलब बस इतना है कि  किसी तरह से अपना धंधा बंद न हो जाए...जो मैंने लिखा उसकी ठीक गलत की तहकीकात तो करनी नहीं है? उसके विषय में कोई खोजबीन नहीं करनी है.....उसमें तथ्य कितना है वो तो देखना  नहीं है ....अपने धार्मिक ग्रन्थ पलट कर देख लें ...फिर अपनी बुद्धि पलट कर देख लें ......न न...वो सब नहीं करना है......मेरे धर्म पर अटैक कयों किया? 

अटैक तब होता है जब तुम्हारे धार्मिक ग्रन्थ में जो लिखा है उससे कोई सन्दर्भ लिए बिना ही कोई बात कही जाए......वहां लिखे शब्द भी मेरे नहीं होते....और कई बार तो व्याख्या भी मेरी नहीं होती, फिर भी तकलीफ है....फिर भी इनको लगता है कि अटैक हो गया.

मैंने लिखा कि वाल्मीकि रामायण में शबरी के जूठे बेर खाने का कोई किस्सा नहीं है.....इसमें अटैक हो गया.....किताब उठा कर देख लो....यदि मैं सही हूँ तो तुम्हें तो मुझे धन्यवाद देना चाहिए कि मैंने एक नामालूम जानकारी सामने ला कर रख दी.....एक झूठ का पर्दाफाश किया.नहीं?लेकिन यह अटैक है...यह इनके धर्म पर अटैक है...यह धर्म है या झूठों का पुलिंदा?

और अब यदि व्याख्या मैं कर दूं अपने हिसाब से तो और भी परेशानी है ......ये लोग ...ये मुल्ले मौलवी, ये पोंगे पंडित ...ये व्याख्या करते रहें दिन रात.....अपने हिसाब से समझाते रहें ...किताबों में लिखे का मतलब....मैंने समझा दिया अपने गणित से तो तकलीफ हो गई.

बहुत डर है इनको........

डरो मत भाई...स्वागत करो.......यदि कोई आपकी किताबों पर दिमाग लगाना चाहता है तो लगाने दो 

जिसे जो ठीक लगता हो, उसे मानने दो.

दूसरे के धर्म को गलत साबित करने से तुम्हारा धर्म कैसे सही हो जायेगा?

और जब तुम यह कहते हो कि दूसरे के धर्म पर कमेंट करो.....मात्र मेरे ही धर्म पर क्यूँ...जब तुम यह कहते हो कि यदि दलेरी है तो फिर दूसरे धर्म पर बात करो, इस धर्म पर करो, उस धर्म पर करो...तो तुम्हारी कायरता साफ़ दीखती है....तुम इतना डरे हो कि तुम चाहते ही नहीं कोई भी  तुम्हारे धर्म की छानबीन करे.........तुम्हारी  इच्छा मात्र इतनी है कि किसी भी तरह से तुम्हारी दूकान जमी रहे.....कहीं लोग सवाल न उठाने लगें...कहें लोग अपना दिमाग प्रयोग न करने लगें ...बस

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