सोशल मीडिया पर माँ-बहन की गालियों से हर पोस्ट को अलंकृत करना बोल्ड हो गया है. अरविन्द को 'अरविन्द भोसड़ी-वाल' और मोदी समर्थकों को 'मोदड़ी के' लिखना गर्व का विषय माना जाने लगा है.
Jolly LLB फिल्म का एक गाना है, "मेरे तो L लग गए......" बप्पी लाहिड़ी साहेब ने गाया है. L मतलब लौड़े. जब इत्ता गा दिया था, यह भी गा ही देना था.
सनी देओल की फिल्म है 'मोहल्ला अस्सी'. बैन है वैसे तो लेकिन देख ली मैंने. इस फिल्म में एक डायलाग प्रसाद की तरह बंटता है. और वो है, "भोसड़ी के."
'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' जैसी घटिया फिल्म एक कल्ट फिल्म बन जाती है, चूँकि उसमें गालियों की भरमार है."कह के लेंगे." क्या लेंगे? मन्दिर का प्रसाद? नहीं. वो ही जानें, जिन्होंने यह डायलॉग लिखा. वैसे 'मादर-चोद' शब्द लंगर की तरह बंटा है फिल्म में.
यू-ट्यूब पर कुछ सीरीज इस लिए मशहूर हो रही हैं कि बनाने वाले नंगी गालियाँ दिखाने की हिमाकत कर रहे हैं. एक छोटी लड़की है मल्लिका. उसके विडियो में आखिरी टैग-लाइन मालूम है क्या है? "भाग भोसड़ी के."
AIB एक मशहूर youtube चैनल है. All India Bakchod. बस चोद लो सरे-आम.
"सही खेल गया भैन्चोद", यह एक और मशहूर youtube चैनल BB ki Vines वाले भुवन बाम की tagline है.
वाह! बोल्ड होना कितना आसान, कितना सस्ता हो गया है.
अगर यही बोल्ड होना है तो यह बोल्डनेस गली के हर नुक्कड़ पर भरपूर मौजूद है. आपको एक दूजे की माँ-बहन ताश पत्तों के साथ पीटते बहुत लोग मिल जायेंगे.
शाहिद कपूर की बहुत पहले एक फिल्म थी "कमीने". अभी-अभी ताज़ा ही है एक फिल्म “हरामज़ादा”. और “फुद्दू” नाम से एक फिल्म भी आ चुकी.
एक दूजे को "चूतिया, फुद्दू" कहते हैं....जैसे मैडल बाँट रहे हों. आलिया भट्ट शाहिद कपूर को “फुद्दू” कहती है फिल्म “उड़ता पंजाब” में. और शाहिद कपूर तो अपने बाल ही इस ढंग से कटाता है कि वहां छप जाता है Fuddu, किसी को कोई शक ही न रहे.
तनिक विचार करें, असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू.
और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है.....जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिव लिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है.
हमारे यहीं असम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है, माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूआ कर.
और हमारे यहाँ तो प्राणियों की अलग-अलग प्रजातियों को योनियाँ माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है.....योनि मित्रवर, योनि.
और यहाँ मित्रगण ‘चूतिया-चूतिया’ कहते रहते हैं!
जीवन में जस-का-तस जो है, वो दिखाना ही बोल्ड होना यदि है, तो फिर आप और आगे बढिए स्कूलों में भी ऐसा ही सब पढ़ा दीजिये. मुंशी प्रेम चंद, भगवती चरण वर्मा, अमृता प्रीतम के लेखन की जगह माँ-बहन की इज्ज़त में चार-चाँद लगाने वाला साहित्य पढ़ायें, मिल जाएगा भरपूर. और स्कूलों में ही क्यूँ? अपने पूजा-स्थलों में भी सुनाये जाने वाले किस्से-कहानियां को इन्ही अलंकारों से सुसज्जित कर दीजिये. क्या दिक्कत?
इडियट! भूल जाते हैं कि शौच भी किया जाता है ओट में. टट्टी शब्द का अर्थ ही है पर्दा, ओट.
जीवन में बहुत कुछ ऐसा है, जो है, लेकिन अगर बदबूदार है तो हम उसे छुपा देते हैं, मंदिर में नहीं सजाते. मंदिर में अगर-बत्ती लगाई जाती है ताकि चौ-गिर्दा खुशबू से महक उठे.
तो मित्रवर, बोल्ड होने का मतलब बदलिए. एक मतलब मैं दे देता हूँ. सामाजिक मूर्खताओं से टकराइये, हो सकता हैं छित्तर पड़ें, लेकिन हिम्मत रखिये. यही बोल्डनेस है.
तथास्तु!
नोट ----ऊपर जो गालीनुमा शब्द प्रयोग किये उनको काँटा निकालने के लिए प्रयोग किया गया काँटा समझिये. अन्यथा आप मेरी किसी भी पोस्ट में शायद ही गाली या अपशब्द पायें. मैं बहुत ही शरीफ बच्चा हूँ, दाल-दाल कच्चा हूँ.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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