बड़ी फेस-बुक फ्रेंड लिस्ट- एक सर दर्द
लड़कपन में पैसे होते थे वही जो जेब खर्च मिलते. मिल बाँट कर खाते कई बार. लेकिन सबको लगता कि खाना कम पड़ गया. मन रखने को यार अक्सर कहते, "चाहे थोड़ा खाओ लेकिन अच्छा खाओ." आज लगता है, कितनी सही बात थी. हम फेसबुक लिस्ट में लोग भरे जाते हैं. फ़िज़ूल. जिनका हम से कोई मतलब नहीं और जिनसे हम को कोई मतलब नहीं. बड़ी मुश्किल कोई 1000 लोग हटाये हैं, अभी अभियान जारी रहेगा. लंबी मेहनत है. थोड़े लोग रखो लेकिन मतलब के लोग रखो. मित्रवर, मैं बड़ी तेजी से मित्र-सूची छोटी कर रहा हूँ. हालाँकि बहुत श्रम का काम है लेकिन कर रहा हू. अभी बस 6/700 लोग ही हटा पाया हूँ. कुछ मित्रों ने तो 3-3 id से प्रवेश किया हुआ था. किसी को देखा तो सालों से पड़ा हुआ है लिस्ट में लेकिन न उसने मेरी सुध ली और न मैंने उसकी. कोई बस नाश्ता-पानी की फ़ोटो ही पोस्ट कर जा रहा है.भुक्खड़. कोई बस पॉर्नहब चला रहा है. कोई भाजपा का एजेंट है तो कोई कांग्रेस का. असल में हम शुरू में सब लोग भर्ती करे जाते हैं लेकिन फिर फेसबुक ने तो सब की ज़िंदगियाँ दिखानी हैं. न चाहते हुए बहुत कुछ ऐसा देखना पड़ता है जो हमारी ज़िंदगी में कोई value-addition नहीं करत...