"सम्मोहन का राजनीतिक दुष्प्रयोग"

कुछ लोगों का धंधा ही था राजा की शान में कसीदे गढ़ना. राग दरबारी. मोदी क्या आए, बिल्ली के भागों छींका क्या टूटा, ऑनलाइन क्या और ऑफलाइन क्या ऐसे लोग पैदा हो गए, गली-गली. किस्से गढ़े जाने लगे, मोदी जी की शान में. मोदी जी का नाता Nostradamus तक से गढ़ दिया गया. तारक फ़तेह साहेब तक कनाडा से आ-आ कर समझाने लगे कि मोदी साहेब कोई काम गलत करते ही नहीं. कोई कसर नहीं छोड़ी जनता का दिमाग खराब करने की. इंसानी स्वभाव की कमज़ोरी का फायदा उठाया गया. मालूम है कि इन्सान को अपने तर्कों पर बहुत भरोसा नहीं होता. वो बहुत देर तक तर्कों पर टिका नहीं रहता. कोला ज़हर है, आपको पता होता रहे लेकिन शादी में अगर वेटर एक बार सामने लाये भरा गिलास लाये तो आप मना कर देते हैं, दूसरी बार मना कर देते हैं, तीसरी बार मना कर देते हैं, लेकिन चौथी-पांचवीं बार उठा ही लेते हैं. टीवी पर एक बार कोला की मशहूरी आती है, आप ख़ास ध्यान नहीं देते. दूसरी बार आती है आप कुछ-कुछ ध्यान देते हैं, पांचवीं, छठी, सातवीं बार वो आपके ज़ेहन में उतरती ही चली जाती है. यह एडवरटाइजिंग नहीं है, हिप्नोटाईजिंग है. यह इन्सान की आत्मा का बलात्कार है. उसकी सोच-समझ का कत्ल है. मैं हैरान होता कि अब्बी तो आई थी कोला की ad, फिर से, फिर से, फिर-फिर से. वही किया गया पिछले चुनाव में. जिसने ज़्यादा किया, वो बाज़ी मार गया. ये जो नववर्ष की बधाई के पोस्टर लगे हैं मेरी-आपकी गली में, उनका आप और हमारी बधाई से कोई मतलब नहीं है, वो बस इसलिए हैं कि हमारे ज़ेहन में कुछ नाम बसे रहें. सम्मोहन पैदा किया गया. कोशिश अभी भी जारी है. सब कलई खुल जाएगी एक-दो ढंग के चुनाव हार जाएँ.

Comments

Popular posts from this blog

Osho on Islam

RAMAYAN ~A CRITICAL EYEVIEW