Saturday, 26 August 2017

राम हों, रहीम हों, राम-रहीम हों, अंध-श्रधा खतरनाक है

आसाराम, रामपाल और राम रहीम के पकडे जाने के बाद सब समझदार मित्र कह रहे हैं कि अंध-भक्ति नहीं होनी चाहिए....... बिलकुल नहीं होनी चाहिए मैं तो मुस्लिम मित्रों को भी जोश में आया देख रहा हूँ, वो भी खूब फरमा रहे हैं कि समाज को इन जैसे लोगों से बचना चाहिए बजा फरमाते हैं सब, बिलकुल..... लेकिन लगता नहीं कि मुझे ये मेरे मित्रगण ठीक से समझ रहे हैं कि बीमारी कहाँ है, इलाज कहाँ है........और शायद न ही हिम्मत है विषय के अंदर तक जाने की चलिए फिर भी एक कोशिश करते हैं आसा राम, राम पाल और राम रहीम जैसे व्यक्ति नहीं होने चाहिए..इनके प्रति अंध-श्रधा, अंध-भक्ति नहीं होनी चाहिए.....लेकिन है, पता है क्यों? क्यों कि आपके समाज में अंध-भक्ति जन्म से घुटी में पिलाई जाती है......आप जब पैदा हुए तभी हिन्दू , मुस्लिम थे या बाद में बनाये गये थे?..निश्चित ही बाद में बनाये गये थे.....आपको हिन्दू मुस्लिम आदि तर्क से बनाया गया था या बस बना दिया गया था?...निश्चित ही बस बना दिया गया था....तर्क तो बहुत जानकारी, बहुत तजुर्बा, बहुत समझ मांगता है, वो तो पनपने से पहले ही आप पर हिन्दू मुस्लिम की मोहर लगा दी गयी थी. अब आप समझ लीजिये, रामपाल, आसाराम और राम रहीम के प्रति अंध-श्रधा इसलिए हो जाती है आसानी से क्योंकि राम पर श्रधा सिखाई गयी, अंध-श्रधा सिखाई गयी...क्योंकि जीवन की समझ आप तक तर्क से, तजुर्बों से नहीं आने दी गए बल्कि समझ के नाम पर कुछ मान्यताएं आप पर बस थोप दी गयी......जैसे सुबह स्कूल में जाते ही आपके गले से रोज़ बिला नागा 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' उतारा गया'.....मालिक कोई है या नहीं, यह सोचने, अपनी समझ से समझने का मौका ही नहीं दिया गया....बस आपको श्रधा करना, अंध-श्रधा करना सिखा दिया गया. आपको बता दिया गया कि कोई अल्लाह है, उसकी भेजी कोई किताब है 'कुरआन' और उसका कोई पैगम्बर है, आखिरी पैगम्बर.......बस अल्लाह की किताब में जो लिखा है.......वो ही आखिरी सत्य है.....आपको समझने का मौका ही नहीं दिया गया कि अल्लाह ही है जो चारों तरफ बरसता है और हर किताब जिसमें कुछ अक्ल है, शांति का संदेश है , वो अल्लाह की ही भेजी गयी है...और वो किताब रोज़ उतरती है...आगे भी उतरती रहेगी....और जो भी इन्सान कोई अक्ल की बात करता है, शांति की बात करता है, वो अल्लाह का ही पैगम्बर होता है...उसी का पैगाम दे रहा होता है.....और कोई पैगम्बर आखिरी नहीं होता, न होगा.....जब अल्लाह रोज़ नए बंदे इस दुनिया में भेज रहा है तो पैगम्बर नये क्यूँ नहीं भेजेगा भाई? लेकिन यह सब शायद मेरे मुस्लिम मित्रों के लिए समझना आसान न हो.........हाँ , आसाराम और रामपाल और राम रहीम गलत है. राम ग़लत नहीं हो सकते, मोहम्मद गलत नहीं हो सकते....उनके प्रति श्रधा जायज़ है, लेकिन आसाराम और रामपाल और राम रहीम के प्रति श्रधा नाजायज़ है! दूसरे कूएं में गिरे नज़र आते हैं लेकिन खुद का दलदल में धंसा होना नहीं नज़र आता. दूसरे की कश्ती में छेद नज़र आते हैं लेकिन अपना बेडा गर्क होता नज़र नहीं आता...शायद बेड़ा बड़ा है इसलिए. ज़रा फिर से सोचें वैसे यह सब सोचना आसान नहीं है.. सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा ज़मीन ही नहीं आसमान गिर जाएगा आंधी ही नहीं, तूफ़ान घिर जाएगा पांडा ही नहीं इमाम गिर जाएगा हिन्दू गिर जाएगा, मुसलमान गिर जाएगा सियासत और सरमाया तमाम गिर जाएगा नंगा और नंगे का हमाम गिर जाएगा सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा सादर नमन..तुषार कॉस्मिक

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