लिबरल इस्लाम नाम की कोई चीज़ नहीं होती...इस्लाम सिर्फ इस्लाम है....लिबरल या नॉन-लिबरल वाली कोई बात नहीं....जाकिर नायक सही कहता है कि इस्लामिक को यदि कोई फंडामेंटलिस्ट अगर कोई समझता है तो सही समझता है और यह गौरव की बात है....जो फंडामेंट, जो बुनियाद मोहम्मद साहेब ने डाली, उसी पर जीवन की बिल्डिंग खड़ी करना, खड़ी रखना ही तो इस्लाम है.
तो इस्लाम लिबरल या नॉन-फंडामेंटलिस्ट हो ही नहीं सकता, हाँ कोई मुसलमान हो सकता है कि ऐसा हो जाए और जब वो ऐसा होता है तो निश्चित ही धर्म-च्युत हो रहा है, बे-ईमान हो रहा है.
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