मुझ से किसी ने कहा,"इत्ता सच मत बोलो कि हमाये लत्ते ही उतर जाएं."
मैंने कहा, "वहम हुआ तुझे. मैं कोई बाबा हूँ? संत हूँ?
मैं माफिया हूँ. फलसफे का माफिया.
मैंने कभी हमेशा सच बोलना नहीं सिखाया. मैंने कभी हमेशा शांति से जीना नहीं सिखाया. जीवन इत्ता टेढ़ा है कि हमेशा सच बोला ही नहीं जा सकता. हमेशा शांतिपूर्ण रहा ही नहीं जा सकता. जितना ज़रूरी सच है, उतना ही ज़रूरी झूठ है. जितना ज़रूरी शांत होना है, उतना ही ज़रूरी जंग-जू होना है. यदि तुम्हें तलवार चलाने की हिम्मत न हुई तो लोग तुम्हारी वैसे ही गर्दन उतार लेंगे. यदि तुम हमेशा सच बोलते रहे तो वैसे ही तुम्हारी @#$ मार लेंगे.....तुषार कॉस्मिक
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