मुझे बैटमैन फिल्में कभी ख़ास नहीं लगी, लेकिन "डार्क नाईट" फिल्म में जोकर के डायलाग खूब पसंद आये मुझे. लगा यह जोकर तो जीवन के गहरे सत्य ही तो उगल रहा है.
अभी-अभी "मुक्ति भवन" देखी. फिर इसके रिव्यु भी देखे, बहुत सराहा गया है फिल्म को. मुझे फिल्म धेले की नहीं लगी. बस फिल्म जब काशी पहुँचती है तो वहां काशी के सीन ठीक लगे. लेकिन मुक्ति भवन नामक होटल के मेनेजर के डायलाग बहुत जमे.
एक जगह वो कहता है, "मोक्ष जानते हैं क्या होता है? मनुष्य को लगता है कि वो लहर है. लेकिन फिर जब उसे अहसास हो जाता है कि वो लहर नहीं समन्दर है, तो वो अहसास ही मोक्ष है." वाह! क्या बात है!!
ठीक ऐसे ही जीवन है. कभी कोई व्यक्ति का एक कथन सही लगता है तो कभी दूसरा बकवास. कभी कोई कहीं एक काम बहुत सही कर रहा होता है तो कहीं बहुत गलत. सो मेरी धारणाएं बहुत पॉइंटेड हैं. मैं सिर्फ मुद्दा-दर-मुद्दा धारणाएं बनाता हूँ. चाहे कोई व्यक्ति हो, किताब हो, घटना हो, फिल्म हो, कुछ भी हो.
और मेरा मानना यह है कि आपको भी ऐसा ही करना चाहिए.
नमन..तुषार कॉस्मिक
No comments:
Post a Comment