Tuesday, 19 June 2018

भारत----एक खोज--आज-कल-और कल

मोदी काल एक विशेषता के लिए याद किया जाता रहेगा. इत्ते लोग पलायन कर गए भारत से, जित्ते शायद कभी नहीं किये. इत्ते कि भाई साहेब को आयोग गठित करना पड़ गया यह पता करने के लिए कि इस पलायन की वजह क्या है. क्या वजह है? इसके लिए क्या कोई आयोग चाहिए था? चार लोगों से पूछ लेते गर अपनी अक्ल नहीं चलती तो. भारत में आरक्षण जड़ जमाए है. जो अभी तो विदा होने से रहा. कितना ही तर्क दो, कुछ होने वाला है नहीं. लोग सार्वजनिक सीट पर रूमाल रख चले जाते हैं तो सीट रिज़र्व मानी जाती है, लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं उस सीट के लिए. यहाँ तो नौकरियों की बात है. और ये नौकरियां कोई नौकरियां नहीं हैं, उम्र भर का गिफ्ट हैं. मोटी तनख्वाह. भत्ते. साहिबी. पक्की नौकरी. ऐसे गिफ्ट को कोई कैसे छोड़ देगा? न, यह होने वाला नहीं. तो जनरल श्रेणी की नई पौध में जिनके भी माँ-बाप सक्षम हैं, स्टडी वीज़ा पर उन्हें बाहर भेजे जा रहे हैं. ज्यादातर बच्चे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड का रुख कर चुके हैं. कुछ को बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने बाहर भेज रखा है. एक और श्रेणी है. जिनके पास भी यहाँ दो-चार-पांच करोड़ रुपये हो चुके, वो भारत छोड़ चुके या छोड़े जा रहे हैं. वजह साफ़ है. उन्हें पता है कि अपने पैसे से वो अपना घर तो सुधार-संवार सकते हैं लेकिन बाहर गली की गन्दगी जस की तस रहेगी, गली के खड्डे जस के तस रहेंगे, गली में नाली ओवर-फलो करती ही रहेगी. पुलिस वाला बदतमीज़ ही रहेगा, रिश्वत-खोर ही रहेगा, न्यायालय सिर्फ तारीखें देगा, सरकारी अस्पताल बदबूदार ही रहेगा और प्राइवेट अस्पताल पैसे लूटेगा. इनके पास क्या विकल्प था बेहतर ज़िन्दगी का? यही कि बेहतर मुल्क में चले जायें. यह भारत प्रेम की कहानी सब बकवास है. सबको बेहतर ज़िंदगी चाहिए. भारत में रहने वाले जो मुसलमान भी भारत प्रेम दर्शाते हैं, वो मात्र इसलिए कि पाकिस्तान भारत से हल्का मुल्क है, बाकी इर्द-गिर्द भी भारत से कोई बेहतर मुल्क नहीं है, वरना किसी को भारत से कोई टिंडे लेने हैं क्या? और यही हाल, तथा-कथित हिंदुओं का है. यह 'वन्दे मातरम' के नारे सब बकवास हैं. 'भारत माता की जय' बस खोखले शब्द हैं. आज इनको अमेरिका-कनाडा की रिहाईश दे दो, आधा भारत खाली हो जायेगा. और शायद सारा ही. बात करते हैं. इडियट. और जब मैं इडियट लिखता हूँ, तो समझ जाईये कि यह एक ऐसी शाकाहारी गाली है, जिसमें सब मांसाहारी गालियाँ शामिल हैं. क्या है भारत का भविष्य? भारत की राजनीति-समाजनीति पांच साल पहले बदलती-बदलती रह गयी. कांग्रेस की कुर्सी गिराने वाले थे, अन्ना और अन्ना के साथ खड़े लोग. यह बहुत ही कीमती समय था. लोग, पढ़े लिखे लोग जुट रहे थे. कीमती नौकरियां छोड़-छोड़ आने लगे थे. भारत में ऐसा कुछ होने जा रहा था, जो भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ था. हर क्षेत्र के लोग जुटने लगे थे. भारत का सौभाग्य जागने वाला था. लेकिन जगा नहीं, दुर्भाग्य जाग गया. कांग्रेस के नीचे से ज़मीन खींच ली गयी, उस की पतंग काट दी गयी, लेकिन वो कटी पतंग कोई और लूट ले गया. अन्ना के साथ खड़े लोग, एक साथ न रह पाए. सबके अपने-अपने ईगो. रामदेव भी इनके करीब आया, लेकिन उसे साथ नहीं लिया गया. किरण बेदी भाजपा में चली गईं, वही भाजपा जिसका वो विरोध कर रही थीं. अन्ना को भी विदा कर दिया गया. धीरे-धीरे सब बिखर गए. आरएसएस के पास नब्बे सालों का संगठन था. पुरानी पार्टी थी भाजपा. और पार्टी-फंड था. बाकी जुटा लिया गया. फिर धन-तन्त्र का खेला हुआ. खुल के पैसे का नंगा नाच. टीवी, रेडियो, अखबार, फेसबुक, व्हाट्स-एप, सड़क सब जगह अँधा पैसा फेंका गया. बस यही मौका था. नब्बे साल में अपने दम पर संघ समाज में स्वीकार्यता नहीं बना पाया था. लेकिन इस बार मैदान खाली था. सामने खिलाड़ी कोई था नहीं. जीतना ही था. 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' होने लगा. 'चाय पर चर्चा' के लिए खर्चा किया गया. ये बड़ी रैलियां की गईं. रैले. रेलम-पेल. एक ऐसे आदमी को प्रधान-मंत्री बना दिया गया, जिस में जीरो प्रतिभा थी. उसे कुछ पता ही नहीं था कि करना क्या है. उसकी क्वालिफिकेशन मात्र इतनी कि वो संघ का सदस्य था. कि गुजरात में मुस्लिम का दमनकारी था. गुजरात मॉडल की तरक्की का प्रचार किया गया, जिसका असल में किसी को कुछ पता नहीं था कि वो है क्या. इस्लाम के खिलाफ खूब प्रचार किया गया. उधर से इस्लामिक आतंक की खबरें पूरी दुनिया से आने लगीं. बस बात बन गई. मोदी प्रधान-मंत्री. बहुमत के साथ. अब लोगों को लगा कि अच्छे दिन आने ही वाले हैं. पन्द्रह लाख आने ही वाले हैं. महिला सुरक्षा होने ही वाली है. नौकरियों की बारिश होने ही वाली है. लेकिन हुआ क्या? गाय-गोबर. गौ रक्षक दल उभर आये. आश्रमों, से मन्दिरों से उठा-उठा के लोगों को मंत्री बना दिया गया. न नौकरियां आ पाईं, न महिला सुरक्षा हुई, न किसी को पन्द्रह लाख मिले, न अच्छे दिन मिले. स्वीकार भी कर लिया कि वो तो चुनावी जुमले थे, हमने कोई तारीख नहीं दी थी, अभी तो बीस साल और लगेगें, तीस साल, पचास साल. हाँ, मिले अच्छे दिन, लेकिन मोदी को. वो देश-विदेश खूब घूमे. वहां किराए की भीड़. 'मोदी- मोदी-मोदी'. घंटा.....बस वो घंटा बजाते रहे हर जगह मन्दिरों में. चार साल बीत गए हैं. भारत के हाथ कुछ नहीं आया सिवा खोखले शब्दों के. अब अगले चुनाव आने वाले हैं. और भारत का दुर्भाग्य है कि भारत के पास कोई भविष्य नहीं है. एक तरफ संघी दल भाजपा है और दूसरी तरफ छितरी हुई कई पार्टियाँ, जिनके अपने रिकॉर्ड खराब हैं. ऐसे में होगा क्या? भारत के पास एक भविष्य है कि फिर से नए लोग आयें. जुटें. पढ़े-लिखे. नई सोच के साथ. तार्किकता के साथ. वैज्ञानिकता के साथ. और भारत की जमी-जमाई बकवास सोच को धक्का मार सकें. ऐसे में मैं हाज़िर हूँ, मेरे जैसे और कई लोग मिल सकते हैं. लेकिन ऐसा होने की सम्भावना बहुत कम है. चूँकि भारत की राजनीति ब्रांडिंग का खेल है. अरबों रुपये फेंका जाता है. अभी मोदी ने एक्सरसाइज करते हुए कोई वीडियो डाला. करोड़ों लोगों ने देखा. ये एक्सरसाइज व्यायाम के नाम पर कलंक हैं. ऐसे चल रहे हैं, जैसे अण्डों पर चल रहे हों. ऐसे हाथ-पैर हिला रहे हैं, जैसे मोच ही न आ जाये. क्या है यह सब? ब्रांडिंग. यहाँ राजनीति 'विचार' किसके पास बढ़िया है, उससे नहीं चल रही, पैसा किस के पीछे बढ़िया है, ब्रांडिंग किसकी बढ़िया, इससे चलती है. नतीजा. फिलहाल भारत का कोई भविष्य नहीं. अगले पांच साल भी नहीं. ऐसे में समझ-दार भारत न छोड़े तो और क्या करे? यह समझने के लिए आयोग नहीं, अक्ल का सहयोग चाहिए, जो मोदी सरकार के पास है नहीं. एक और ट्रेजेडी यह हुई है मोदी काल में कि हर तरह की 'सोच' जो भी 'संघी सोच' के विरुद्ध है उसे दबाने का प्रयास किया गया है. खुशवंत सिंह को इसलिए नकारा जा रहा है चूँकि उसके पिता ने भगत सिंह के खिलाफ गवाही दी थी. हो सकता है दी हो, लेकिन उससे क्या? उनका लेखन अपनी जगह है. लेकिन असल वजह यह है कि वो हिन्दू पोंगा-पंथी के भी खिलाफ लिखते रहे हैं. कलबुर्गी, पंसरे, गौरी लंकेश आदि की हत्या करवा दी गई.मार्क्स को तो ठीक से लोगों तक पहुँचने ही नहीं दिया जा रहा. बस पोंगा-पंथी पेली जा रही है. भारत विश्व-गुरु था. यहाँ महाभारत काल में इन्टरनेट था, यहाँ रामायण काल में विमान था, सीता टेस्ट-टयूब बेबी थीं. वैरी गुड. था, तो अब क्या करें? नाचें. नहीं गर्व करो. 'गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं'. नहीं कहेंगे तो भारत में रहने नहीं देंगे. 'यदि भारत में रहना होगा तो वन्दे मातरम कहना होगा'. संघ की एक-एक शाखा में ये सब विचार बच्चों और बड़े बच्चों को पेले-ठेले जा रहा हैं, जिनको पता भी नहीं कि इस सब का असल मन्तव्य क्या है, मतलब क्या है. ऐसे में क्या होगा भारत का? यहाँ कोई वैज्ञानिकता नहीं फैलने वाली. यहाँ कोई सामाजिक-राजनीतिक सुधार होने वाले नहीं हैं. इस्लाम का डर है संघ को, जिसे उसने हिन्दू समाज तक पहुँचाया है और यह डर सच्चा है. इस्लाम सिर्फ नमाज़, रोज़े, ईद का नाम नहीं है. उसमें अपने कायदे-कानून हैं, जो किसी भी और विचार-धारा को नहीं मानते. और जनसंख्या अगर बढ़ गई मुसलमान की तो फिर सारा का सारा जनतंत्र-सेकुलरिज्म धरा का धरा रह जायेगा. इस्लाम सिर्फ मोहम्मद और कुरआन को मानता है. और कुरआन से निकले नियम-कायदे-कानून को मानता है. तो मैं जैसे हिंदुत्व के खिलाफ हूँ वैसे ही इस्लाम के भी खिलाफ हूँ. भारत में इस्लाम का प्रभुत्व न हो, हिंदुत्व का प्रभुत्व न हो, खालिस्तानियों का प्रभुत्व न हो, इसके लिए हर कम्युनिटी की जनसंख्या निर्धारित करनी ज़रूरी है. जनसंख्या एक ख़ास प्रतिशत से ऊपर कोई भी न बढ़ा पाए, इसके लिए कानून बनाने की ज़रूरत है. ऐसा कोई कानून न होने की ही वजह है कि आपको हिन्दू ब्रिगेड में से आवाजें आती हैं कि हिन्दू जनसंख्या बढाएं, चार बच्चे पैदा करें, छह पैदा करें. चाहे आत्म-हत्या की नौबत आ जाये, लेकिन घर में बच्चे ही बच्चे पैदा कर लें. खैर, मैं निराश हूँ. मुझे इस मुल्क का भविष्य अभी तो खराब ही दिख रहा है. जो होना चाहिए, वो होने वाला नहीं दिख रहा और जो नहीं होना चाहिए, वो सब होता दिख रहा है. नमन....तुषार कॉस्मिक

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