कभी गरुड़ पुराण पढना, जो हिन्दू लोग किसी के मरने पर अपने घरों में पढवाते हैं. बचकाना. महा बचकाना कथन. सबूत किसी बात का नहीं.
इस्लाम में भी “आखिरत” की धारणा है. मरने के बाद इन्सान को उसके इस जीवन में कर्मों के हिसाब से इनाम या सज़ा.
सब बकवास है, किसी बात का कोई सबूत नहीं.
बस लम्बी-लम्बी छोड़ी गई हैं.
जन्नत, जहन्नुम दोनों को जहन्नुम रसीद करो.
ख्वाबों की दुनिया से बाहर आओ.
जो है यहीं है. यह जो तुम हिन्दू, मुसलमान, इसाई आदि नामक गुलामियाँ अपने गले में लटकाए घूमते हो, यही जहन्नुम है.
और वो जो बच्चा जनरेटर की आवाज़ पर नाच रहा है, वो ही जन्नत है.
आज याद आया एक किस्सा कि कोई सूफी औरत बाज़ार में दौड़ रही थी , एक हाथ में आग और दूसरे में पानी लिए.
पूछने पर बोली कि जन्नत को जला दूंगी और जहन्नुम को डुबा दूंगी.
उसका कुल मतलब यह है कि जन्नत के लोभ और जहन्नुम के डर पर खड़ा मज़हब बकवास है.
और आपके सब मज़हब ऐसे ही हैं. जन्नत और जहन्नुम पर खड़े मज़हबों ने इस दुनिया को जहन्नुम कर दिया है.
आप जन्नत को, जहन्नुम को जहन्नुम रसीद करें, दुनिया, यही दुनिया जन्नत है.
इस्लाम में भी “आखिरत” की धारणा है. मरने के बाद इन्सान को उसके इस जीवन में कर्मों के हिसाब से इनाम या सज़ा.
सब बकवास है, किसी बात का कोई सबूत नहीं.
बस लम्बी-लम्बी छोड़ी गई हैं.
जन्नत, जहन्नुम दोनों को जहन्नुम रसीद करो.
ख्वाबों की दुनिया से बाहर आओ.
जो है यहीं है. यह जो तुम हिन्दू, मुसलमान, इसाई आदि नामक गुलामियाँ अपने गले में लटकाए घूमते हो, यही जहन्नुम है.
और वो जो बच्चा जनरेटर की आवाज़ पर नाच रहा है, वो ही जन्नत है.
आज याद आया एक किस्सा कि कोई सूफी औरत बाज़ार में दौड़ रही थी , एक हाथ में आग और दूसरे में पानी लिए.
पूछने पर बोली कि जन्नत को जला दूंगी और जहन्नुम को डुबा दूंगी.
उसका कुल मतलब यह है कि जन्नत के लोभ और जहन्नुम के डर पर खड़ा मज़हब बकवास है.
और आपके सब मज़हब ऐसे ही हैं. जन्नत और जहन्नुम पर खड़े मज़हबों ने इस दुनिया को जहन्नुम कर दिया है.
आप जन्नत को, जहन्नुम को जहन्नुम रसीद करें, दुनिया, यही दुनिया जन्नत है.
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