तुम तो लगे हो अपने और अपने परिवार के लिए धन इकट्ठा करने.
फिर जब नाली साफ़ न हो, सड़क पर खड्डे हों, पुलिस बदतमीज़ हो, जज बे-ईमान हो तो तुम्हें क्या? तुमने कोई योग-दान दिया था यह सब ठीक करने को? नहीं दिया था.
तब तो तुम ने यही सोचा कि मुझे क्या? मैं क्यों समय खराब करूं? कौन पड़े इस सब पच्चड़ मनें? घर-परिवार पाल लूं, यही काफी है. यही सब सोचा न.
अब जब सड़क पर तेरी बहन-बेटी के साथ कोई गुंडा-गर्दी करता है तो पुलिस सही केस नहीं लिखती, कोर्ट सही आर्डर नहीं लिखती, तो सिस्टम की नाकामी खलती है. खलती है न?
भैये जैसे अपनी, अपने परिवार की बेहतरी के लिए जी-जान लगाते हो, गिरगिटियाते हो, वैसे इस सिस्टम को सुधारने के लिए भी दिमाग लगाओ, जी-जान लगाओ, गाली सहो, छित्तर खाओ, तभी तुम हकदार हो सिस्टम को कोसने को.
वरना जहाँ तुमने कुछ दिया ही नहीं, वहां से कुछ भी पाने की उम्मीद मत रखो.

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