लेखन वक्त-खाऊ काम है. दिल-दिमाग-ऊर्जा सब लगता है. तन-मन-धन सब लगता है.
और
यहाँ चूँकि हर किस्म के लोग हमने अपनी लिस्ट में इक्कठे किये होते हैं तो बहुत लोग जवाब में गाली लिखते हैं, कोई व्यक्तिगत हमला करता है तो कोई व्यंग्य-बाण छोड़ता है. किसी को हमारी शक्ल में खामियां दिखने लगती हैं.
मेरी मित्रगण से प्रार्थना है कि भई, जो भी सोशल मीडिया लेखक हैं यदि नहीं पसंद तो आप उनको अलविदा कीजिये और यदि थोडा बहुत भी पसंद हैं तो लेखक को प्रोत्साहित कीजिये.
मेरे आठ सौ लेख हैं. मैराथन बहस भी हुई हैं उन पर. मुझ पर पैसे ले के लिखने के आरोप भी लगे हैं. लेकिन आठ सौ पैसे नहीं कमाए मैंने आज तक. हाँ, गाली, धमकी, बदतमीज़ी ज़रूर मिली है.
फिर भी क्यों लिखा?
मात्र इस उम्मीद में कि शायद मेरे लेखन से कुछ बेहतरी हो सके.
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