Sunday, 1 January 2017

मैं हर तथा-कथित धर्म के खिलाफ हूँ, एक नहीं हजारों बार लिख चुका हूँ....लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसी भी व्यवस्था में यदि ज़रा सा भी कुछ अच्छा हो तो वो न लिया जाए. क्या मैं नुसरत फ़तेह अली का गाना इसलिए नापसंद कर दूं कि वो पाकिस्तानी थे और मुसलमान भी? मैं ऐसा नहीं कर सकता. आज-कल मीशा शफी के गाने बहुत सुनता हूँ मैं. पाकिस्तानी हैं और मुस्लिम भी. पाकिस्तान की अचार-मसाले बनाने वाली कंपनी है "शान". इसके कुछ अचार हमें इतने पसन्द हैं कि हर "ट्रेड फेयर" में हम अपनी ट्राली इन्ही के सामान से भर लेते हैं. मेरी मित्र Veena Sharma अक्सर पाकिस्तानी ड्रामों की तारीफ लिखती हैं. एक टीवी प्रोग्राम है पाकिस्तान का "हस्बेहाल", बहुत पसंद है मुझे. एक हास्य कलाकार हैं 'अज़ीज़ी', बहुत पसंद हैं मुझे. हसन निसार साहेब भी कहीं पसंद, कहीं नापसंद हैं मुझे. मैं तो एक वाक्य में से भी किसी एक शब्द को ना-पसंद और बाकी शब्दों को पसंद कर सकता हूँ. मेरी पसंद नापसंद बहुत पॉइंटेड है, कृपा करके समझें.

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