अगर पौधों में जान है तो पशु काट खाने में ही क्यों बवाल करना? बिलकुल सही तर्क है.
इसी तर्क को उलटा घुमाते हैं....शीर्षासन कराते हैं. अगर पौधों में जान है सो पशु काट खाने में ही क्यों बवाल करना? फिर इन्सान इंसान को ही क्यों न काट खाए....इक दूजे के बच्चों को क्यों न काट खाए?
सवाल जीवन में चैतन्य की सीक्वेंस का है....
सवाल भोजन की मजबूरी का है..
सवाल चॉइस का है.....
अगर चॉइस हो तो फल-सब्जी खा लें, चूँकि उसके नीचे आप जा नहीं सकते...मिटटी-पत्थर आप खा नही सकते..
"जीवम जीवस्य भोजनम"...लेकिन क्या आप अपने बच्चे खा जायेंगे? नहीं न. तो फिर यह भी देखें कि कौन सा जीवन खाना है......जीवन के क्रम में वनस्पति ही सबसे निचले स्तर पर खड़ी है, जो भोजनीय है.
क्या मैंने सही लिखा?
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