गली में कालीन या दरी बिछते ही बच्चे भागना -दौड़ना-खेलना शुरू कर देते हैं. धमा-चौकड़ी शुरू. आप पार्क में बैठ कर लौटते हैं तो थोड़े और जीवंत हो उठते हैं. जीवन जीने के लिए स्पेस की ज़रूरत है पियारियो. बंदे पर बन्दा न चढाओ.
शायर साहेब लगे हैं, माइक कस कर पकड़े हैं. कईओं को तो माइक खूबसूरत महबूबा से भी ज़्यादा अज़ीज़ होता है, मिल जाए बस, छोड़ना नहीं फिर.
तो शायर साहेब लगे हैं. "कुत्ते की दम पर कुत्ता. कुत्ते की दम पे कुत्ता. फिर उस कुत्ते की दम पे कुत्ता. बोलो वाह!" जनता चिल्ल-चिल्लाए,"वाह! वाह, वाह!!" वो आगे फरमाते हैं, "उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता., अब उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता..."
भीड़ में से किसी के बस से बाहर हो गया, वो चिल्लाया, पिल-पिल्लाया," बस करो भाए, बस करो. दया करो, ये सब गिर जाएंगे."
हम से कब कोई चिल्लाएगा? "बस करो भाई, ये गिर जायेंगे."
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