Posts

गलत है गलती करने को गलत कहा जाना. सो गलती करें. लेकिन गलती का भी लेवल होना चाहिए. एक दसवीं का छात्र यदि दूसरी कक्षा के छात्र जैसी गलती करे तो निश्चित ही निराशा होती है.

Sherlock Holmes, "Why can't people think?"

हैरान हैं शेरेलोक होल्म्स! हैरान हैं कि लोग सोच क्यूँ नहीं पाते! सोच मतलब तार्किक, अर्थपूर्ण, वैज्ञानिक सोच. जवाब यह है कि सोच अपने ही खिलाफ लड़ाई होती है. युद्ध. जो करे खुद से खुद. अपने ही बने-बनाए, घड़े-घड़ाए विचारों, मान्यताओं के खिलाफ़ जंग. जंग लगे विचारों के खिलाफ जंग.  और अधिकांश लोग डरते हैं कि इस जंग में कुछ खो न दें. जबकि खोने को कुछ भी नहीं सिवा मूर्खता के और जीतने को जीवन से भरपूर जीवन है.  डर के आगे जीत है.  लेकिन डर के आगे हथियार डाल देते हैं अधिकांश लोग.  बाहरी प्रतिमाएं तोड़ना आसान है, लेकिन आन्तरिक प्रतिमा तोड़ना बेहद मुश्किल. इसीलिए सोच नहीं पाते और इसीलिए  कभी जीत पाते नहीं. इन्सान की तरह पैदा होते हैं,रोबोट में तब्दील कर दिए जाते हैं और रोबोट की तरह मर जाते हैं.

काटजू साहेब की मूर्खता के चंद नमूने

मार्कंडेय काटजू नब्बे प्रतिशत से ज़्यादा भारतीयों को मूर्ख कहते हैं. मैं सहमत हूँ उनसे शत-प्रतिशत. बस एक बात है. उन मूर्खों में काटजू साहेब को भी शामिल करता हूँ. पहली मिसाल देता हूँ उनकी मूर्खता की. हाल-फिलहाल सौम्या मर्डर केस में कोर्ट की जजमेंट पर टिप्पणी करने के लिए बेशर्त माफी माँगनी पड़ी उनको. दूसरी मिसाल. वो समझते हैं कि पाकिस्तान और बांगला-देश भारत के साथ दुबारा मिल जायेंगे. मेरे से लिखवा लो, ग्र्र्रर...बल्कि मैं लिख ही रहा हूँ, ये दोनों मुल्क तैयार हो भी जाएं, आज भारतीय खुद इनके साथ जुड़ना पसंद नहीं करेंगे. और यदि एक करना ही है तो पूरी दुनिया को एक करने की कोशिश क्यूँ की न जाए? दुनिया वैसे भी एक ही है. लकीरें इंसानी बेफकूफियों ने ही तो डाली हैं. उस दिशा में काम क्यूँ न किया जाए? यह आधा-अधूरा क्यूँ सोचना? तीसरा मिसाल. जनवरी सोलह, दो हजार सत्रह को लिखा उन्होंने, "My prediction about the forthcoming Punjab Assembly elections is based on reason, not emotion. If Punjab elections had been held an year back, AAP would have got a majority. But in the past year its ima...

प्रॉपर्टी आपकी दुश्मन है

प्रोपर्टी के धंधे में हूँ बरसों से और मेरी समझ है कि तकरीबन सब इंसानी बीमारियों की वजह प्रॉपर्टी का कांसेप्ट है. कहावत भी है. ज़र, जोरू और ज़मीन झगड़े की जड़ होती हैं. थोड़ा गहरे में ले जाने का प्रयास करता हूँ. पहले तो जो भी व्यक्ति इस पृथ्वी पर आ जाए उसे बेसिक ज़रूरतें हर हाल में मिलें यह समाज का फर्ज़ होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं है तो वो समाज अभी संस्कृत नहीं हुआ. और आप लाख कहते हों कि हमारी संस्कृति महान है, लेकिन अभी संस्कृति का क-ख-ग भी नहीं पढ़ा इंसान ने. जिस कृति में बैलेंस न हो, संतुलन न हो, वो कैसी संस्कृति? एक तरफ़ लोग महलों जैसी कोठियों में रहें और दूसरी तरफ़ कोठड़ी भी न मिले, इसे आप संस्कृति कहना चाहते हैं, कह लीजिये, मैं तो विकृति ही कहूँगा. हम सब धरती के वासी हैं, लेकिन विडम्बना यह है कि हम में से बहुत के पास धरती का सर छुपाने लायक टुकड़ा भी नहीं जिसे वो अपना कह सकें. अपने ही ग्रह पर हमारे पास गृह नहीं है. कैसे कहें कि पृथ्वी हमारा घर है? कहा यह गया है आज तक कि रोटी, कपड़ा और मकान ही बेसिक ज़रूरतें हैं, लेकिन अधूरी बात है यह. इन्सान को रोटी, कपड़ा, मकान के साथ ही प्यार, सम्मा...

An example is an example is an example is an example, just to exeplify the point, hence do not go on fucking it up.

A pointer is meant to show you the point and if you miss the point and catch the pointer, what is the point in showing you the point?

"अम्मीजान कहतीं थीं, धंधा कोई छोटा नहीं होता"

शाहरुख़ खान फरमाते हैं, अपनी ताज़ा-तरीन फिल्म 'रईस' में, "अम्मीजान कहतीं थीं, धंधा कोई छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता."  तो ठीक, स्मगलिंग हो चाहे गैंग-बाज़ी, धंधा कोई छोटा नहीं होता, खोटा नहीं होता. जाएँ और 'रईस' फिल्म देखें. फिल्म बनाना, एक्टिंग करना उसका धंधा है और धंधे से बड़ा कोई धर्म-ईमान होता नहीं, तो वो एक टैक्सी चलाने वाली गुमनाम औरत को भी अपनी फिल्म की प्रोमोशन में शामिल कर लेता है. लेकिन  उनसे  'तू'...'तू' करके बात करता है, जबकि वो उसे 'सर', 'सर' कह कर सम्बोधित कर रही हैं. इडियट! तमीज नहीं. अगर वाकई वो टैक्सी ड्राईवर न होकर कोई बड़ी तुख्म चीज़ होतीं तो फिर करके दिखाता....'तू...तू'. हू--तू---तू ...न करा देतीं तो. वो 'तू'  इसीलिए निकल रहा है मुंह से कि उन्हें  छोटी औरत समझ रहा है. उनके धंधे को छोटा समझ रहा है. एक और प्रमोशनल वीडियो में श्रीमान शाहरुख़ बताते हैं कि रईस कौन है. उनके मुताबिक रईस कोई पैसे वाला नहीं है, वो सब रईस हैं, जो खुश हैं, जिंदा-दिल हैं, कुछ-कुछ ऐसा. ठीक है, मैं सहमत...
“You’re all prisoners. What you call sanity, it’s just a prison in your minds that stops you from seeing that you’re just tiny little cogs in a giant absurd machine. Wake up! Why be a cog? Be free like us.” — Jerome Valeska (Gotham)

Foolish Quote-- Never argue with a fool. Someone watching may not be able to tell the difference.

Many of the quotes are simply idiotic. This one is one of them.Why? See.  Everyone thinks oneself is a super Genius. Argumentation is way to check how much Genius who is. Avoiding argumentation thinking that the other is a fool is simply foolish .
I love dogs and I hate gods because dogs are so godly and gods are so dogly.
हरेक को अपना धरम, धरम लगता है, दूजे का भरम लगता है.  संघी  को सिखाया गया है कि हिंदुत्व जीवन-पद्धति है और इस्लाम मात्र पूजा-पद्धति. जबकि इस्लाम खुद को दीन कहता है, पूरा जीवन दर्शन. और वो है भी. और हिंदुत्व नाम की कोई चीज़ है नहीं. बांधते रहो शब्दों में, वो सब आपके अपने प्रोजेक्शन हैं.  हिंदुत्व तो अपने आप में कुछ है ही नहीं.

ज्ञान के विभिन्न पहलु

वेद मतलब ज्ञान...विदित होना. लेकिन  वेदना शब्द भी वेद से आता  है. Ignorance is bliss. अज्ञान वरदान है. चूँकि  जैसे-जैसे जीवन में आपकी जानकारी बढ़ती है, वैसे-वैसे चिंता भी बढ़ती है. चिंतन बढ़ता है तो चिंता भी बढ़ती जाती है. ऐसा न हो जाए, वैसा न हो जाए. ये गलत न हो जाए, वो गलत न हो जाए. वेद वेदना बन जाता है. लेकिन इस दुविधा के बावजूद, चिंता के बावज़ूद ज्ञान ही इन्सान को चिंता-मुक्त करने की क्षमता रखता है. या यूँ कहें कि कम परेशानियों वाला, कम चिंताओं वाला जीवन दे सकता है, सो वेद सम्मान का विषय है. Knowledge sets you free.  बहुत बार हमें कुछ नहीं पता होता और यह भी नहीं पता होता कि हमें नहीं पता. जैसे किसी वनवासी, जो स्कूल नहीं गया, जिसने किताब नहीं देखी, जिसने पेन-पेंसिल नहीं देखी, उसे नहीं पता कि पढ़ना-लिखना भी कुछ होता है. जब तक उसे स्कूल आदि नहीं दिखायेंगे उसे यह तक नहीं पता लगेगा कि उसे नहीं पता कि पढ़ाई भी कुछ होती है. इसे कहते हैं अंग्रेज़ी में,"You don't know and you don't know that you don't  know."   बहुत बार हमें नहीं पता होता, लेकिन यह पता होता है क...

लिबरल इस्लाम माने क्या?

लिबरल इस्लाम नाम की कोई चीज़ नहीं होती...इस्लाम सिर्फ इस्लाम है....लिबरल या नॉन-लिबरल वाली कोई बात नहीं....जाकिर नायक सही कहता है कि इस्लामिक को यदि कोई फंडामेंटलिस्ट अगर कोई समझता है तो सही समझता है और यह गौरव की बात है....जो फंडामेंट, जो बुनियाद मोहम्मद साहेब ने डाली, उसी पर जीवन की बिल्डिंग खड़ी करना, खड़ी रखना ही तो इस्लाम है. तो इस्लाम लिबरल या नॉन-फंडामेंटलिस्ट हो ही नहीं सकता, हाँ कोई मुसलमान हो सकता है कि ऐसा हो जाए और जब वो ऐसा होता है तो निश्चित ही धर्म-च्युत हो रहा है, बे-ईमान हो रहा है.

I WOULD HAVE GIVEN "PARAMVEER CHAKRA" TO THAT SOLDIER

That Soldier should be given a Gallantry award. Gallantry is not killing politically-declared-rivals. Gallantry is taking a bold step, standing against the atrocities of the Giants. Gallantry is fighting Goliaths whereas knowing perfectly well that one is just a David's size. Had I been the PM of this country, I would have given him a "Paramveer Chakra".
जिस दिन सीवर में घुस सफाई करने वाले को एक IAS  अफसर जितनी तनख्वाह और इज़्ज़त देगा समाज, समझ लीजियेगा संस्कृति पैदा हो गई.