कभी कोर्ट का सामना किया हो तो आप मेरी बात समझ जायेंगे.
जज एक ऊंचे चबूतरे पर कुर्सी पर बैठते हैं. वकील, वादी, प्रतिवादी उनके सामने खड़े होते हैं. बीच में एक बड़ा सा टेबल टॉप होता है.
वकील आज भी 'मी लार्ड' कहते दिख जाते हैं.
क्या है ये सब?
आपको-मुझे, जो आम-अमरुद-आलू-गोभी लोग हैं, उन्हें यह अहसास कराने का ताम-झाम है कि वो 'झाऊँ-माऊं' हैं.
जज कौन है? जज जज है. ठीक है. लेकिन है तो जनता के पैसे से रखा गया जनता का सेवक.
तो फिर वो कैसे किसी का 'लार्ड' हो गया?
तो फिर काहे उसे इत्ता ज्यादा सर पे चढ़ा रखा है. उसे ऊंचाई पर क्यों, हमें निचाई पर क्यों रखा गया है? उसे बैठा क्यों रखा है, हमें खड़ा क्यों कर रखा है?
सोचिये. समझिये. आप जनता नहीं हैं. आप ही मालिक हैं. जज और हम लोग आमने-सामने होने चाहियें...एक ही लेवल पर. बैठे हुए. खतरा है तो गैप रख लीजिये.....बुलेट प्रूफ गिलास लगा लीजिये बीच में . फिर दोनों तरफ की आवाज़ साफ़ सुने उसके लिए माइक का इन्तेजाम कर लीजिये.
कार्रवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग कीजिये. हो सके तो youtube पर भी डालिए.
माहौल बदल जायेगा जनाब.
नमन........तुषार कॉस्मिक
No comments:
Post a Comment