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Showing posts from March, 2017

लाईयो रे मेरा लट्ठ

सुना है डॉक्टर बन्नुओं को लोग धुनने पे आ गए हैं. अब डागदर बाबु चिल्ला-चिल्ली कर रिये हैं, "हम भगवान थोड़ा है, इंसान ही तो हैं." @#$%^&, जब तुम फीस लेवो, वो भी इंसानों जैसी ही होवे, भगवानों जैसी थोड़ा न होवे कोई? लाईयो रे मेरा लट्ठ.

सब युद्ध असल में विचार-युद्ध हैं.

एटम बम से भी खतरनाक मालूम है क्या है? तार्किक, फैक्ट विहीन विचार, मान्यताएं. जंगें कोई हथियारों से थोड़ा होती हैं, वो तो बस औज़ार है. असल कारण उनके पीछे के विचार हैं. सब युद्ध असल में विचार-युद्ध हैं. फिर से पढ़िए, "सब युद्ध असल में विचार-युद्ध हैं." सबसे खतरनाक हिन्दू, मुस्लिम होना नहीं है. खतरनाक है किसी भी विचार-धारा को पकड़-जकड़ लेना. असल में शब्द 'विचार-धारा' का प्रयोग ही गलत है. चूँकि अगर 'धारा' हो तो दिक्कत ही नहीं है और न ही उसे पकड़ा जा सकता है. यह तो विचार का पोखर है. गन्दला पोखर. तो जब कोई हिन्दू, मुस्लिम, यह, वह, हो जाता है, तो असल में किसी न किसी गंदले पोखर में दुबक जाता है, डुबक जाता है. पोखर इसलिए लिखा चूँकि उसमें कोई धारा नहीं है, वो रुके पानी जैसा है. और रूका पानी तो गन्दला ही होता है. दुनिया में अधिकांश गंद उसी गंदले पोखर की वजह है. विचार का गन्दला पोखर. बस हो जाओ हिन्दू, हो जाओ मुस्लिम, ईसाई या फिर कम्युनिस्ट. ठप्पा कोई भी हो. अब जो मर्ज़ी समझा लो, बाकी सब समझ आएगा लेकिन उस गंदले पोखर के खिलाफ कुछ भी समझ नहीं आएगा. हर नए विचार को कां...

सम्भोग

सम्भोग शब्द का अर्थ है जिसे स्त्री पुरुष समान रूप से भोगे. लेकिन कुदरती तौर पर स्त्री पुरुष से कहीं ज़्यादा काबिल है इस मामले में. उसका सम्भोग कहीं गहरा है, इतना गहरा कि वो हर धचके के साथ कहीं गहरा आनंद लेती है, पुरुष ऊपर-ऊपर तैरता है, वो गहरे डुबकियाँ मार रही होती है, जभी तो हर कदम में बरबस उसकी सिसकियाँ निकलती हैं. और फिर ओर्गास्म. वो तो इतना गहरा कि पुरुष शायद आधा भी आनंदित न होता हो. कोई सेक्सो-मीटर हो तो वो मेरी बात को साबित कर देगा. और उससे भी बड़ी बात पुरुष एक ओर्गास्म में खल्लास, यह जो शब्द है स्खलित होना, उसका अर्थ ही है, खल्लास होना. खाली होना, चुक जाना. लेकिन वो सब पुरुष के लिए है, वो आगे जारी नहीं रख सकता. लेकिन स्त्री के साथ ऐसा बिलकुल नहीं है. वो एक के बाद एक ओर्गास्म तक जा सकती है. जाए न जाए, उसकी मर्ज़ी, उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमता और एच्छिकता, लेकिन जा सकती है. तो मित्रवर, निष्कर्ष यह है कि सम्भोग शब्द बहुत ही भ्रामक है. सेक्स में सम्भोग, सम-...

इमोशनल इंटेलिजेंस

मैं तर्क का हिमायती हूँ. इतना कि मेरा मानना है कि गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ तर्क युद्ध होना चाहिए. तर्क की अग्नि से गुज़रे बिना मानव मन पर सदियों-सदियों से पड़े अंध-विश्वासों की मैल गलेगी नहीं. लेकिन आज बात इमोशन की, भावनाओं की. क्या तार्किक होना इमोशनल होने के खिलाफ है? और यह 'इमोशनल इंटेलिजेंस' क्या है? आईये देखिये. आपने अक्सर खबरें सुनी होंगी, ज़रा सी बात पर कत्ल हो जाते हैं. मरने वाला तो मर जाता है लेकिन मारने वाला भी मर जाता है. उसके पीछे उसका परिवार भी मारा जाता है. “ज़रा सी बात”. दिल्ली में रोड़ रेज की खबरें लगभग रोज़ सुनते-पढ़ते होंगे आप. ऐसे में हो सकता है कि कोई इंसान किसी की बदतमीज़ी बर्दाश्त कर ले. हो सकता है कि वो बुज़दिल दिखाई दे, लेकिन उसकी यह वक्ती बुजदिली उसे ख्वाह्मखाह की मुसीबतों से बचा भी सकती है. इसे कहते हैं 'भावनात्मक बुद्धिमत्ता'. इमोशनल इंटेलिजेंस. अब अगली बात. मर्द को दर्द नहीं होता. लेकिन मर्द को सेक्स का मज़ा भी नहीं आता क्या? दर्द होता है, मर्द हो चाहे औरत. लेकिन मर्द ज़ाहिर नहीं करता. ज़ाहिर करेगा तो उसकी मर्दानगी पर शक किया जाएगा. लेकिन वो इत...

स्वास्थ्य

बड़ा विषय है. जो कुछ भी लिखने जा रहा हूँ, वो बस कुछ-कुछ ही है. बहुत पहले लिखा था कहीं कि इंसान बूढ़ा उम्र से नहीं, ग्रेविटी से होता है. आपने कभी पढ़ा-सुना हो कि जो लोग स्पेस में रहे बीस-तीस साल, जब वो वापिस आये तो उनके बच्चे उनके बराबर की उम्र के दिख रहे थे.स्पेस में रहने वाले लोगों की उम्र रुक गई थी. आगे ही नहीं बढ़ी. मुझे नहीं पता कि यह कितना सत्य है. लेकिन मेरी समझ से सत्य होना चाहिए. वजह है. वजह है ग्रेविटी. ग्रेविटेशनल पुल. आपका वज़न क्या है? मानो सत्तर किलो. इसका मतलब है कि आपके शरीर पर प्रतिपल सत्तर किलो का खिचांव पड़ रहा है नीचे को. मान लीजिये कि आपके कंधों पर बीस किलो वज़न डाल दिया गया, तो आपको क्या लगता है कि आप सिर्फ बीस किलो उठा रहे हैं? नहीं. अब आप नब्बे किलो वज़न उठा रहे हैं. सत्तर अपना मिला कर. अब धरती आप को नीचे की तरफ नब्बे किलो वज़न से खींच रही है. अब जिस चीज़ को कोई लगातार सत्तर किलो वज़न से नीचे को खींचा जा रहा हो तो उसका मांस नहीं लटकेगा क्या? उस के जोड़ों में खिंचाव नहीं आएगा क्या? उसके बाकी सिस्टम में कोई नेगेटिव फर्क नहीं आएगा क्या? बिलकुल आएगा. आपके अ...

दो सलाहें

१.सब मित्रों से गुज़ारिश, फेसबुक का 'रिप्लाई' आप्शन न प्रयोग कर सीधे कमेंट लिखें, वो सबको नज़र आता है और किसी व्यक्ति विशेष को सम्बोधित करना हो तो उसका नाम लिख दें. २.और 'शेयर' आप्शन भी न प्रयोग करके सीधे कॉपी पेस्ट करें और ओरिजिनल लेखक का नाम टैग कर दें. ज़्यादा पढ़ा जाएगा.

वैसे तो कोई टके सेर नहीं पूछता मुझे, फिर भी खुश-फ़हमी हुई मुझे आज कि शायद किसी को मुझ से बात करने का मन हो. नम्बर दिया है.... 9876543210

कट्टर

अक्सर सुनता हूँ कहते मित्रों को," मैं फलां पंथ को मानता हूँ लेकिन कट्टर नहीं हूँ" "किसी भी धर्म को, मज़हब को, दीन को मानो लेकिन कट्टर मत होवो." बकवास! जब आप किसी ख़ास ढांचे में, खांचे में खुद को ढालते हैं तो वो कट्टर होना ही होता है. मतलब किसी दीन, मज़हब, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय को मानना और कट्टर होना, दो नहीं एक ही बात है. कट्टर होना/ फंडामेंटल होना.......मतलब अपनी मान्यताओं से टस से मस नहीं होना...कोई लाख तर्क दे....तथ्य दे...प्रयोग से बताये...साबित कर दे......"पंचों का कहा, सर माथे लेकिन परनाला उत्थे दा उत्थे". धार्मिक, दीनी लोगों को कोई भी तर्क दे, कैसा भी तर्क दे...वो आम तौर पर टस से मस नहीं होते. इस लिए अब एक विचार यह भी पैदा हो रहा है कि किसी तरह से नए बच्चों की परवरिश दीनी, धार्मिक लोगों की पकड़ से बाहर की जाए. कट्टर मतलब दूसरों को अपनी बात जबरन मनवाने से नहीं है......न... कट्टर होना, यह नहीं है. यह मुसलमान होना है. कट्टर होना, मतलब आप जो भी मानते हैं, बस वो ही मानते हैं. जोर से. आपकी पकड़, जकड़ तर्क के दायरे से बाहर हो जाती है. वो मानना कुछ भी ...

अक्सर लोग गलत को गलत और सही को सही मानने में यकीन करते हैं लेकिन दिक्कत तो यह है उनका गलत ज़रूरी नहीं गलत हो और उनका सही ज़रूरी नहीं सही हो.

बदमाश औरतें

लानत है. आज किसी स्त्री पर अत्याचार सुन भर लिया जाए....क्या औरत, क्या मर्द.....निकल पडेंगे.....मोमबत्तियां लेकर.......फेसबुक भर जायेगा स्त्री समर्थन में ......इडियट. जब औरत मर्द पर अत्याचार करती है तब कहाँ होते हैं ऐसे लोग....ख़ास करके औरतें....वो क्यों नहीं खड़ी होतीं ऐसे में आदमी के साथ? एक कोई जसलीन कौर थीं... तिलक नगर दिल्ली का केस था...एक लडके को खाहमखाह फांस रखा था केस में.......चैनल दर चैनल दिखा रहे थे पीछे. उम्दा केस... यह समझने को कि समाज में पलड़ा किसी भी एक तरफ झुक जाए तो ना-इंसाफी होनी शुरू हो जाती है. उस लड़के पर आरोप कि उसने लड़की को छेड़ा.........सबूत कुछ भी नहीं ....गवाह जसलीन के खिलाफ बोल रहे थे...फिर भी केस लड़के के खिलाफ ........उस लड़के ने लड़की को टच तक नहीं किया. कुछ कहा सुनी ज़रूर हुई. मैं आपसे पूछता हूँ कि यदि आदमी आदमी को थप्पड़ मार दें तो क्या यह सेक्सुअल आक्रमण का केस है? नहीं न. अब यदि जिसे थप्पड़ मारा हो वो औरत हो तो क्या? लेकिन सम्भावना है कि सेक्सुअल आक्रमण का केस बनाया जाए. एक बहुत प्रसिद्ध केस था. निशा शर्मा का.लड़की को नायिका बना ...

कायनात अल्लाह की किताब है और ज़र्रा ज़र्रा उसका पैगम्बर.

मज़मा

आईये, आईये, मेहरबान, कदरदान, पानदान, पीकदान...आईये, आईये. ए साहेब, जनाब, मोहतरमा ध्यान किदर है......सबसे अच्छी पोस्ट इधर है.......रंग-बिरंग-बदरंग पोस्ट......आईये, आईये, सेक्स पे पढ़ना हो या टैक्स पे........धरम  पे पढना हो या भरम  पे......मज़मा चालू है...आईये, आईये. ए मैडम, आप भी आयें...अपने साहेब को लेते आईये...जी....हाँ जी, हज़ूर...आईये ...आपके बाल  उड़ गए हैं  या जहाँ बाल नहीं होने चाहियें वहां जुड़ गए हैं.....  चिंता न करें...हम मदद करेंगे......मैं हूँ न.......आईए, आईये. उलझों को सुलझाते हैं और सुलझों को उलझाते हैं....नहीं..नहीं...मल्लब सुलझों को और सुलझाते हैं...ढंग से मिस-गाइड करना अपना फर्ज़ और कानून है.....आईए, आईये. अपने साथ यारों, प्यारों, बेकरारों, बेकारों को...सबको साथ लेते आईये...मज़मा चालू है......थोड़ी देर का शो है..... कल हम कहाँ तुम कहाँ.... आईये. आईये. मदारी...तुषार कॉस्मिक.

पहले तुम्हें सेक्स से नवाज़ा गया, जब तुम उस नेमत का सही इस्तेमाल नहीं समझे तो तुम्हें हाथ दिए और जब तुम फिर भी नहीं समझे तो तुम्हें "अपना हाथ जगन्नाथ की" हिदायत दी गई. सच में जगन्नाथ बड़ा मेहरबान है.

::: तारक फतह से सावधान :::

तारक फतह बहुत मुसलमानों की आँख की किरकिरी बने हैं. और बहुत से हिन्दुओं के चहेते.  होना उल्टा चाहिए.  मुसलमानों को उनका शुक्र-गुज़ार होना चाहिए कि वो मुसलमानों को सिखा रहे हैं कि किसी तरह से ठुक-पिट कर आज की दुनिया में रहने के काबिल बन जाओ. डेमोक्रेसी को मानो, सेकुलरिज्म को मानो. कत्लो-गारत से हटो. लेकिन  बाकी दुनिया को उनसे सावधान होना चाहिए. चूँकि  असल में वो धोखा दे रहे हैं. उनका फंडा है, "एक अल्लाह का इस्लाम है, एक मुल्ला का इस्लाम है." फिर से पढ़ें, चश्मा लगा कर पढें, अगर नज़र सही है तो माइक्रोस्कोप के नीचे रख पढ़ें. अंडरलाइन नहीं दिख रहा, बोल्ड नहीं दिख रहा लेकिन  अंडरलाइन और बोल्ड मान कर पढें.  तारक फतह का बेसिक फंडा है," "एक अल्लाह का इस्लाम है, एक मुल्ला का इस्लाम है." ज़ाहिर है, वो अल्लाह के इस्लाम के साथ खड़े हैं. उनके मुताबिक अल्लाह के इस्लाम में न बुरका है और न ही दुसरे किसी  मज़हब की खिलाफ़त. बकवास! कोई दो इस्लाम नहीं हैं. इस्लाम सिर्फ एक है. जो कुरान से आता है.  कुरान पढ़ लीजिए, सब साफ़ हो जाएगा. वहां से सब आता है....

सर्वे

गली में सर्वे करते फिर रहे थे....आपके बच्चे सूप कौन सी कंपनी का पीते हैं? इडियट. दिल किया थप्पड़ मार कर भगा दूं. एक तो वैसे ही दरवाज़े बजा-बजा कर घर की औरतों को मज़बूर कर रहे थे कि इन महाराज के सवालों का जवाब दें. ऊपर से सवाल इतने बकवास. चलते-चलते मैंने कहा, "सूप पीते हैं हम लेकिन टमाटर का. सब्ज़ियों का. किसी कम्पनी का नहीं." वो अज़ीब शक्ल बना कर देख रहे थे. मुझे लगा नहीं कि उनको मेरी बात समझ में आई.

गंगा जमुनी तहज़ीब! बुल शिट!!

टीवी हमारे घर में है नहीं. कब विदा हो गया पता ही नहीं लगा. चुपके-चुपके उसकी जगह डेस्कटॉप, लैपटॉप्स और टैबलेट ने ले ली. बुद्धू-बक्से की विदाई. इन्टरनेट हमें हमारी मर्ज़ी के मुताबिक, हमारे समय के मुताबिक प्रोग्राम देखने की आज़ादी देता है. तो तारक फतह का टीवी प्रोग्राम "फतह का फतवा" देख रहा था. टीवी पर नहीं, youtube पर. प्रोग्राम नंबर 9. एक मौलाना साहेब गर्म बहस में तमतमा गए. और फतह साहेब के खिलाफ लगे अनाप-शनाप कहने. उनके तरकश में से निकले तर्कों के बड़े तीरों में से एक था कि फतह साहेब की बेटी ने एक हिन्दू से विवाह किया है. और इस्लाम में इसकी इजाज़त ही नहीं है. इस्लाम के मुताबिक, एक मुस्लिम औरत की शादी गैर-मुस्लिम से गर होती है तो यह "जिना" है. "जिना" व्यभिचार/ छिनाल-पने को कहा जाता है. ऐसा कहते हुए इन मौलाना ने वहाँ मौज़ूद एक और मुस्लिम महिला पर भी यही आरोप लगाया कि उनकी शादी भी किसी हिन्दू से हो रखी है और वो भी "जिना" कर रही हैं. खैर, मौलाना साहेब को ऑनलाइन प्रोग्राम से निकाल बाहर किया गया. लेकिन मुझे लगता है कि मौलाना साहेब सही फर...

ट्रम्प का मुस्लिम मुल्कों पर वीज़ा बैन

और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख़्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख़्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आखि़रत में सख़्त घाटे में रहेगा ( कुरआन 3.85) If anyone desires a religion other than Islam (submission to Allah), never will it be accepted of him; and in the Hereafter He will be in the ranks of those who have lost (All spiritual good). (Quran 3.19) ओ नबी, जो भी नहीं मानते, या असल में नहीं मानते लेकिन मानने का झूठा नाटक करते हैं, उनके खिलाफ भंयकर युद्ध कर. जहन्नुम ही उनका घर है. (कुरआन-66.9) O Prophet! strive hard against the unbelievers and the hypocrites, and be hard against them; and their abode is hell; and evil is the resort. (Quran 66.9) (मैं) उस ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है। अलिफ़ लाम मीम अल्लाह ही वह (ख़ुदा) है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं है. वही जि़न्दा (और) सारे जहान का सॅभालने वाला है ((3.1 & 3.2)  Alif, Lam, Meem. Allah - there is no deity except Him, the Ever-Living,...

गुरमेहर कौर

गुरमेहर कौर ने अपने पिता की मौत के कारण को समझने का प्रयास किया. उन्हें कारण युद्ध लगा. लेकिन युद्ध के कारणों को भी समझतीं तो बेहतर होता.  गुरमेहर कौर जब कहती हैं कि उनके पिता को युद्ध ने मारा, पाकिस्तान ने नहीं, वो अधूरी बात है. उनके पिता इसलिए मरे क्यूंकि धरती पाकिस्तान, हिन्दुस्तान, अफगानिस्तान, बलोचिस्तान और पता नहीं कौन से स्तान, स्थान में बंटी है. अभी खालिस्तान बनते-बनते रह गया.  मैं 'कॉस्मिक' लिखता हूँ अपना सरनेम. मानता हूँ कि कायनात एक है. दुनिया एक होनी चाहिए. धरती पर अलग-अलग मुल्क  नहीं होने चाहियें. मुल्क हैं तो फौजें हैं. फौजें हैं तो युद्ध हैं. युद्ध हैं तो गुरमेहर के पिता जैसे अनेक पिता, भ्राता मरेंगे. मरते रहेंगे. जब हम कारण सही समझें, तभी सही निवारण भी समझ पाते हैं.