राम-रहीम के सहारे राम पर सवाल

राम-रहीम पर तो बहुत बवाल काट रहे हो. लेकिन सवाल इस बाबे का नहीं है, सवाल तो तुम्हारी अंध-श्रधा का है, सवाल तो तुम्हारी अक्ल का है जिसे अक्ल कहना ही गलत है चूँकि इसमें अक्ल वाली तो कोई बात है नहीं. सवाल तो यह है की तुमने सिर्फ अँधा विश्वास करना सीखा है और जो तुम्हारे इस अंधे-विश्वास पर चोट करे, वो तुम्हें दुश्मन लगता है, जबकि तुम्हारा असली मित्र वही है. जैसे मैं राम-रहीम को बलात्कारी कहूं तो तुम्हें लगेगा कि सही ही तो कह रहा है लेकिन अगर मैं तुम्हें यह बताऊं कि राम, श्री राम का पूर्वज भी बलात्कारी था, अपने गुरु की बेटी का बलात्कारी और जैसे राम-रहीम खत्म हो गया ऐसे ही वो पूर्वज भी गुरु के श्राप से खत्म हो जाता है, तो यह कैसा लगेगा तुम्हें? रघु-कुल रीत. शायद बुरा. बहुत बुरा. अगर मैं तुम्हें बताऊँ कि जिन हनुमान को पूजते हो, वो अशोक वाटिका में बैठी सीता को राम की पहचान बताते हुए राम के लिंग और अंड-कोशों तक की पहचान बताते हैं. कैसे पता था हनुमान को इतनी बारीकी से? सोच कर देखिये. और रावण को मारने के बाद राम साफ़ कहते हैं सीता को कि उन्होंने रावण को सिर्फ अपने अपमान का बदला लेने के लिए मारा न कि सीता को वापिस पाने के लिए, सो सीता किसी भी दिशा में जा सकती है, किसी के भी साथ जा सकती है. मर्यादा पुरुषोत्तम. और फिर जब राम को अयोध्या वापिस प्रवेश करना था तो हनुमान संदेश लेकर जाते हैं राम के आगमन का, जानते हैं हनुमान के स्वागत में कन्याएं भी भेंट करते हैं भरत उनको? और अयोध्या में उस समय गणिका (वेश्या) आम थी. रघु-कुल राज्य. ये थोड़ी सी बात लिखीं ताकि तुम राम-रहीम पर ही नहीं, राम पर भी सोचने लगें, सवाल उठाने लगो. और अगर नहीं हिम्मत तो याद रखना तुम राम-रहीम जैसों के शिकार होवोगे ही. अवश्य. चूँकि तुम्हारी बुद्धि मंद नहीं, बंद है. नमन.....तुषार कॉस्मिक

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