सेक्युलरिज्म

सेक्युलरिज्म दुनिया के सबसे कीमती कांसेप्ट में से है. यह वही है जो मैंने लिखा कि सबको अपनी अपनी मूर्खताओं के साथ जीने का हक़ होना चाहिए, तब तक जब तक आप दूजों की जिंदगियों में दखल न दो.


यह जो संघी इसके खिलाफ हैं, वो इडियट हैं. उनमें और मुस्लिम में ख़ास फर्क नही. वो कहते हैं कि हिंदुत्व सेक्युलर है. By Default. नहीं है. होना चाहिए. लेकिन नहीं है. मैं राम के खिलाफ बोलना चाहता हूँ कृष्ण के भी. काली माता के भी. गौरी माता के भी. झंडे वाली माता के भी. कुत्ते वाली माता के भी. मुझे मन्दिर देंगे बोलने के लिए? नहीं देंगे.


सो टारगेट सेकुलरिज्म होना चाहिए किसी भी आइडियल समाज का. लेकिन यह देखने की बात है कि जो तबके/ दीन/ मज़हब By default हैं ही सेकुलरिज्म के खिलाफ. जैसे इस्लाम. उनको अगर आप सेकुलरिज्म के कांसेप्ट वाले समाज में डाल भी दोगे तो वो आपकी मूर्खता है. जैसे मैं नहीं हूँ हिन्दू. लेकिन अगर कोई मुझे हिन्दुत्व के कांसेप्ट में डाल भी देगा तो वो उसकी मूर्खता है. और यह गलती कर रहा है भारतीय समाज. और यह गलती दुनिया में और भी समाजों में हो रही है.


खतरनाक गलती है.

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