Posts

Showing posts from August, 2017

Biological Waste

"ब्लू व्हेल" नामक का खेल जिसने बनाया था, वो पकड़ा गया. उस पर सैंकड़ों हत्याओं का आरोप है. ऐसा खेल बनाने का कारण जब उससे पूछा गया तो जवाब में उसने जो कहा, वो बहुत कीमती है. उसने कहा कि वो इस खेल के ज़रिये सफाई कर रहा था. यह एक स्वच्छ अभियान था. Biological Waste यानि जैविक कचरे की सफाई का अभियान. अब बड़े मजे की बात है, जिसे आप-हम कत्ल कहेंगे, सोचे समझे, प्लान करके किये गए कत्ल, उनको वो सफाई अभियान कह रहा है! है कि नहीं? कुछ अंग्रेज़ी फिल्मों का थीम है, कहानी है कि विलन ने दुनिया से बहुत से बच्चे अलग-थलग कर रखे हैं. परिवारों से, माँ-बाप से अलग. और उनको अलग ही चार-दीवारी में रखा जा रहा है. तर्क यह है कि बाकी दुनिया फेल है, खात्मे के कगार पर है, बर्बाद है. इसका अब कुछ नहीं हो सकता. इन्सान अपनी चालाकी की वजह से इतना मूर्ख बन गया है कि इसने पृथ्वी का पानी, हवा, धरती, पहाड़ सब दूषित कर दिए हैं. अब बहुत दूर तक वैसे भी धरती इस इन्सान-नुमा कचरे को ढो नहीं पायेगी. इन्सान सिर्फ इन्सान से लड़ रहा है शुरू से ही, शांति से नहीं रह रहा.They are Muslims, Hindus, Sikhs etc. not human bein...
१. ट्रेन पटरी से रोज़ उतर रही हैं....लेकिन इसमें प्रभु मतलब 'सुरेश प्रभु' की कार्यकुशलता पर मुझे कतई शंका नहीं. २. राज्य पर देश-भक्त सरकार थी.....और राष्ट्र पर राष्ट्र-वादी चक्रवर्ती सम्राट का राज्य... जानते-बूझते हुए चालीस लोग मरने दिए गए, कई राज्यों में अफरा-तफरी का माहौल बनने दिया गया, करोड़ों रुपये का नुकसान होने दिया गया....लेकिन न तो मुझे कट्टर मतलब खट्टर सरकार की क्षमता पर कोई शंका है और न ही उनकी गोदी सरकार की. ३. नोट-बंदी सिरे से फेल हो गई, जो कि होनी ही थी.... लेकिन न तो मुझे चाय की केतली की क्षमता पर शंका है और न ही चाय बनाने वाले की. ४. असल में मुझे कभी कोई शंका नहीं होती, सिवा लघु-शंका के या दीर्घ-शंका के चूँकि मैं भक्त हूँ. भक्त शंका नहीं श्रधा में विश्वास रखते हैं. ५. हटो, तुम साले बेफ़िजूल ही बच-कोदी करते रहते हो. भक्ति-मार्ग पर चल कर तो देखो. यह भी मोक्ष तक ले जाता है. तुषार कॉस्मिक

राम-रहीम के सहारे राम पर सवाल

राम-रहीम पर तो बहुत बवाल काट रहे हो. लेकिन सवाल इस बाबे का नहीं है, सवाल तो तुम्हारी अंध-श्रधा का है, सवाल तो तुम्हारी अक्ल का है जिसे अक्ल कहना ही गलत है चूँकि इसमें अक्ल वाली तो कोई बात है नहीं. सवाल तो यह है की तुमने सिर्फ अँधा विश्वास करना सीखा है और जो तुम्हारे इस अंधे-विश्वास पर चोट करे, वो तुम्हें दुश्मन लगता है, जबकि तुम्हारा असली मित्र वही है. जैसे मैं राम-रहीम को बलात्कारी कहूं तो तुम्हें लगेगा कि सही ही तो कह रहा है लेकिन अगर मैं तुम्हें यह बताऊं कि राम, श्री राम का पूर्वज भी बलात्कारी था, अपने गुरु की बेटी का बलात्कारी और जैसे राम-रहीम खत्म हो गया ऐसे ही वो पूर्वज भी गुरु के श्राप से खत्म हो जाता है, तो यह कैसा लगेगा तुम्हें? रघु-कुल रीत. शायद बुरा. बहुत बुरा. अगर मैं तुम्हें बताऊँ कि जिन हनुमान को पूजते हो, वो अशोक वाटिका में बैठी सीता को राम की पहचान बताते हुए राम के लिंग और अंड-कोशों तक की पहचान बताते हैं. कैसे पता था हनुमान को इतनी बारीकी से? सोच कर देखिये. और रावण को मारने के बाद राम साफ़ कहते हैं सीता को कि उन्होंने रावण को सिर्फ अपने अपमान का बदला लेने के ल...

Never stand for a Muslim or a Hindu or a Christian etc. They are just Biological waste.

ओशो के बाद का बाबा-वर्ल्ड

ओशो के बाद बहुत से नकली बाबा-बाबियां आये. सब नकली. उनकी तरह महंगे चोगे, महंगी गाड़ियाँ, अमीरी जीवन अपना लिया. उनका mannerism चुराया, उनके कहे किस्से, चुटकले तक प्रयोग कर लिए. उनके दिए आईडिया पर आगे किस्से-कहानियाँ बना लिए और लगे प्रवचन पेलने. सब अपना लिया लेकिन उनके जैसी इमान-दारी न ला पाए, धार न ला पाए, अक्ल न ला पाए, उनके जैसी हिम्मत न जुटा पाए. भूतनी वालों ने ओशो के सब तर्क अपने हिसाब से मोड़-तरोड़ लिए. सुनने वाले भी सब चुटिया. ऊपर से नए-नए चैनल की बरसात. नकली चेलों को नकली गुरु चाहिए थे, मिल गए. जो लीपा-पोती वाली बातें सुनना चाहते थे लोग, वो ही शास्त्रीय शब्दों की चाशनी में घोल कर इन बाबाओं ने पिला दी लोगों को. ये साले गुरु थे! गुरु तुम्हारी परवाह ही नहीं करता कि तुम्हें क्या अच्छा लगेगा, क्या नहीं? वो दे लट्ठ मारेगा. कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ. दे दनादन. जाओ भाड़ में. मैंने सुना है कि कुछ फ़कीर तो अपने चेलों को थोक में गालियाँ देते थे और कई तो लट्ठ भी जबर-दस्त पेलते थे. तुम हो ही इसी लायक. जब तक खोपड़ी पे लट्ठ न पड़े, कोई ढंग की बात घुसती ही नहीं इसमें. ऐसा...

तीन फिल्में

अपुन मुफ्त-खोरे हैं. औकात नहीं कि बीवी-बच्चों के साथ थिएटर जा कर हजार-डेढ़ हजार रुपये खर्च किये जायें सो बड़ी ईमानदारी से अपनी बे-ईमानी स्वीकार करता हूँ कि या तो youtube पर चोरी-छुप्पे डाली गई फिल्में देखता हूँ या फिर टोरेंट से डाउनलोड की हुईं. पीछे तीन फिल्में देखीं. सब youtube पर. १.अंकुर अरोड़ा मर्डर केस. २.मसान. ३.अगली (अगली-पिछली वाला नहीं, अंग्रेज़ी वाला UGLY). मैं बहुत क्रिटिकल व्यक्ति हूँ. अक्सर पाठक कहते हैं कि नकरात्मक है मेरी सोच. लेकिन अगर मैं कुछ नकारता हूँ तो कुछ स्वीकार भी रहा होता हूँ. मिसाल के लिए ये तीन फिल्में. सबसे बढ़िया है "अंकुर अरोड़ा मर्डर केस". यह फिल्म आपको बहुत कुछ सिखाती है. मेडिकल वर्ल्ड कैसे आम आदमी को भूतिया बनाता है उसका तो सजीव चित्रण है ही लेकिन साथ-साथ वकील लोग कैसे अपने ही मुवक्किल से खिलवाड़ कर रहे होते हैं, इसका भी नमूना पेश करती है यह फिल्म. इस फिल्म को मैं भारत में आज तक बनी दस सर्वोतम फिल्मों में रखता हूँ. ज़रूर देखें. एक्टिंग, निर्देशन, कथानक सब मंझा हुआ. हाँ, बच्चे के मर्डर से जुड़ा है मामला, बहुत बड़ा दिल करके जैसे-तैसे देख...

Justice delayed is justice denied.

क्या लगता है कि सिर्फ डेरों के चीफ ही बाबा हैं? नहीं. लगभग सब राजनेता भी बाबा हैं और इनके कुकर्म भी वैसे ही हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि न्याय-व्यवस्था पंगु है. पंगु करके रखी गई है. जान-बूझ कर. वरना रोज़ एक नया बाबा/ नेता जेल में होगा. क्यों चार-छः महीने की तारीख दे जाती है कोर्टों में? क्यों तारीख पे तारीख दी जाती है? क्यों बीस-बीस साल तक कोर्ट केस घिसटते रहते हैं? जजों की संख्या कम है, यही न? नहीं है यह वजह. वजह है सब बड़े चोर नहीं चाहते कि कोर्ट सक्षम हों. नहीं चाहते कि फैसले दिनों में, महीनों में हों. मुकद्दमे दशकों तक घिसटते रहें तो कैसे होगा न्याय? कई लोग मर जायेंगे. या मार दिए जायेंगे. या फिर खरीद लिए जायेंगे. या धमका दिए जायेंगे. ऐसे में क्या घंटा न्याय होना है. यह कोई जहाँगीर का घंटा थोड़े न है, आधी रात को भी बजाओ तो भी न्याय मिलने की आशा हो. यहाँ तो नयाय के नाम पर वकीलों का पेट भरना होता है. वकील ही नहीं कोर्ट का पेट भी भरना होता है. कोर्ट भी लाखों रुपये फीस लेती है. एडवांस में. लखनऊ की एक ज़मीन का केस देख रहा हूँ, बारह साल से चल रहा है और आज तक एक पार्टी उसमें यही मुद...

कृष्ण की बकवास गीता-एक और नमूना

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन. अर्थ है कि कर्म का अधिकार है लेकिन फल का नहीं.......यानि फल पर आपका अधिकार नही, हक नहीं.........मतलब कर्म करे जा भाई....फल पर अधिकार तेरा नहीं है....हक़ नही है. तो फिर किसका हक़ है? (पंडों का. राजनेताओं का.) कौन करेगा ऐसे कर्म? सिर्फ अक्ल के अंधे...जिन्हें धर्म की जहर पिला दी गई हो. एक अर्थ यह भी किया जाता है कि कर्म तुम्हारे हाथ में है करना लेकिन फल तुम्हारे हाथ में नही है, वश में नही है. सो फल की चिंता मत कर. अब कर्म के फल पर "वश" की बात कर लेते हैं. कैसे नहीं है फल पर वश? आज कहीं भी McDonald खुलता है, सम्भावना यह है कि चलता ही है. क्यों? फल तो "वश" में नहीं है. जब आप पहले से ही मान बैठेंगे कि फल आपके वश में नहीं है तो इस तरह से कर्म करने की प्रेरणा भी नहीं आएगी. फल आपके कमों के अनुरूप ही आता है. कर्मों से अर्थ मात्र शारीरिक लेबर नहीं है. कर्मों से अर्थ है डेटा कलेक्शन, प्लानिंग, ब्रेन स्टोर्मिंग और फिर सही से Execution. ऐसे आता है इच्छित फल. मात्र गीता में लिखे होने से, कृष्ण के कहे होने से कोई बात सही नहीं हो जाती. प...

राम हों, रहीम हों, राम-रहीम हों, अंध-श्रधा खतरनाक है

आसाराम, रामपाल और राम रहीम के पकडे जाने के बाद सब समझदार मित्र कह रहे हैं कि अंध-भक्ति नहीं होनी चाहिए....... बिलकुल नहीं होनी चाहिए मैं तो मुस्लिम मित्रों को भी जोश में आया देख रहा हूँ, वो भी खूब फरमा रहे हैं कि समाज को इन जैसे लोगों से बचना चाहिए बजा फरमाते हैं सब, बिलकुल..... लेकिन लगता नहीं कि मुझे ये मेरे मित्रगण ठीक से समझ रहे हैं कि बीमारी कहाँ है, इलाज कहाँ है........और शायद न ही हिम्मत है विषय के अंदर तक जाने की चलिए फिर भी एक कोशिश करते हैं आसा राम, राम पाल और राम रहीम जैसे व्यक्ति नहीं होने चाहिए..इनके प्रति अंध-श्रधा, अंध-भक्ति नहीं होनी चाहिए.....लेकिन है, पता है क्यों? क्यों कि आपके समाज में अंध-भक्ति जन्म से घुटी में पिलाई जाती है......आप जब पैदा हुए तभी हिन्दू , मुस्लिम थे या बाद में बनाये गये थे?..निश्चित ही बाद में बनाये गये थे.....आपको हिन्दू मुस्लिम आदि तर्क से बनाया गया था या बस बना दिया गया था?...निश्चित ही बस बना दिया गया था....तर्क तो बहुत जानकारी, बहुत तजुर्बा, बहुत समझ मांगता है, वो तो पनपने से पहले ही आप पर हिन्दू मुस्लिम की मोहर लगा दी गयी थी. अब...

कर्म-फल सिद्धांत

विचार बीज है कर्म का....यदि बीज खराब होगा तो फल खराब ही होगा....सो जब कोई कर्म पर जोर दे, लेकिन विचार पर नहीं तो वो आपको सिर्फ समाज की मशीनरी में चलता-पुर्जा बनने को प्रेरित कर रहा है...ऐसे लोग बकवास हैं.  बकवास हैं ऐसे लोग जो यह गाते हैं, "कर्म करे जा इन्सान, आगे फल देगा भगवान." बकवास हैं ऐसे लोग जो यह कहते हैं, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन."  फल की इच्छा के बिना कोई कर्म क्यों करेगा? कार्य-कारण का सीधा सिद्धांत है. Cause and Effect. किसी को कहो कि  Effect की सोच ही मत, तू बस Cause पैदा कर, वो कहेगा, "पागल हो क्या?" "फल की मत सोच, आये न आये, तू बस कर्म करे जा, मेहनत करे जा, श्रम करे जा." ऐसा किसी भी साधारण समझ के व्यक्ति से कहोगे तो वो तुम्हे पागल मानेगा लेकिन किसी धार्मिक व्यक्ति से, अध्यात्मिक व्यक्ति से कहोगे, कृष्ण भक्त से कहोगे तो वो धन्य-धन्य हो जायेगा. ये तर्कातीत लोग हैं भई, इनकी क्या कहें? खैर, मेरी समझ है कि कर्म से पहले विचार पर जोर देना चाहिए और फल की इच्छा  किये बिना कोई भी कर्म करना ही नहीं चाहिए. असल  ...
चोर, उचक्के, गला-काट लोगों को हल्के माना जाता है...जैसे ये जो अरबों डकार जाते हैं...ये सफेद -पोश .....ये तो जैसे साधू हों.....बुद्धत्व के हकदार. असलियत ये है कि ये सफेद-पोश डकैत ही ज़िम्मेदार हैं....चोरों, उचक्कों के लिए

Why should the creator and the creation be different?

Why should the creator and the creation be different? It is no Creation and there is no Creator. It is both. Like  Dance and Dancer, Acting and Actor.Cause is effect and Effect is Cause. No difference. यह प्रभु नहीं स्वयम्भू है. अवचेतन से अधिचेतन का सफर है. कहा ही जाता है, आत्म से अध्यात्म ...हालांकि आत्म की अवधारणा ही गलत है....भ्रम है......लेकिन वो अवधारणा टूटना ही तो अध्यात्म कहा जाता है लेकिन यह संज्ञा भी  विभ्रमित करती है. असल में न कोई आत्म है और न ही कुछ अध्यात्म......जब आत्म नहीं तो अध्यात्म कैसे होगा?  आत्मा एक भ्रम है. अध्यात्म उससे बड़ा भ्रम है. तो फिर इसे क्या कहें? मैं इसे कॉस्मिक होना कहता हूँ, आप वैश्विक होना कह सकते हैं या फिर कुछ और. नामकरण खुद करें.

खाकी वर्दी वाले और वो औरत

पश्चिम विहार से आज फिर तीस हज़ारी कोर्ट जाना हुआ. बर्फखाना से ठीक पहले के ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी रोकी. वो कोई साठ के पेटे में हैं. खाकी कपड़े पहने. काले जूते, फीते वाले. पुराने लेकिन पोलिश किये हुए. उनका चेहरा और जूते दोनों पर सलवटें हैं. दूर से देखने पर वो पुलिस वाले लगते हैं लेकिन हैं नहीं. जी-जान से ट्रैफिक संभालते हुए. पिछली बार मेरी कार का दरवाज़ा एक औरत ठक-ठकाती रही लेकिन मैंने उसे कुछ नहीं दिया. हाँ, इन खाकी वर्दी वालों को इशारे से बुलाया और पचास का नोट थमा दिया. वो औरत मेरा चेहरा ताकती रही और खाकी वर्दी वाले भी. वो इस बार फिर से वहीं थे. आज कोई औरत नहीं आई और मैं उनको चालीस रुपये ही दे पाया. पैसे लेते ही वो फिर से ट्रैफिक सम्भालने लौट गए. मैं सोचने लगा, "क्या उस दिन उस औरत को कुछ भी न देकर मैंने गलत किया? वो भी तब जब मैंने उसके सामने इन खाकी वर्दी वालों को पचास की पत्ती दी?" फिर ख्याल आया, "अब मांगने वालों में भी कहाँ कोई गरिमा बची? अब कहाँ हैं ऐसे लोग, जो कहते हों, "जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला"? ये जो लोग मेरे शहर में मांगते हैं, ...

वकालत की अंधेर-गर्दियाँ

अकबर इलाहाबादी ने कहा है, "पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा, लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए" न्याय-मशीनरी का अहम पुर्जा है वकील. और वकालत के पेशे में निरी अंधेर-गर्दी है. मैंने भुगती है, देखी है, निपटी है, निपटाई है. वकील कोर्ट को, अपने विरोधी वकील को, अपने मुवक्किल को, अपने नीचे काम करने वाले जूनियर वकीलों का, इंटर्नशिप करने वाले बच्चों तक को फुल्ल-बटा-फुल्ल गुमराह करते हैं. अगर कोई सफ़ल वकील नहीं बनते, जो कि अधिकांश इंटर्न (प्रशिक्षु) नहीं बनते तो उसकी एक बड़ी वजह यह है कि वो बरसों तक सीनियर वकीलों द्वारा गुमराह किये जाते हैं. इंटर्न को लगता है कि वो काम सीख रहे हैं और सीनियर, घिसे वकील काम सिखाने के नाम पर उनसे सिर्फ मजदूरी कराते हैं, बेगार करवाते हैं. स्टाम्प पेपर मंगा लेंगे, ओथ कमिश्नर-नोटरी के पास भेज ठप्पे लगवा लेंगे, सर्टिफाइड कापियों अप्लाई करवा देंगे, काउंटर पर plaint जमा करवा लेंगे-किराया जमा करवा लेंगे, कोर्ट में ऐसी तारीखों पर भेज देंगे जिन पे सिर्फ शक्ल दिखानी होती है या फिर सिर्फ कोई डॉक्यूमेंट सबमिट करने होते हैं, टाइपिंग करवा लेंगे. ये सब काम स...

कृष्ण जन्माष्टमी स्पेशल

1. गाते हो, "होली खेलत रघुबीरा अवध माँ" "ब्रज में होली खेलत नन्दलाल" लानत! खेलनी हैं होली तुम खेलो भाई. तुम क्या किसी रघुबीर या नंदलाल से कम हो? अपना बच्चा चलना शुरू करेगा तो गाने लगेंगे. "ठुमक-ठुमक चले श्याम." अबे ओए, तुम्हारे बच्चे किसी शाम, किसी राम से कम नहीं है. जीसस सन ऑफ़ गॉड! वैरी गुड!! बाकी क्या सन ऑफ़ डॉग हैं? मोहम्मद. अल्लाह के रसूल. वो भी आखिरी. शाबाश!! अल्लाह मियां चौदह सौ साल पहले ही बुढा गए. थक गए. चुक गए. या फिर सनक गए.  होश में आओ मित्रवर, होश में आओ.  आप, आपके बच्चे किसी राम, श्याम, किसी जीसस, किसी भी रसूल से कम नहीं हो.  आप, हम सब कोई इस धरती पर सेकंड क्लास, थर्ड क्लास कृतियाँ नहीं हैं उस कुदरत की, उस प्रभु की, उस स्वयंभू की. नहीं. ऐसा कुछ भी नहीं है.  हम सब किसी अवतार, किसी रसूल, किसी परमात्मा के इकलौते पुत्र की चबी-चबाई कहानियाँ चबाने को नहीं हैं. हम कोई आसमानी किताबों की, कोई धुर की बाणी, कोई भगवत गीता की गुलामी को नहीं हैं यहाँ इस धरती पर. इस मानसिक गुलामी से बाहर आओ. चबे-चबाये ...