मुझे ख़ुशी है कि बाबरी मस्जिद गिरी. हर मस्जिद गिरनी चाहिए. साथ ही मन्दिर भी.साथ ही गुरुद्वारे भी. गिरजा भी.
ये मन्दिर, मसीत, गुरूद्वारे जो इन्सान को हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख में बांटे ये धर्म नहीं अधर्म के अड्डे हैं.
यहाँ का प्रसाद अमृत नहीं, ज़हर है.
यहाँ के शब्द बुद्धि-हरण वटी हैं.
धर्म-स्थल होने चाहियें, जहाँ व्यक्ति शांत हो बैठना चाहे बैठ सके. सोना चाहे सो सके. नाचना चाहे नाच सके. सम्भोग करना चाहे, कर सके. लेकिन ऐसे स्थल कोई हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख के न हों. कोई अलग पहचान न छोडें, जिससे इंसानियत टुकड़ों में बंटे.
बोलिए समझ में आई मेरी बात?
तुषार कॉस्मिक
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