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Zepto से डिलीवरी मंगवाने की जगह अपने इलाके के परचून वालों से डिलीवरी लें. क्यों?

मेरा मानना है कि धन का कुछ ही हाथों में एकत्रित होना खतरनाक है. इसका विकेंद्री-करण होना चाहिए. छोटे और मझोले उद्योग और व्यापारों को जितना हो सके सहयोग दें. प्रयास करें कि रिलायंस फ्रेश की जगह फेरी वालों से सब्ज़ी खरीदें. Zepto से डिलीवरी मंगवाने की जगह अपने इलाके के परचून वालों से डिलीवरी लें. जहाँ तक हो सके बड़ी कम्पनियों को काम न दें. आज आप अपने गली-मोहल्ले वालों को काम देंगे, कल वो आप को काम देंगे. एक मिसाल देता हूँ, मैंने हमेशा बिजली-पानी के बिल नवीन को भरने के लिए दिए. वर्षों से. वो दस-पन्द्रह रुपये प्रति बिल लेते हैं. जब मैं ऑनलाइन पेमेंट कर सकता हूँ, उस के बावज़ूद. उन को काम मिला मुझ से. मुझे काम मिला उन से. उन्होंने तकरीबन सत्तर लाख का एक फ्लोर लिया मेरे ज़रिये. और जिन का वो फ्लोर था उन्होंने आगे डेढ़ करोड़ रुपये का फ्लैट लिया मेरे ज़रिये. इस तरह कड़ी बनती चली गयी. नौकरी-पेशा कह सकते हैं कि हमें क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है. दूसरे ढंग से फर्क पड़ता है. समाज को कलेक्टिव फर्क पड़ता है. यदि हम कॉर्पोरेट को सहयोग देंगे तो सम्पति धीरे-धीरे चंद हाथों चली जाएगी. जो अभी काफी हद तक जा ही चुकी ...

मोक्ष

 मुझे लगता है मोक्ष की कामना ही इसलिए रही होगी कि जीवन अत्यंत दुःख भरा रहा होगा. एक मच्छर. "एक मच्छर साला हिजड़ा बना देता है." कुछ सदी पहले का ही जीवन काफी मुश्किलात से भरा रहा होगा.. "ये जीना भी कोई जीना है लल्लू." सो मोक्ष. "वरना कौन जाए जौक दिल्ली की गलियां छोड़ कर." ज़िन्दगी ऐसी रही होगी जिसमें ज़िंदगी होगी ही नहीं. बेजान. वरण ठंडी नरम हवा, बारिश की बूँदें, नदी की लहरें, समन्दर का किनारा, पहाड़ी पग-डंडियाँ...इतना कुछ छोड़ कर कौन मोक्ष की कामना करेगा?~ तुषार कॉस्मिक

को.रो.ना.....शिकंजा

 मैं रोज़ तुम्हें आगाह करता हूँ. शिकंजा धीरे-धीरे तुम पर कसता जायेगा. और कुछ नहीं कर सकते तो बीच -बीच में सब ग्रुप्स में मेरा लेखन या मेरे जैसा लेखन पोस्ट करो

मन तन से बड़ा फैक्टर है इंसानी सेहत में

पुनीत राज कुमार औऱ एक कोई औऱ एक्टर मर गया.शायद जिम में. तो लोग बोले कसरत करने का कोई फायदा है ही नहीं.भले चंगे जवान लोग जिम में मर जाते हैं. कोई बोला ओवर एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिये.कोई बोला ये जिम जाने वाले बॉडी बनाने के लिए डब्बे खाते हैं डब्बे, वही नुक्सान करते हैं. मुझे लगता है एक चीज़ छूट गई लोगों से. असल में We, human beings are not body alone. We are Mind-body. Allopathy  का सारा ज़ोर बॉडी पर है. इसीलिए ये जो लोग मरे तो लोगों की observations सब बॉडी से सम्बंधित ही आईं. किसी ने Mind का ख्याल ही नहीं किया. असलियत यह है मन में अगर तनाव आया तो एक सेकंड में भले चंगे आदमी की हार्ट अटैक आ सकता है, ब्रेन हेमरेज हो सकता हक़ी, परलीसिस हो सकता है. मन तन से बड़ा फैक्टर है इंसानी सेहत में.~कॉस्मिक

जाट रे जाट, सोलह दूनी आठ

 जब गुरु तेग बहादुर शहीद किये जा चुके थे तो उन का सर ले के शिष्य भागे. पीछे मुगल फ़ौज थी. हरियाणा के कोई "दहिया" थे, जिन्होंने ने अपना सर काट पेश कर दिया मुगल सेना को भरमाने को ताकि गुरु के शीश की बेकद्री न हो. पढ़ा था कहीं. सच-झूठ पता नहीं. जाट रेजिमेंट, सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार विजेता रेजिमेंट है. अब फिर खेलों में मैडल ले रहे हैं  हरियाणवी छोरे-छोरियाँ. लेकिन यह एक पक्ष है. दूसरा पक्ष. दिल्ली में हरियाणवी लोगों को "घोडू" कहा जाता है. "जाट रे जाट, सोलह दूनी आठ." क्यों? क्योंकि बेहद अक्खड़ हैं. तू-तडांग की भाषा प्रयोग करते हैं.  बदतमीजी करते हैं. झगड़े करते हैं. और बदमाशी भी करते हैं. आप देख रहे हैं दिल्ली में जितने गैंगस्टर हैं सब हरियाणा के जाटों छोरों के हैं. क्यों? वजह है. दिल्ली की ज़मीनों ने सोना उगला और सब देहात करोड़पति हो गए. और बिना मेहनत का पैसा बर्बाद कर देता है. वही हुआ. पैसा आया लेकिन समझ न आ पाई. तभी सुशील कुमार ओलिंपिक मैडल जीत कर भी क्रिमिनल बन गया. जाट समाज को अपने अंदर झाँकना होगा, समझ पैदा करनी होगी, ऊर्जा पॉजिटिव दिशाओं में मोड़नी होगी. अन्...

एक बड़ा ही आदिम समाज, अवैज्ञानिक किस्म का समाज खड़ा हो जाता है

 मेरा इस्लाम का जो विरोध है उस के कई कारण हैं. एक यह है कि जहाँ-जहाँ इस्लाम पहुँचता है, यह वहां की लोकल कल्चर को खा जाता है. वहां के उत्सव, वहां का खाना-पीना, वहाँ का कपड़े पहनने का ढंग, सब कुछ खा जाता है. औरतें तरह-तरह के रंगीन कपड़ों की बजाए काले लबादों में लिपट जाती हैं. आदमी लोग ऊंचे-पायजामे, लम्बे-कुर्ते पहनने लगते हैं. अजीब दाढ़ी रखने लगते हैं.  गीत संगीत का बहिष्कार होने लगता है. उत्सव के नाम पर ईद-बकरीद बचती है. जिस में बकरीद पर  रस्से से बंधे बेचारे जानवर की गर्दन पर छुरी चलाई जाती है. बाकी सब उत्सव खत्म. और तो और, इस्लाम से पहले के इतिहास से भी समाज को तोड़ा जाता है. एक बड़ा ही आदिम समाज, अवैज्ञानिक किस्म का समाज खड़ा हो जाता है. न. ऐसी दुनिया नहीं चाहिए हमें. सो मैं इस्लाम के खिलाफ हूँ-खिलाफ रहूँगा. इन्शा-अल्लाह!~ तुषार कॉस्मिक

चालाकियाँ

क्या आप को पता है अब जो  ईसाई -करण किया जा रहा है, उस में नाम और पहचान बदलने का आग्रह नहीं है. एक सिक्ख का नाम और शक्लों-सूरत आप को सिक्ख जैसी ही नज़र आयेगी. लेकिन उस का ईसाई- करण  हो चुका होगा.  एक का नाम गोविंदा है लेकिन वो भी  ईसाई  है.  मैंने तो अमर सिंह और सतबीर, जगबीर नाम के मुसलमान भी देखे हैं.  कितना आग्रह है क्रिस्चियन और मुस्लिम का कि सब ईसाई हो जायें, सब मुसलमान हो जायें.  साम-दाम-दंड-भेद सब पैंतरे अपनाये जा रहे हैं इन द्वारा.  ये धर्म हैं? नहीं.  ये गिरोह मात्र हैं. ~तुषार कॉस्मिक

फिल्म आ रही है~ 83

 फिल्म आ रही है~ 83. जब भारत ने तथाकथित विश्व कप जीता था क्रिकेट का कपिल देव की अगुवाई में, उस पर आधारित है ये फिल्म.  सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज  मार्कंडेय काटजू  कहते हैं कि रोम में जनता की असल समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए सर्कस दिखाया जाता था, एरीना में ग्लैडिएटर को लड़वाया-मरवाया जाता था. ठीक वही है क्रिकेट. लोगों को असल मुद्दे समझ न आयें सो क्रिकेट दिखाया जाता है. कबड्डी, क्रिकेट और मिस यूनिवर्स, मिस वर्ल्ड जैसे नकली वैश्विक मुकाबले घड़े ही गए हैं जनता को चुटिया बनाने के लिए. एक होते हैं चूतिये, एक होते हैं महाचुतिये और एक होते हैं क्रिकेट देखने वाले. जय हो!~ तुषार कॉस्मिक

अक्सर सुनता हूँ कि हिन्दुओं ने आक्रमण झेले हैं लेकिन खुद कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया. गलत है सरासर यह.

अक्सर सुनता हूँ कि हिन्दुओं ने आक्रमण झेले हैं लेकिन खुद कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया. गलत है सरासर यह. अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था या नहीं? कलिंग की धरती खून से लाल कर दी थी. पृथ्वीराज चौहान तो संयोगिता को भरे दरबार से उठा लाये थे. राम ने भी अपने राज्य की सीमा बढ़ाने को ही तो अश्व  छोड़ा था. मार-काट तो हिन्दू और बौधों में भी हुई. शैव और वैष्णवों में भी हुई. कुम्भ के शाही स्नान में कौन पहले करेगा इसलिए भी खूनी लडाइयां होती थी नागा बाबा अखाड़ों में. और हम कहते हैं हम ने कभी आक्रमण नहीं किया! असल में हमारी दुनिया ही सीमित थी. हम बहुत दूर तक लड़ने जा नहीं पाए. जहाँ तक लड़ सकते थे लड़ते रहे. ~तुषार

राधास्वामी: पव्वा सुबह, अद्धा शामी.

 "राधास्वामी: पव्वा सुबह, अद्धा शामी." मज़ाक में कहते हैं लोग. लेकिन मैंने देखें हैं राधास्वामी मांस खाते हुए. दारु पीते हुए. ज़्यादा मजेदार बात बताता हूँ आपको. दिल्ली के छतरपुर इलाके में सैंकड़ों एकड़ सरकारी ज़मीन हड़प रखी थी राधास्वामी ने. यहाँ हेलिपैड था,  आलीशान बंगले, एक कॉन्फ्रेंस हॉल, एक मोबाइल नेटवर्क कंपनी का टावर, जेनरेटर हाउस और पता नहीं क्या-क्या था!  कोर्ट आर्डर से प्रशासन ने तोड़-फोड़ की. जय हो!~ तुषार कॉस्मिक https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/445-beegah-land-illegally-occupied-by-radha-swamy-satsang-byas-trust-secret-helipad-found-inside/articleshow/63310259.cms

हिंदी में पीछे एक से एक घटिया फिल्म बनी हैं.

हिंदी में पीछे एक से एक घटिया फिल्म बनी हैं. घिसी-पिटी कहानियाँ. रेप. मर्डर. सेक्स. भद्दे बेसुरे गाने. बस यही कुछ परोसा है ज्यादातर इन फिल्मों ने. पूछो तो बतायेंगे कि पुब्लिक डिमांड है ये सब. फुद्दू हैं ये फ़िल्मी लोग. इन की अक्लें ठस्स हैं. YouTube पर लाखों-करोड़ों views होते हैं आम लोगों के वीडियो पर. क्यों? चूँकि दुनिया अच्छा कंटेंट देखना-सुनना चाहती है. और इन चूतियों को लगता है कि कचरा ही परोसो. बंद करो देखना ताकि इन की अक्ल ठिकाने आये. ~तुषार कॉस्मिक

Dharma cannot be pre-settled

 I have already  said that I do not subscribe to any pre-settled Dharma. Dharma cannot be pre-settled. You feel like praying under the sky, you pray. You feel like kissing a tree, you kiss. You feel like bowing before a beggar, a rag picker, a shoe maker, you bow. You feel dancing in the rain, you dance. That is Dharma. Dharma cannot be pre-settled. Prayer can not be pre-defined. Got it?~ Tushar Cosmic

कोरोना का कुल-जमा खेल

 कोरोना का कुल-जमा खेल बस इतना है कि एक टेस्ट के ज़रिये लोगों को वायरस-युक्त घोषित किया जा रहा है और जो मौत औसतन होनी थी, वही हुई, वही हो भी रही हैं लेकिन उन सब मौतों को "कोरोना मृत्यु" घोषित किया जा रहा है. बाकी सब "हफ़ड़-दफड़" का नतीजा है.  असल में एक भी मौत न कोरोना से हुई है, न हो रही है. Lockdown, जबरन वैक्सीनेशन तरीका है पूरी दुनिया को कण्ट्रोल करने का. Human Rights खत्म करने का. इस से निबटने का तरीका मात्र इतना है कि इस षड्यंत्र का पर्दाफाश करें. सरकारी बकवास आँख बंद कर के मत मानें. सवाल खड़े करें. आपका, आप के बच्चों का सवाल है जनाब ....~ तुषार कॉस्मिक

क्रिसमस

 क्रिसमस आ गयी बस. बता दूँ, सब से ज़्यादा जो कत्ल हुए हैं वो ईसाईयत के लिए हुए हैं, इस्लाम से भी ज़्यादा. गलेलियो वृद्ध थे, उन को चर्च में घसीटते हुए ले जाया गया चूँकि उन्होंने बोल दिया था कि धरती सूरज के गिर्द घूमती है, सूरज धरती के गिर्द नहीं घूमता. अब यह बात बाइबिल के उल्ट पड़ती थी. सो गलेलियो को माफी माँगने के लिए मजबूर किया गया. 'जॉन ऑफ़ आर्क' किशोरी थीं, जिस को चर्च ने झूठे इलज़ाम लगा कर ज़िंदा जला दिया. न सिर्फ उसे बल्कि बहुत सी और बुद्धिशाली औरतों को जादूगरनी (Witch) घोषित कर के जिंदा जला दिया गया. मजे की बात यह है कि चर्च ने बाद में 'जॉन ऑफ़ आर्क' को माफ़ी मांगते हुए संत की उपाधि दे दी. और गलेलियो के साथ दुर्व्यवहार के लिए भी माफी माँगी. वैसे Merry Christmas. ~ तुषार कॉस्मिक

सिक्ख इतिहास जो है न वो गज़ब है

जन्म हुआ सिक्ख परिवार में. पालन-पोषण हुआ हिन्दू-सिख परिवार में. न मैं हिन्दू, न सिक्ख और न ही किसी और स्थापित धर्म को मानता हूँ. लेकिन सिक्ख इतिहास जो है न वो गज़ब है, यह मैं मानता हूँ. ज़रा सुई चुभ जाये तो हिल जाते हैं हम और ये गुरु-शिष्य जान की बाज़ी खेल गए. गुरु गोबिंद को सर्व-वंश-दानी कहा जाता है. पिता, पुत्र, माता, स्वयम और पुत्र-पुत्रियों जैसे हजारों-लाखों शिष्य कुर्बान कर दिए. किस लिए? जो सही लगा उस के पक्ष में और जो गलत लगा उस के खिलाफ. दिसम्बर समय है उन की कुर्बानियों को याद करने का. नमन करने का.  पूरी दुनिया को गुरु गोबिंद और उन के शिष्यों के जज़्बे, उन के संघर्ष, उन की जीत, उन के बलिदानों की कहानियाँ पढ़नी चाहियें, सुननी चाहिए. ...तुषार कॉस्मिक