आपको न #मुसलमान बन कर सोचना है और न ही #हिन्दू बन कर. आपको सिर्फ सोचना है. तटस्थ हो कर.
और किसी भी घटना-दुर्घटना के पीछे इतिहास भी हो सकता है, यह भी देखना चाहिए, कोई आइडियोलॉजी भी हो सकती है, और वो आइडियोलॉजी खतरनाक भी हो सकती है, यह भी देखना चाहिए.
शिकारी जब खुद शिकार बनने लगे तो वो चीखने लगता है, देखो मैं विक्टिम हूँ, मैं विक्टिम हूँ. इसे 'विक्टिम कार्ड' खेलना कहते हैं.
चोर पकड़ा न जाए, इसलिए चोरी करने के बाद सबसे ज्यादा वोही चिल्लाता है, "चोर, चोर, पकड़ो, पकड़ो." ताकि कम से कम यह तय हो जाये कि वो चोर नहीं है. किसी का भी शक कम से कम उस पर न जाए.
जब दो लोग लड़ रहे होते हैं तो दोनों एक जैसे लगते हैं, लोग अक्सर कमेंट करते हैं कि साले ये लड़ाके लोग हैं, लड़ते रहते हैं, वो इत्ती ज़हमत ही नहीं उठाते कि शायद उन में से कोई एक ऐसा भी हो सकता है, जो सही लड़ाई लड़ रहा हो. लोग समझते ही नहीं कि शायद कोई एक सिर्फ इसलिए लड़ रहा है कि उस पर अटैक किया जा रहा है. बार-बार किया जा रहा है. क्रिया की प्रतिक्रिया है. आपको जो मुसलामानों पर अत्याचार लग रहा है. वो उनकी अपनी करनी का फल है. वो उनकी अपनी आइडियोलॉजी का बैक-फायर है. क्या सोचते थे? सरदार खुस्स होगा, साबासी देगा? दुनिया कहीं तो जवाब देगी?
मेरा तर्क यह है कि आप हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौध हो कर सोचते हैं तो गलत है. न. फिर आप इक छोटे इस्लाम में खुद को कैद कर रहे हैं. एक गंदे बदबूदार दड़बे में न सही, एक सज धजे कमरे में खुद को कैद कर रहे हैं. लेकिन है कैद ही.
आज का हर समाज समय-बाह्य है. मतलब जैसे विज्ञान ने सीवर सिस्टम दे दिया लेकिन आप फिर भी अड़े रहें कि नहीं ये तो हमारी सदियों की परम्परा है, हम तो डब्बा लेकर खेत में ही जायेंगे शौच करने.
तो हर समाज लगभग ऐसा ही है. वो बहुत कुछ अड़ा हुआ है, सड़ा हुआ है. हमें अंततः हर धर्म/ दीन/ हर इस तरह के समाज का विरोध करना ही होगा तो ही इन्सान नए दौर में जा पायेगा. वरना सारी पृथ्वी को ले डूबेगा. "हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे." डूब ही रहा है, डुबा ही रहा है.
इस्लाम का सबसे ज्यादा विरोध इसलिए है चूँकि वो हिंसक भी है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं. वैचारिक तौर भी. वहां आपकी एक न चलेगी. सब विचार खत्म. आपको बंधना होगा. आपकी सोच को बंधना होगा. कुरान और मोहम्मद के गिर्द. और यह घातक है.
'पोटाशियम साइनाइड' इस्लाम है, बाकी छोटे ज़हर हैं, कुछ तो इतने धीमे कि जहर जैसे लगें भी न.
माफिया इस्लाम है, बाकी छोटे-मोटे गुंडे हैं.
कश्मीर. आपको कश्मीर पर मेरी राय जाननी है तो यह समझना होगा कि मेरी दीन-दुनिया के बारे में क्या राय है?
मेरी राय है कि कोई भी धर्म/ दीन से बंधना मूर्खता है. क्या आप सारी उम्र एक ही सब्जी खाने पर अड़े रहते हैं? क्या आप एक ही रंग के कपड़े पहनते हैं ता-उम्र? क्या आप अपने शरीर को बंधन में बांधना पसंद करते हैं?
फिर किसी और की सोच से क्यों बंधना? चाहे कोई चौदह सौ साल पहले हुआ या चौदह हजार साल पहले?
चाहे कोई अरब में पैदा हुआ, चाहे अयोध्या में.
हम हमारी सोच से क्यों न जीयें? हम बिना ठप्पा लगे ही क्यों न जीयें?
मेरी सोच यह है जैसे विज्ञान आगे बढ़ता है, वैसे ही 'समाज विज्ञान' को भी आगे बढ़ना चाहिए और इंसान को इस 'समाज विज्ञान' को आत्म-सात करना चाहिए.
लेकिन सब समाज किसी न किसी धर्म से बंधे हैं. लगभग सब कहते हैं कि नहीं, हमारे नबी/ अवतार/ भगवान/गुरु जो फरमा गए वही सही है. इस्लाम इसमें सबसे ज़्यादा कट्टर है. वो तो टस से मस हो के राज़ी नहीं. सो खड़ा है. जस का तस.
और इस्लाम पूरी दुनिया को अपनी लपेट में लेने को उत्सुक हैं. लोग इस्लाम की दावत देते फिर रहे हैं. "इस्लाम कबूल करो." कोई गुनाह है कि कबूल करना है?
और इस्लाम हिंसक है. बम फटाक.
इसलिए इस्लाम को पूरी दुनिया से खदेड़ना ज़रूरी है.
कश्मीर का मसला कोई मसला नहीं होता अगर वहां सिर्फ मुस्लिम न होते. इस मसले की न कानून अहम वजह है, न इतिहास और न राजनीति.
अहम् वजह इस्लाम है.
भारत की एक तरफ पाकिस्तान है. मुस्लिम मुल्क है. वो पाकिस्तान और भारत नापाक-स्तान. दूसरी तरफ बांगला-देश है. मुस्लिम बहुल मुल्क है. उधर कश्मीर है. मुस्लिम बहुल प्रदेश है. और कहते हैं कि भारत के अंदर जितने मुस्लिम हैं, उतने किसी और मुल्क में नहीं है. ऐसे में यदि गैर-मुस्लिम को अपना कल्चर बचाए रखना है तो उसे हर तरह से इस्लाम का विरोध करना ही होगा. कोई और चॉइस नहीं है.
और आरएसएस का शक्ति में आने की एक वजह यह है कि भारत का गैर-मुस्लिम अपने समाज को इस्लाम के आक्रमण से बचाए रखना चाहता है.
मेरा मानना यह है कि धरती माता ने किसी के नाम रजिस्ट्री नहीं कि वो किसकी है. लेकिन 'सर्वाइवल ऑफ़ दी फिटेस्ट' की थ्योरी बिलकुल काम करती है. 'वीर भोग्या वसुंधरा'. वीर भोगते हैं वसुंधरा. हिन्दू पॉवर में थे तो उन्होंने कश्मीर पर राज कर लिया. अंग्रेज़ पावरफुल थे तो उन्होंने अपना सिक्का जमाया. मुस्लिम शक्ति में आये तो उन्होंने वहां से हिन्दू भगा दिए.
आरएसएस शक्ति में आया तो उन्होंने अब कानून में रद्दो-बदल कर दिए. मैं इसका स्वागत करता हूँ. इसलिए चूँकि यह इस्लामिक शक्तियों को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकता है.
और जब मैं इस्लाम का विरोध करता हूँ तो वो कोई हिन्दू का समर्थन नहीं है. हिन्दुत्व का समर्थन नहीं है. लाख कहते रहें आरएसएस वाले कि हिंदुत्व अपने आप में सेक्युलर है, हिन्दुत्व में सब मान्यताओं का सम्मान है लेकिन आप मांगें कोई मन्दिर कि मुझे राम के खिलाफ प्रवचन करना है, आपको भगा दिया जायेगा.
फिर भी यह समाज उतना लगा-बंधा नहीं है जितना इस्लाम. इस्लाम की तरह एक दम डिब्बा-बंद, सील-बंद समाज नहीं है. यहाँ फिर गुंजाईश है, बहुत गुंजाईश है कि आप कुछ भी सोच सकते हैं, लिख सकते हैं, बोल सकते हैं.
इस समाज को 'नव-समाज' की तरफ अग्रसर किया जा सकता है. इस्लाम के साथ ऐसी कोई सम्भावना नहीं है. 'नव-समाज' का रास्ता इस्लाम से होकर नहीं गुजरेगा. न. इस्लाम तोे इस राह में चीन की दीवार है. इसे गिराना ही होगा.
मैं जानता हूँ कि 'मुल्क' बकवास कांसेप्ट है. पूरी पृथ्वी, कायनात एक है. लेकिन मेरे मानने से क्या होता है? सब लोग बंटे हैं. धर्मों में. विभिन्न मान्यताओं में. और अपने-अपने ज़मीन के टुकड़े को पकड़ के बैठे हैं. सो जब तक कोई 'वैश्विक संस्कृति', 'ग्लोबल कल्चर' पैदा नहीं होती तब तक तो मुल्क रहेंगे और तब तक रहने भी चाहियें ताकि ऐसा न हो कि ग्लोबल कल्चर ऐसी हो जाये कि हमें आगे ले जाने की बजाए चौदह सौ या चौदह हजार साल पीछे धकेल दे. अगर हम इस्लाम का विरोध नहीं करते तो यही होने वाला है. हमें ग्लोबल कल्चर चाहिए जो समाज-विज्ञान पर आधारित हो. ऐसा कल्चर चाहिए जो आज के विज्ञान के अनुरूप हो. जो खुद को हर पल बदलने को तैयार हो. जो किसी अवतार, किसी गुरु, किसी नबी, किसी कुरान-पुराण से बंधा न हो.
इसी परिप्रेक्ष्य में मुझे लगता है कि कश्मीर का भारत में विलय सही है. कश्मीर क्या धरती के हर कोने से इस्लामिक शक्तियों को कमजोर करने का जो भी प्रयास हो उसका स्वागत होना चाहिए. एक बार इस्लाम को आपने बाहर कर दिया, बाकी धर्म बाहर करना इत्ता मुश्किल न होगा.
एक बार माफिया खत्म तो बाकी छोटे-मोटे गुंडे ज़्यादा देर टिक न पायेंगे. लेकिन यह भी तभी आसान होगा जब पूरी दुनिया के बुद्धिजीवी हर धर्म की बखिया उधेड़ते रहें. सो कश्मीर का भारत में विलय का फिलहाल स्वागत है.
इस्लाम का विरोध रहेगा लेकिन विरोध हिंदुत्व का भी रहेगा. चूँकि टारगेट 'विश्व बन्धुत्व' है. इसमें न हिंदुत्व चलेगा और न इस्लाम.
और कश्मीर का भारत में विलय का स्वागत भी वक्ती है चूँकि टारगेट 'वसुधैव कुटुम्बकम' है. इसमें न कोई इस तरह का प्रदेश चलेगा और न देश.
नमन.....तुषार कॉस्मिक
और किसी भी घटना-दुर्घटना के पीछे इतिहास भी हो सकता है, यह भी देखना चाहिए, कोई आइडियोलॉजी भी हो सकती है, और वो आइडियोलॉजी खतरनाक भी हो सकती है, यह भी देखना चाहिए.
शिकारी जब खुद शिकार बनने लगे तो वो चीखने लगता है, देखो मैं विक्टिम हूँ, मैं विक्टिम हूँ. इसे 'विक्टिम कार्ड' खेलना कहते हैं.
चोर पकड़ा न जाए, इसलिए चोरी करने के बाद सबसे ज्यादा वोही चिल्लाता है, "चोर, चोर, पकड़ो, पकड़ो." ताकि कम से कम यह तय हो जाये कि वो चोर नहीं है. किसी का भी शक कम से कम उस पर न जाए.
जब दो लोग लड़ रहे होते हैं तो दोनों एक जैसे लगते हैं, लोग अक्सर कमेंट करते हैं कि साले ये लड़ाके लोग हैं, लड़ते रहते हैं, वो इत्ती ज़हमत ही नहीं उठाते कि शायद उन में से कोई एक ऐसा भी हो सकता है, जो सही लड़ाई लड़ रहा हो. लोग समझते ही नहीं कि शायद कोई एक सिर्फ इसलिए लड़ रहा है कि उस पर अटैक किया जा रहा है. बार-बार किया जा रहा है. क्रिया की प्रतिक्रिया है. आपको जो मुसलामानों पर अत्याचार लग रहा है. वो उनकी अपनी करनी का फल है. वो उनकी अपनी आइडियोलॉजी का बैक-फायर है. क्या सोचते थे? सरदार खुस्स होगा, साबासी देगा? दुनिया कहीं तो जवाब देगी?
मेरा तर्क यह है कि आप हिन्दू, सिक्ख, जैन, बौध हो कर सोचते हैं तो गलत है. न. फिर आप इक छोटे इस्लाम में खुद को कैद कर रहे हैं. एक गंदे बदबूदार दड़बे में न सही, एक सज धजे कमरे में खुद को कैद कर रहे हैं. लेकिन है कैद ही.
आज का हर समाज समय-बाह्य है. मतलब जैसे विज्ञान ने सीवर सिस्टम दे दिया लेकिन आप फिर भी अड़े रहें कि नहीं ये तो हमारी सदियों की परम्परा है, हम तो डब्बा लेकर खेत में ही जायेंगे शौच करने.
तो हर समाज लगभग ऐसा ही है. वो बहुत कुछ अड़ा हुआ है, सड़ा हुआ है. हमें अंततः हर धर्म/ दीन/ हर इस तरह के समाज का विरोध करना ही होगा तो ही इन्सान नए दौर में जा पायेगा. वरना सारी पृथ्वी को ले डूबेगा. "हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे." डूब ही रहा है, डुबा ही रहा है.
इस्लाम का सबसे ज्यादा विरोध इसलिए है चूँकि वो हिंसक भी है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं. वैचारिक तौर भी. वहां आपकी एक न चलेगी. सब विचार खत्म. आपको बंधना होगा. आपकी सोच को बंधना होगा. कुरान और मोहम्मद के गिर्द. और यह घातक है.
'पोटाशियम साइनाइड' इस्लाम है, बाकी छोटे ज़हर हैं, कुछ तो इतने धीमे कि जहर जैसे लगें भी न.
माफिया इस्लाम है, बाकी छोटे-मोटे गुंडे हैं.
कश्मीर. आपको कश्मीर पर मेरी राय जाननी है तो यह समझना होगा कि मेरी दीन-दुनिया के बारे में क्या राय है?
मेरी राय है कि कोई भी धर्म/ दीन से बंधना मूर्खता है. क्या आप सारी उम्र एक ही सब्जी खाने पर अड़े रहते हैं? क्या आप एक ही रंग के कपड़े पहनते हैं ता-उम्र? क्या आप अपने शरीर को बंधन में बांधना पसंद करते हैं?
फिर किसी और की सोच से क्यों बंधना? चाहे कोई चौदह सौ साल पहले हुआ या चौदह हजार साल पहले?
चाहे कोई अरब में पैदा हुआ, चाहे अयोध्या में.
हम हमारी सोच से क्यों न जीयें? हम बिना ठप्पा लगे ही क्यों न जीयें?
मेरी सोच यह है जैसे विज्ञान आगे बढ़ता है, वैसे ही 'समाज विज्ञान' को भी आगे बढ़ना चाहिए और इंसान को इस 'समाज विज्ञान' को आत्म-सात करना चाहिए.
लेकिन सब समाज किसी न किसी धर्म से बंधे हैं. लगभग सब कहते हैं कि नहीं, हमारे नबी/ अवतार/ भगवान/गुरु जो फरमा गए वही सही है. इस्लाम इसमें सबसे ज़्यादा कट्टर है. वो तो टस से मस हो के राज़ी नहीं. सो खड़ा है. जस का तस.
और इस्लाम पूरी दुनिया को अपनी लपेट में लेने को उत्सुक हैं. लोग इस्लाम की दावत देते फिर रहे हैं. "इस्लाम कबूल करो." कोई गुनाह है कि कबूल करना है?
और इस्लाम हिंसक है. बम फटाक.
इसलिए इस्लाम को पूरी दुनिया से खदेड़ना ज़रूरी है.
कश्मीर का मसला कोई मसला नहीं होता अगर वहां सिर्फ मुस्लिम न होते. इस मसले की न कानून अहम वजह है, न इतिहास और न राजनीति.
अहम् वजह इस्लाम है.
भारत की एक तरफ पाकिस्तान है. मुस्लिम मुल्क है. वो पाकिस्तान और भारत नापाक-स्तान. दूसरी तरफ बांगला-देश है. मुस्लिम बहुल मुल्क है. उधर कश्मीर है. मुस्लिम बहुल प्रदेश है. और कहते हैं कि भारत के अंदर जितने मुस्लिम हैं, उतने किसी और मुल्क में नहीं है. ऐसे में यदि गैर-मुस्लिम को अपना कल्चर बचाए रखना है तो उसे हर तरह से इस्लाम का विरोध करना ही होगा. कोई और चॉइस नहीं है.
और आरएसएस का शक्ति में आने की एक वजह यह है कि भारत का गैर-मुस्लिम अपने समाज को इस्लाम के आक्रमण से बचाए रखना चाहता है.
मेरा मानना यह है कि धरती माता ने किसी के नाम रजिस्ट्री नहीं कि वो किसकी है. लेकिन 'सर्वाइवल ऑफ़ दी फिटेस्ट' की थ्योरी बिलकुल काम करती है. 'वीर भोग्या वसुंधरा'. वीर भोगते हैं वसुंधरा. हिन्दू पॉवर में थे तो उन्होंने कश्मीर पर राज कर लिया. अंग्रेज़ पावरफुल थे तो उन्होंने अपना सिक्का जमाया. मुस्लिम शक्ति में आये तो उन्होंने वहां से हिन्दू भगा दिए.
आरएसएस शक्ति में आया तो उन्होंने अब कानून में रद्दो-बदल कर दिए. मैं इसका स्वागत करता हूँ. इसलिए चूँकि यह इस्लामिक शक्तियों को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकता है.
और जब मैं इस्लाम का विरोध करता हूँ तो वो कोई हिन्दू का समर्थन नहीं है. हिन्दुत्व का समर्थन नहीं है. लाख कहते रहें आरएसएस वाले कि हिंदुत्व अपने आप में सेक्युलर है, हिन्दुत्व में सब मान्यताओं का सम्मान है लेकिन आप मांगें कोई मन्दिर कि मुझे राम के खिलाफ प्रवचन करना है, आपको भगा दिया जायेगा.
फिर भी यह समाज उतना लगा-बंधा नहीं है जितना इस्लाम. इस्लाम की तरह एक दम डिब्बा-बंद, सील-बंद समाज नहीं है. यहाँ फिर गुंजाईश है, बहुत गुंजाईश है कि आप कुछ भी सोच सकते हैं, लिख सकते हैं, बोल सकते हैं.
इस समाज को 'नव-समाज' की तरफ अग्रसर किया जा सकता है. इस्लाम के साथ ऐसी कोई सम्भावना नहीं है. 'नव-समाज' का रास्ता इस्लाम से होकर नहीं गुजरेगा. न. इस्लाम तोे इस राह में चीन की दीवार है. इसे गिराना ही होगा.
मैं जानता हूँ कि 'मुल्क' बकवास कांसेप्ट है. पूरी पृथ्वी, कायनात एक है. लेकिन मेरे मानने से क्या होता है? सब लोग बंटे हैं. धर्मों में. विभिन्न मान्यताओं में. और अपने-अपने ज़मीन के टुकड़े को पकड़ के बैठे हैं. सो जब तक कोई 'वैश्विक संस्कृति', 'ग्लोबल कल्चर' पैदा नहीं होती तब तक तो मुल्क रहेंगे और तब तक रहने भी चाहियें ताकि ऐसा न हो कि ग्लोबल कल्चर ऐसी हो जाये कि हमें आगे ले जाने की बजाए चौदह सौ या चौदह हजार साल पीछे धकेल दे. अगर हम इस्लाम का विरोध नहीं करते तो यही होने वाला है. हमें ग्लोबल कल्चर चाहिए जो समाज-विज्ञान पर आधारित हो. ऐसा कल्चर चाहिए जो आज के विज्ञान के अनुरूप हो. जो खुद को हर पल बदलने को तैयार हो. जो किसी अवतार, किसी गुरु, किसी नबी, किसी कुरान-पुराण से बंधा न हो.
इसी परिप्रेक्ष्य में मुझे लगता है कि कश्मीर का भारत में विलय सही है. कश्मीर क्या धरती के हर कोने से इस्लामिक शक्तियों को कमजोर करने का जो भी प्रयास हो उसका स्वागत होना चाहिए. एक बार इस्लाम को आपने बाहर कर दिया, बाकी धर्म बाहर करना इत्ता मुश्किल न होगा.
एक बार माफिया खत्म तो बाकी छोटे-मोटे गुंडे ज़्यादा देर टिक न पायेंगे. लेकिन यह भी तभी आसान होगा जब पूरी दुनिया के बुद्धिजीवी हर धर्म की बखिया उधेड़ते रहें. सो कश्मीर का भारत में विलय का फिलहाल स्वागत है.
इस्लाम का विरोध रहेगा लेकिन विरोध हिंदुत्व का भी रहेगा. चूँकि टारगेट 'विश्व बन्धुत्व' है. इसमें न हिंदुत्व चलेगा और न इस्लाम.
और कश्मीर का भारत में विलय का स्वागत भी वक्ती है चूँकि टारगेट 'वसुधैव कुटुम्बकम' है. इसमें न कोई इस तरह का प्रदेश चलेगा और न देश.
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