Monday, 20 August 2018

नींद

“वो मुर्दों से शर्त लगा कर सो गया.” सुरेन्द्र मोहन पाठक अक्सर लिखते हैं यह अपने नोवेलों में. लेकिन जैसे-जैसे जीवन में आगे बढ़ते हैं, कब सोते हैं ऐसे? नींद आती भी है तो उचटी-उचटी. बचपने में ‘निन्नी’ आती है तो ऐसे कि समय खो ही जाता है. असल में समय तो अपने आप में कुछ है भी नहीं. अगर मन खो जाये तो समय खो ही जायेगा. तब लगता है कि अभी तो सोये थे, अभी सुबह कैसे हो गई? लेकिन यह अहसास फिर खो जाता है. न वैसी गहन नींद आती है, न वैसा अहसास. ‘नींद’. इस विषय पर कई बार लिखना चाहा, लेकिन आज ही क्यों लिखने बैठा? वजह है. मैं खाना खाते ही लेट गया और लेटते ही सो गया. नींद में था कि सिरहाने रखा फोन बजा. अधनींदा सा मैं, फोन उठा बतियाने लगा और आखिर में मैंने सामने वाले को कहा, “सर, थोड़ा तबियत खराब सी थी, सो गया था, मुझे तो लगा कि शायद सुबह हो चुकी लेकिन अभी तो रात के ग्यारह ही बजे हैं.” डेढ़-दो घंटे की नींद और लगा जैसे दस घंटे बीत चुके. समय का अहसास गड्ड-मड्ड हो गया था इस नींद में. फिर नींद के विषय में सोचने लगा और सोचते-सोचते सोचा कि लिख ही दूं इस विषय पर, सो बन्दा हाज़िर-नाज़िर है. मेरा मानना है कि ‘जब जागो तब सवेर और जब सोवो तब अंधेर’. मतलब यह जो सूरज के साथ उठना और सूरज के सोने पर सोना, यह वैसे तो सही है, सुबह सब कायनात जागती है, उसके साथ ही जगना चाहिए लेकिन अगर आप ऐसा न भी कर पाओ तो भी कोई पहाड़ न टूट पड़ेगा. मैं उठता हूँ सुबह-सवेरे भी. पार्क भी जाता हूँ और फिर आकर सो भी जाता हूँ. कभी भी कुर्सी पर बैठे-बैठे सो जाता है. सोफ़ा चेयर हो-ऑफिस चेयर हो, मैं कहीं भी सो सकता हूँ. सिटींग पोजीशन में. रात को तो ज़मीन पर बिना कुछ बिछाए सोता हूँ. बस तकिये और गद्दियाँ ढेर सारी होनी चाहियें. लेफ्ट साइड ज्यादा सोता हूँ, कहीं पढ़ा था कि हार्ट के लिए अच्छा होता है और मैंने महसूस भी किया कि यह सही है, अगर कभी दर्दे-दिल हो तो इस तरह लेटने से तुरत राहत मिलती है. दोनों घुटनों में गद्दियाँ दबी होती है. दो गद्दियाँ दोनों बाँहों के बीच और एक तकिया सर के नीचे. यानि कुल मिला कर चार गद्दियाँ और एक तकिया. नीचे सफेद मार्बल का फर्श. यह है मेरे सोने का ढंग. और टुकड़ों में सोता हूँ. कभी भी दिन में झपक लेता हूँ. ध्यान पे ध्यान करते हुए कब सो जाता हूँ पता ही नहीं लगता. मैं बहुत छोटा था तो माँ-पिता जी के साथ वैष्णों देवी जाता था, देखता था लोग चट्टानों पर सोये होते थे. आज भी अनेक लोग सड़कों पर-फुटपाथों पर सोते हैं. और कई महानुभाव तो सड़क की बीचों-बीच बने डिवाइडर पर बड़े शान से मौत को ललकारते हुए सो रहे होते हैं. मुझे तो फिर भी मार्बल का साफ़ सुथरा फ़र्श मुहैया है सोने को. जिनको ध्यान का कुछ नहीं पता निश्चित ही जीवन में कुछ खो रहे हैं. भैया, आप सिद्ध-बुद्ध होवो न होवो लेकिन ध्यान अगर सीखा होगा तो आप स्वस्थ होंगे, स्वयम में स्थित होंगे और स्वयम में स्थित होते ही सब तरह की चिंता-फ़िक्र तिरोहित हो जाती हैं और ऐसा होते ही तन भी शांत हो जाता है. खैर, बड़ी बेटी जब बहुत छोटी थी तो मैं उसके कान में बहुत धीरे-धीरे बुदबुदाता था, इतना कि वो उठे न, इतना कि मेरी आवाज़ उस तक पहुंचे. अब पहुँचती थी या नहीं, कितना पहुँचती थी, कितना नहीं, यह सब पक्का कुछ नहीं लेकिन मेरे कथन जो होते थे उनका असर तो उस पर दीखता था. मैं बुदबुदाता था उसके कान में कि वो हेलदी है, जीनियस है, सुंदर है, प्रसन्न है. और वो खेलती रहती थीं, नाचती रहती थी, कूदती रहती थी. नींद के साथ यह छोटा सा प्रयोग था. इसे आप सम्मोहन कह सकते हैं. नींद में दखल था लेकिन उसे हिन्दू-मुस्लिम बनाने को नहीं था, उसे स्वस्थ और समझदार बनाने को था. और वो समझदार है. कई बार तो मुझ से बहुत तेज़ और आगे पाता हूँ उसे. हो सकता है बाप की बापता हो यह, लेकिन उसके सामने कई बार लगता है कि मैं गुज़रे जमाने की चीज़ हूँ. यह प्रयोग जिसका मैंने ज़िक्र किया, यह खुद भी खुद पर किया जा सकता है. इसे आप आत्म-सम्मोहन या योग-निद्रा कह सकते हैं. आप सोते हुए खुद को जो निर्देश देंगे, वो काफी हद तक फली-भूत होंगे. आप खुद को कह कर सोयें कि गहरी नींद सोना है, बीच में नहीं उठना है, अच्छे सपने देखने हैं तो लगभग ऐसा ही होगा. ‘स्वीट-ड्रीम्स’, जो एक दूजे को कहते हैं उसका यही तो मतलब है. कई बार आप अलार्म लगा के सोते हैं, लेकिन अलार्म बाद में बजता है आप उससे ठीक पहले उठ जाते हैं, उसका यही तो मतलब है. बहुत से हार्ट-अटैक सोते हुए या अर्द्ध-निद्रा जैसी अवस्था में होते हैं, किसलिए? इसलिए चूँकि व्यक्ति का अंतर्मन हावी रहता है. किसी का बच्चा बीमार है, किसी ने कर्ज़ा देना है, किसी की बेटी भाग गयी है पड़ोसी के साथ. किसी को कोई टेंशन. किसी को कोई और चिंता. सब घेर लेती हैं अर्द्ध-निद्रा में. बस हार्ट-अटैक हुआ ही हुआ. अधरंग हुआ कि हुआ. दिमाग की नस फटी ही फटी. नींद न आ रही हो तो ज़बरन नींद में जाने का प्रयास न करें. उल्टा करें. लेटे हैं तो बैठ जायें, बैठे हैं तो उठ जायें, उठे हैं तो चलने लगें, चल रहे हैं तो भागने लगें. थक जायेंगे तो नींद अपने आप आ जायेगी. और जिनको नींद न आने की सतत समस्या है, उनको लेबर चौक पर बैठना शुरू कर देना चाहिए. चार-पांच सौ रुपये दिहाड़ी मिलेगी और नींद भी. "तुषार, तू सो गया है क्या?" ऑफिस की सेट्टी पर अक्सर सो जाता था मैं और मुझे यह पूछ कर मेरा वो कमीना दोस्त उठाता था. कितनी बार चाहा कि उसे कहूं कि हाँ, मैं सोया हुआ हूँ, गहरी नींद में हूँ और एक हफ्ते से पहले नहीं उठूंगा. इडियट. गलत सवाल का जवाब सही कैसे हो सकता है? अक्सर पढ़ता-सुनता हूँ कि फलां आदमी फलां औरत के साथ सोता है, मतलब सेक्स करता है. अबे ओये, जब कोई आदमी-औरत सेक्स करते हैं तो वो जागना हुआ, परम जागना हुआ कि सोना हुआ? उलटी दुनिया! पीछे परिवार सहित 857, रघुबीर नगर के बस स्टैंड से गुज़र रहा था, वहां सड़क पर एक परिवार सोया था. खुली-चौड़ी सड़क है. सोते हैं लोग ऐसे. एक बच्चा, शायद साल भर का होगा, नंगा सोया था. लड़का. लिंग लेकिन उत्थान पर था. Morning Erection! लेकिन तब तो सुबह नहीं थी. रात का वक्त था. असल में यह 'Morning Erection' है ही एक गलत कांसेप्ट. आदमी जब भी गहन नींद में होगा, जब भी अच्छे सपने देख रहा होगा, जब भी खुश होगा, उसे Erection हो सकती है. उसका लिंग उत्थान पर हो सकता है. व्यक्ति जितना चिंता फ़िक्र में होगा, सेक्स के लिए उसका शरीर उतना ही कम तैयार होगा, जितना खुश, जितना शांत उतना ही सेक्स के लिए ज़्यादा तैयार होगा. कुदरत खुद गवाह है भई. सिम्पल. और स्त्रियों में यह चाहे न दीखता हो लेकिन होगा उनमें भी ज़रूर ऐसा ही. क्यों? चूँकि वो भी तो इसी कुदरत की बेटियां हैं, कुदरत उनके साथ कोई भेद-भाव थोड़ा न करती है. और ये जो हमारे सपने हैं न, ये सिर्फ हमारी सोच, हमारे मन का प्रक्षेपण है. मन में जो भी हो, चाहे डर, चाहे ख़ुशी, चाहे कोई दबी इच्छा, सब प्रकट हो जाता है नींद में. बस. इससे ज़्यादा कुछ नहीं है इनमें. न तो कोई भविष्य के संकेत हैं इनमें और न ही कोई देवी-देवता या आपके दादा पड़दादा आते हैं सपनों में. जो आता है, वो सब अंतर-मन में निहित जो है उससे आता है. जैसे किसी तह-खाने को खोल दिया गया हो. जल्द ही आप के सपने डाउनलोड हो जाया करेंगे और आप फिल्म की तरह देख पायेंगे उनको. ये फिल्में व्यक्ति की बीमारियाँ समझने में बहुत मदद करेंगे, शायद क्राइम हल करने में भी मदद-गार हों, शायद किसी के छुपे टैलेंट का हिंट मिले इनसे, शायद राजनीतिज्ञों के-अपराधियों के हाथ पड़ खतरनाक भी साबित हों. वक्त बतायेगा क्या होगा. वैसे तो इनको देख कर आप बोर ही होंगे. कुछ न होगा इनमें बकवास के सिवा. इन्सान इतना बेवकूफ है कि उसने नींद जैसे प्राकृतिक चीज़ को भी उलझा दिया. 'चीकू' कुत्ता है. हमारे घर के बाहर ही रहता है हमेशा. गधा सा सारा दिन घोड़े बेच सोया रहता है. इसे कोई किताब पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं कि सोना कैसे है. मैं सोचता हूँ इसे यह वाला लेख पढ़ के सुना दूं. कोशिश करूंगा, लेकिन यह सुनते-सुनते इतना बोर हो जायेगा कि फिर सो जायेगा. मैं जानता हूँ इसे. अब आप भी सो जायें. नमन.....तुषार कॉस्मिक

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