भारतीय समाज को सब बामनी किस्सों को छोड़ आगे बढ़ना होगा, वरना वहीं गोल-गोल घूमता रहेगा सदियों.
वही रास-लीला, वही राम-लीला. वही दशहरा, वही राम. वही रावण. वही कृष्ण. वही शिव. वही पार्वती.....
इन सब में ही जब उलझा रहेगा तो वैज्ञानिक, दार्शनिक, ज्वलन्त लेखक पश्चिम में ही पैदा होंगे यहाँ तो बारिश के गड्डे भरे जायें उत्ता ही काफी है.
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