खुशवंत सिंह.....संघी सोच....मेरी सोच

एक मित्र:---जिस खुशवंत सिंह को आप भारतीय इतिहास और समाज के लिए ज़रूरी बता रहे है यह वही खुशवंत सिंह है न जिसका बाप शोभा सिंह है और यह वही सोभा सिंह है न जिसकी विधिक गवाही पर अंग्रेजो ने शहीद भगत सिंह को फ़ासी दी थी और इनाम में शोभा सिंह को दिल्ली में बहुत बड़ी जमीन दी थी जिस पर प्लाटिंग करके सोभा सिंह अमीर बना था मैं--- अगर आप के पिता जी ने कोई बेगुनाह का खून किया हो तो आपको फांसी चढ़ा दें क्या? जुकरबर्ग कल बलात्कार में दोषी पाया जाये तो फेसबुक छोड़ देंगे क्या आप? खुशवंत सिंह को पढ़ना चाहिए यह उनके लेखन को आधार मान कर लिखा है मैंने. ज़मीन ली या नहीं ली यह अलग मुद्दा है. अगर ले भी ली हो तो भी उनका लेखन अगर दमदार है, भारत के फायदे में हैं तो उसे पढ़ना चाहिए. मिसाल के लिए एक वैज्ञानिक अगर कुछ खोज दे जिससे कैंसर खत्म होता, लेकिन फिर उससे कत्ल हो जाये तो क्या उसकी खोज को इसलिए नकार दें कि उससे कत्ल हो गया? किसी भी व्यक्ति के जीवन के अलग-अलग पहलु होते हैं, सो समर्थन या विरोध होना चाहिए पॉइंट-दर-पॉइंट, पहलु-दर-पहलु. संघी सोच है, "खुशवंत सिंह गद्दार है, उसका बाप गद्दार था." खुद जैसे बहुत बड़े वाले देश-भक्त हों. पता भी है देश का भला-बुरा कैसे होगा? तुम्हारे हिन्दू-हिन्दू चिल्लाने से तो होगा नहीं. होना होता तो हो चुकता. "हम महान हैं, हमारे पूर्वज महान थे, हमारी संस्कृति महान है. हम विश्व-गुरु थे, हम विश्व-गुरु हैं." यह सब चिल्लाने से न कोई महान होता है, न ही विश्व-गुरु. इडियट. संघ हर उस सोच का गला घोटता है.....हर आवाज़ दबाता है जो उसके खिलाफ जाती है. ऐसी की तैसी. अपना दिमाग लगाओ, खुद जान जाओ. नमन...तुषार कॉस्मिक

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