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इस्लाम और सर्वधर्म समभाव

मुस्लिम दोस्त(?) कह रहा था कि सब लोग बराबर हैं और मैं हँस रहा था चूंकि इस्लाम के मुताबिक मुस्लिम अफ़ज़ल (सर्वश्रेष्ठ) हैं. पाकिस्तान में तो एक व्यक्ति पर मात्र इस लिए कोर्ट केस हो गया चूंकि इस ने यह कह दिया कि सब धर्म बराबर हैं. और यहां भाईजान हमें मूर्ख बना रहे हैं.

इस्लाम और औरत-मर्द की मोहब्बत

  जितना मुझे पता है इस्लाम औरत-मर्द के इश्क को स्वीकार नहीं करता. मोहब्बत नबी से और इबादत अल्लाह की. बस. इसीलिए मजनू का मज़ाक उड़ाया जाता था कि लैला तो काली है, उस में क्या रखा है. इसीलिए मजनू को पत्थर मारे जाते थे.

जय सिया राम?

रावण को मारने के बाद राम के पास जब सीता लाई जाती हैं तो राम कितने सम्मानजनक शब्द उसे बोलते है. खुद देख लीजिए. "रावण को मैंने अपने कुल पर लगे धब्बे को मिटाने की लिए मारा है. तुम अब चाहो तो भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सुग्रीव या विभीषण के पास चली जाओ चूंकि तुम रावण के पास रह कर आई हो सो मैं तुम्हे स्वीकार नहीं कर सकता." वाल्मीकि रामायण से उध्दरण भी दे रहा हूँ..... तदर्थं निर्जिता मे त्वं यशः प्रत्याहृतं मया | नास्थ् मे त्वय्यभिष्वङ्गो यथेष्टं गम्यतामितः || ६-११५-२१ "You were won by me with that end in view (viz. the retrieval of my lost honour). The honour has been restored by me. For me, there is no intense attachment in you. You may go wherever you like from here." तदद्य व्याहृतं भद्रे मयैतत् कृतबुद्धिना | लक्ष्मणे वाथ भरते कुरु बुद्धिं यथासुखम् || ६-११५-२२ "O gracious lady! Therefore, this has been spoken by me today, with a resolved mind. Set you mind on Lakshmana or Bharata, as per your ease." शत्रुघ्ने वाथ सुग्रीवे राक्षसे वा विभीषणे | निवेशय मनः सीते यथा...

सबसे बड़ा युद्ध

सबसे बड़ा युद्ध जानते हैं क्या होता है? विचार-युद्ध. यह आपको दूसरों से तो बाद में करना होता है, पहले खुद से करना होता है. मैं किशोर था और मैं नोट-बुक के एक पन्ने पे लिखता था--"भगवान है" और सामने वाले पन्ने पे लिखता था "भगवान नहीं है". फिर दोनों के पक्ष में नीचे तर्क लिखता था. मेरा पास आज भी एक किताब है "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं" और दूसरी है "शर्म से कहो हम हिन्दू हैं". मेरे पास "वाल्मीकि रामायण" है और रंगनायकम्मा रचित "रामायण एक विष-वृक्ष "भी है. विचार-युद्ध इत्ता मुश्किल जानते हैं क्यों है? चूँकि इसमें खुद को ही खुद के खिलाफ लड़ना होता है. खुद को ही गलत साबित होने का रिस्क होता है. सो इससे बचता है इन्सान. मानो आप 40 साल से मन्दिर में घंटा बजा रहे हैं, अब कैसे खुद ही साबित करोगे कि नहीं, घंटा बजाना बेकार है? मूर्ती से धन-धान्य मांगते आए हो, कैसे खुद ही साबित करोगे कि मूर्ती किसी को कुछ नहीं दे सकती? सब ने अपने जीवन का आधार गलत-सही मान्यताओं पर खड़ा किया होता है, अब इन मान्यताओं को चैलेंज करने की हिम्मत आप खुद नहीं कर पाते. को...

इस्लाम की ताकत घटाने का एक और नायाब तरीका

जो भी मुस्लिम इस्लाम छोड़ना चाहते हों, उन के लिए गैर-मुस्लिम सरकारों को आश्रय-स्थल बनाने चाहियें. हालाँकि इस्लाम छोड़ने वाले मुस्लिम को पॉलीग्राफ और नार्को जैसे से गुज़ार कर पक्का कर लेना ज़रूरी है कि वो वाकई इस्लाम छोड़ रहे हैं, अपनी समझ से और अपनी मर्ज़ी से इस्लाम छोड़ रहे हैं. मुझे लगता है कि मुस्लिम की एक बड़ी तादाद जो इस्लामी समाजों में फंसी है, वो बाहर आयेगी और इस तरह इस्लाम के पास जो तादाद की ताकत है वो घटेगी. दुनिया में शांति बहाली की तरफ यह एक बड़ा कदम होगा. अमनो-चैन बढ़ेगा, ज्ञान-विज्ञान बढ़ेगा.

देसी

ये जो तुम विदेशी नस्ल के रंग-बिरंग-बदरंग कुत्ते रखते हो, तुम इडियट हो. देसी कुत्ते रखो, रखने हैं तो.लोकल. ये यहाँ के जलवायु के हिसाब से कुदरत ने घड़े हैं. ये जो तुम चौड़े हो के महँगे-महँगे विदेशी फल,सब्ज़ियाँ और सुपर-फ़ूड खाते हो, तुम मूर्ख हो. लोकल फल-सब्ज़ियाँ-अनाज खाया करो. कुदरत हर जगह के हिसाब से बेस्ट पैदावार देती है. ये जो तुम "देसी" शब्द से ग्रामीण या गंवार, कम पढ़ा-लिखा समझते हो, तुम मूढ़ हो. देसी मतलब देस का, मतलब लोकल. और जो लोकल है, वो ज़रूरी नहीं घटिया हो, बेकार हो. वो बेस्ट suitable हो सकता है, होता है. नज़रिया बदलो. देसी की इज़्ज़त करना सीखो. ~ तुषार कॉस्मिक ~

असीमित धन खतरनाक है दुनिया के लिए

लोहा ज़्यादा काम आता है या सोना? सोना एक पिलपिल्ली सी धातु है. शुद्ध रूप में जिसका गहना तक नहीं बनता. लेकिन सबसे कीमती मान रखा है मूढ़ इन्सान ने इसे. यह सिर्फ मान्यता है और कुछ नहीं. वरना गहने तो लक्कड़, पत्थर, लोहा, स्टील किसी के भी बनाये जा सकते हैं, पहने जा सकते हैं. आप देखते हो आदिवासी, वो ऐसे ही गहने पहनते हैं. हिप्पी किस्म के लोग भी ऐसे ही पहन लेते हैं. मैं खुद ऐसे गहने पहनता रहा हूँ. अब भी चांदी पहनता हूँ. यही समाज ने इंसानों के साथ किया है. एक गटर साफ़ करने वाले की कीमत एक IAS ऑफिसर से कम कैसे हो गयी? ठीक है IAS का काम गटर साफ़ करने वाला नहीं कर सकता, लेकिन गटर साफ़ करने का काम भी तो IAS नहीं कर सकता? फिर समाज को सब की ज़रूरत है. और हो न हो, समाज की जिम्मेवारी है कि इस तरह से चले कि सब को अहमियत मिले. समाज ने यदि किसी इन्सान को इस धरती पर आने दिया है तो अब समाज की ज़िम्मेदारी बन गयी. या तो आने ही न देता समाज में ऐसे व्यक्तियों को जिन को वो कोई अहमियत नहीं देता, या बहुत कम अहमियत देता है. जैसे बहुत लोग भीख मांग रहे हैं, अपराध कर रहे हैं, सडकों पर बेकार पड़े हैं, या निहायत गरीबी की ज़िंदगी...

"ईद मुबारक"

मुझे कोई महान आत्मा ने दर्शन दे कर बताया कि बकरीद हिन्दुओं से प्रेरित है चूँकि बकरी को संस्कृत में अजा कहते हैं और बकरीद को ईद-उल-अजहा कहा जाता है. एक और महान आत्मा ने बताया कि उसे मुस्लिम का कुर्बानी देनें का ढंग बहुत पसंद है.कैसे बकरे को प्यार से पालते पोसते हैं और फिर कुर्बान कर देते हैं. वाह! कैसे अपनी प्यारी चीज़ को कुर्बान कर देते हैं! मैंने कहा, "कहाँ कुर्बान कर देते हैं. काट कर खुद ही खाना है तो कुर्बानी कहाँ हुई? और प्यारी चीज़ तो इंसान के अपनी जान होती है, बाल बच्चे होते हैं. अल्लाह पर भरोसा रखें और अपने बच्चे कुर्बान कर दें. बेचारे बकरे के बच्चे को क्यों कुर्बान करते हैं? बकरे को तो अल्लाह पे भरोसा भी न होगा. पूछ के देख लीजिये. सब से ज़्यादा वो ही कटा है अल्लाह के नाम पे, वो कैसे भरोसा करेगा अल्लाह पे? भरोसा तो मुस्लिम को है अल्लाह पे तो उसे कुर्बान करना ही है तो खुद को कुर्बान करना चाहिए या खुद के परिवार को. बकरे और उस के परिवार को बीच में नहीं लाना चाहिए. अल्लाह मेहरबान है. बेशक वो सब जानता है. जैसे ही मुस्लिम अपने आप को या अपने बच्चों को कुर्बान करने लगेगा अल्लाह उ...

ईशनिंदा (Blasphemy) क़ानून और इस्लाम

8 साल के हिन्दू बच्चे को ईशनिंदा (Blasphemy) क़ानून में धर लिया गया है. सर धड़ से अलग कर देने तक का कानून है. मतलब आप मोहम्मद, इस्लाम और कुरान के खिलाफ बोल नहीं सकते, आप को कुछ गलत दिख रहा हो, गलत महसूस हो रहा हो, तब भी नहीं. यह सोच को जंजीरों में बांधना नहीं तो क्या है? मेरा इस्लाम के विरोध का एक बड़ा कारण यह भी है. इस्लाम वैचारिक घेरा-बंदी कर देता है, जो मुझे हरगिज़ गवारा नहीं. ...तुषार कॉस्मिक

बाबरी विध्वंस- मुस्लिम का चुनिन्दा दुःख

  भोंग, रहीम यार खान, पाकिस्तान .....दिन दिहाड़े हिन्दू मंदिर तोड़ दिया गया. मुसलामानों द्वारा चंद दिन पीछे. क्या कोई हाय-तौबा मची दुनिया में? लेकिन बाबरी मस्जिद, जो सिर्फ एक बचा-खुचा ढांचा भर था मस्जिद का, उसे तोड़ दिया गया तो आज तक मुस्लिम को दर्द है. अफगनिस्तान में बामियान नामक बुद्ध की मूर्तियाँ डायनामाइट लगा कर उड़ा दी मुस्लिम ने , लेकिन बाबरी तोड़े का दर्द है मुस्लिम को. कुतुबमीनार की मस्जिद कोई साठ-सत्तर जैन मंदिर तोड़ बनाई गयी, लेकिन बाबरी तोड़े जाने का मलाल है मुस्लिम को. अजमेर में अढाई दिन का झोंपड़ा नामक की अधूरी मस्जिद भी मंदिर तोड़ कर बनाई गयी, लेकिन बाबरी तोड़े जाने का दुःख है मुस्लिम को. गुड.. वैरी गुड.....

इस्लाम का मुकाबला कैसे करें

  इस्लाम को उखाड़ने के लिए कुरान और हदीस उखाड़ो....मुस्लिम जम नहीं पायेंगे ...और लिब्रांडू किस्म के लोगों से बहस मत करो ....मुस्लिम पर भी मेहनत न करो...बाकी गैर-मुस्लिम तक संदेश पहुँचाओ...उसे समझाओ कि इस्लाम क्या है...बिना गैर-मुस्लिम की सपोर्ट के इस्लाम जम नहीं पायेगा भारत में और यह भी ध्यान रखो कि मुस्लिम हर सम्भव कोशिश करता है कि वो बिज़नस मुस्लिम को ही दे...वो कमाता गैर-मुस्लिम से है खर्च मुस्लिम समाज में करता है ताकि उस का अपना समाज समृद्ध हो......वो जान-बूझ बच्चे पैदा करता है ताकि उसे सियासत में ताकत मिले.....वो हलाल मटन इसलिए नहीं खाता कि उसे अलग ढंग से काटा गया होता है, वैसा गैर-मुस्लिम भी काटेगा तो भी वो गैर-मुस्लिम से नहीं खरीदेगा.....वो रोटी-बेटी का रिश्ता सिर्फ मुस्लिम से रखता है...समझाओ, यह सब समझाओ गैर-मुस्लिम को.जितना जल्दी समझाओ उतना अच्छा.

लीला और लीलाधर

  मेरा कोई यकीन नहीं कि इस कायनात को बनाने-चलाने वाला कायनात से अलग कुछ है. नर्तक नृत्य में है, एक्टर एक्टिंग में है. खिलाड़ी खेल में ही मौजूद है. लीलाधर लीला में ही है. लीलाधर और लीला अलग नहीं है...... लीलाधर ने हमें freewill और intelligence की गिफ्ट दे कर पशु से अलग किया है. अब हम पाश में बंधे नहीं हैं. हम स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं. लीलाधर हमारे निर्णय और उन निर्णयों से उपजे फलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता. सो सब प्रार्थना, अरदास, नमाज़ व्यर्थ है. लेकिन मैं जूता ठीक करवाता हूँ तो मोची को नमन करता हूँ, खाना खाता हूँ तो खाने को हाथ जोड़ता हूँ, राह चलते किसी माता को कोई छोटे-मोटे पैसे देता हूँ तो हाथ जोड़ नमन भी करता हूँ, डिस्ट्रिक्ट पार्क में Workout करने जाता हूँ, तो आते-जाते पार्क को झुक के नमन करता हूँ. गाली-गलौच लिखता हूँ, लेकिन फिर भी आप सब को नमन करता हूँ.....तुषार कॉस्मिक

सब से आगे होंगें हिन्दुस्तानी-- सच में क्या?

  "झंडा ऊंचा रहे हमारा ...... विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ..." "सुनो गौर से दुनिया वालो बुरी नज़र न हम पे डालो चाहे जितना जोर लगा लो सब से आगे होंगें हिन्दुस्तानी" बड़े अच्छे लगते हैं ऐसे गीत हर 15 अगस्त को. झूठे हैं ये सब गीत. ओलंपिक्स में 48 नम्बर हैं हम......122 नम्बर पर हैं Per Capita Income में हम. हम से छोटे-छोटे मुल्क हम से कहीं आगे हैं. सच का सामना करें. हम वो हैं जिन को गली का कूड़ा तक उठवाना नहीं आया. हम सब से आगे हैं? नहीं हैं और नहीं होंगे, जिस तरह के हम हैं. इडियट.

धर्म/रिलिजन/पन्थ ये सब शब्द विदा करने योग्य हैं.

  मैं अक्सर लिखता हूँ कि सब धर्म बकवास हैं, बस इस्लाम सब से बड़ी बकवास है तो जवाब में ज्ञानीजन समझाते हैं मुझे कि नहीं, नहीं, मुझे धर्म शब्द प्रयोग नहीं करना चाहिए. मुझे रिलिजन शब्द प्रयोग करना चाहिए, मुझे मज़हब शब्द प्रयोग करना चाहिए. धर्म अलग है, रिलिजन, मज़हब, पन्थ अलग है. धर्म जीवन पद्धति है, रिलिजन, पन्थ, मज़हब बस पूजा पद्दति हैं. असल में इन महाशय चाहते यह है कि ये कह सकें कि धर्म सनातन है और सनातन ही धर्म है ताकि घुमा-फिरा के फिर वही सड़ी-गली हिन्दू मान्यताएं बचाई जा सकें. नहीं, मेरी नजर में धर्म/रिलिजन/पन्थ ये सब शब्द विदा करने योग्य हैं.

इस्लाम की दावत और इस्लाम को कबूल लेना

  वो इस्लाम कबूल करने की दावत देते फिरते हैं. हुंह. थोडा सा कंफ्यूज हूँ. इस्लाम कोई खाने की चीज़ है, जिसकी दावत दी जा रही है? या इस्लाम कोई गुनाह जिसे कबूल करने को कहा जा रहा है? आप बताईयेगा