Thursday, 9 March 2017

कट्टर

अक्सर सुनता हूँ कहते मित्रों को," मैं फलां पंथ को मानता हूँ लेकिन कट्टर नहीं हूँ" "किसी भी धर्म को, मज़हब को, दीन को मानो लेकिन कट्टर मत होवो." बकवास! जब आप किसी ख़ास ढांचे में, खांचे में खुद को ढालते हैं तो वो कट्टर होना ही होता है. मतलब किसी दीन, मज़हब, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय को मानना और कट्टर होना, दो नहीं एक ही बात है. कट्टर होना/ फंडामेंटल होना.......मतलब अपनी मान्यताओं से टस से मस नहीं होना...कोई लाख तर्क दे....तथ्य दे...प्रयोग से बताये...साबित कर दे......"पंचों का कहा, सर माथे लेकिन परनाला उत्थे दा उत्थे". धार्मिक, दीनी लोगों को कोई भी तर्क दे, कैसा भी तर्क दे...वो आम तौर पर टस से मस नहीं होते. इस लिए अब एक विचार यह भी पैदा हो रहा है कि किसी तरह से नए बच्चों की परवरिश दीनी, धार्मिक लोगों की पकड़ से बाहर की जाए. कट्टर मतलब दूसरों को अपनी बात जबरन मनवाने से नहीं है......न... कट्टर होना, यह नहीं है. यह मुसलमान होना है. कट्टर होना, मतलब आप जो भी मानते हैं, बस वो ही मानते हैं. जोर से. आपकी पकड़, जकड़ तर्क के दायरे से बाहर हो जाती है. वो मानना कुछ भी हो सकता है. कट्टरता का मतलब खुद को एक खूंटे से बाँध लेने से है. तो जब कोई कहता है कि मैं धार्मिक हूँ लेकिन कट्टर नहीं, तो मैं अंदर अंदर ही हँसता हूँ.

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