अकबर इलाहाबादी ने कहा है, "पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा, लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए"
न्याय-मशीनरी का अहम पुर्जा है वकील. और वकालत के पेशे में निरी अंधेर-गर्दी है. मैंने भुगती है, देखी है, निपटी है, निपटाई है.
वकील कोर्ट को, अपने विरोधी वकील को, अपने मुवक्किल को, अपने नीचे काम करने वाले जूनियर वकीलों का, इंटर्नशिप करने वाले बच्चों तक को फुल्ल-बटा-फुल्ल गुमराह करते हैं.
अगर कोई सफ़ल वकील नहीं बनते, जो कि अधिकांश इंटर्न (प्रशिक्षु) नहीं बनते तो उसकी एक बड़ी वजह यह है कि वो बरसों तक सीनियर वकीलों द्वारा गुमराह किये जाते हैं.
इंटर्न को लगता है कि वो काम सीख रहे हैं और सीनियर, घिसे वकील काम सिखाने के नाम पर उनसे सिर्फ मजदूरी कराते हैं, बेगार करवाते हैं. स्टाम्प पेपर मंगा लेंगे, ओथ कमिश्नर-नोटरी के पास भेज ठप्पे लगवा लेंगे, सर्टिफाइड कापियों अप्लाई करवा देंगे, काउंटर पर plaint जमा करवा लेंगे-किराया जमा करवा लेंगे, कोर्ट में ऐसी तारीखों पर भेज देंगे जिन पे सिर्फ शक्ल दिखानी होती है या फिर सिर्फ कोई डॉक्यूमेंट सबमिट करने होते हैं, टाइपिंग करवा लेंगे.
ये सब काम सीखने ज़रूरी हैं, लेकिन यह सब सीखना दो-चार महीने का काम है, इसके लिए 5-10 साल नहीं चाहिए होते. यह बस LEG-WORK है. असल वकालत सीखी जाती है, रिसर्च से. BRAIN-WORK से. लॉ वृहद क्षेत्र है. और जितना मुझे पता है, LLB में बस कुछ बेसिक एक्ट पढ़ाए जाते हैं.
असल में एक बढ़िया वकील के लिए केस से जुड़े एक्ट पढने ज़रूरी हैं, और उन एक्ट से जुडी बहुत सी जजमेंट पढ़ना भी ज़रूरी है. इसके अलावा उसे यह भी देखना ज़रूरी है कि वो अपने प्रयासों से क्या नए सबूत इक्कठे कर सकता है. बस यही है मूल-मन्त्र.
बाकी एक वकील की हिंदी-अंग्रेज़ी-क्षेत्रीय भाषा अच्छी होनी चाहिए, उसका कंप्यूटर ज्ञान अच्छा होना चाहिए, उच्चारण सही होना चाहिए, लहज़े में क्षेत्रीयता नहीं झलकती होनी चाहिए, बॉडी लैंग्वेज सही होनी चाहिए. और टाइपिंग भी आनी चाहिए और इसके साथ ही उसे इन्टरनेट का प्रयोग भी करना आना चाहिए.
अब तकरीबन नब्बे प्रतिशत वकील मेरे दिए हिसाब-किताब से बाहर हो जाते हैं. चिढ़ी-मार. कैसे? बताता हूँ.
आपको जानकार शायद हैरानी हो कि भारतीय बार कौंसिल खुद मानती है कि 50% वकील नकली हैं. ऑन-रिकॉर्ड मानती है. लानत! गए पचास प्रतिशत.
अब जो बाकी बचे पचास प्रतिशत, इनमें से ज्यादातर अंग्रेज़ी के दो पेज बिन गलती के टाइप नहीं कर सकते. बोलना तो दूर की बात. यहाँ पॉइंट यह नहीं कि साहेब, हिंदी में काम चला लेंगे. चला भी सकते हैं, लेकिन चला नहीं पायेंगे चूँकि सारे एक्ट अंग्रेज़ी में पढ़े-पढाये जाते हैं, फिर इन्टरनेट सामग्री अंग्रेज़ी में है. सब जज-मेंट अंग्रेज़ी में हैं. सो, नहीं बच पायेंगे अंग्रेज़ी से. कितने वकील साहेब तो ऐसे हैं, जिनको टाइप करना ही नहीं आता. कैसे करते हैं ये लोग ड्राफ्टिंग? किसी टाइपिस्ट को देते हैं केस की डिटेल और वो करके देता है ड्राफ्टिंग. यह है इनका तरीका. सवाल यह नहीं है कि बिना टाइपिंग के भी काम चलाया जा सकता है. चलाया तो जा सकता है लेकिन आज के जमाने में, ई-मेल, whats-app, इन्टरनेट के जमाने में यदि किसी को बेसिक टाइपिंग नहीं आती, ख़ास करके ऐसे प्रोफेशन में जहाँ टाइपिंग की हर वक्त ज़रूरत है, तो निश्चित ही ऐसे व्यक्ति को दिक्कतों का सामान करना पड़ेगा, और उसकी दिक्कतों की वजह से क्लाइंट को दिक्कत होने की सम्भावना रहेगी ही रहेगी.
समझ लीजिये मित्रगण, केस जीते जाते हैं, रिसर्च वर्क से, बाकी तो बस Execution है.
कैसे करेंगे रिसर्च ये लोग, जो अंग्रेज़ी नहीं जानते, जो टाइपिंग नहीं जानते, जो इन्टरनेट से दूर हैं? आप सोच सकते हैं कि बिना इन्टरनेट के भी तो रिसर्च की जा सकती है. किताबों से. की जा सकती है, बिलकुल की जा सकती है, लेकिन आज के दौर में यह ऐसा ही है कि आप के पास है रिवाल्वर और आपको मुकाबला करना है AK-47 वाले के साथ. किताबों का दौर अब पीछे छूटता जा रहा है जनाब-ए-आली. दरिया-गंज में रविवार को किताबें बेचने वाले के पैरों तले रो रही होती हैं. लगभग रद्दी के भाव बिकतीं हैं. बुक से ज़माना e-notebook की तरफ बढ़ चला है सर.
अब यह अलग ही मुद्दा है कि ज्यादातर वकीलों का उद्देश्य केस जीतना होता ही नहीं. ये लोग दलाल का, कमीशन एजेंट का काम कर रहे होते हैं. मुवक्किल से बीस-पचास हजार पहले ही झाड़ लेते हैं. फिर तारीख पर पैसे मिलने ही होते हैं. अगला जाए भाड़ में. केस जीतेगा तो इनको क्या फ़ालतू मिलने वाला है? कुछ ख़ास नहीं. लेकिन अगर समझौता करेगा तो वहां दोनों तरफ के वकीलों को कमीशन मिलनी होती है. तो ज़्यादा इंटरेस्ट समझौता कराने में ही रहता है या फिर केस को लटकाने में ताकि तारीख-दर-तारीख वसूली होती रहे. बहुतेरे वकील तो बस ट्राफिक चालान भुगताने से ज़्यादा कूवत ही नहीं रखते.
पसीने से अकड़े, काले कोट पहने हुए लोग, ऐसे कोट जिन पर सफेद पाउडर के निशाँ चमक रहे होते हैं. गर्मी में और गर्मी का अहसास देते काले कपड़े पहने काले पेशे वाले लोग.
ओह्ह्ह सॉरी....यह तो नोबल प्रोफेशन माना जाता है. लेकिन जब मैं वकीलों के पेशे को काला कहता हूँ तो उसका मतलब यह कतई नहीं कि मैं अपने या आपके पेशे को सफेद-गोरा-चिट्टा कह रहा हूँ. नहीं, वो मतलब नहीं है मेरा कतई. असल में तो हम सब के पेशे काले ही हैं. हमारा समाज ही काला है तो इसमें से सफेदी कहाँ से निकलेगी? वकील भी उसी कालिमा से निकल रहा है, वो सफेद कैसे हो सकता है?
आप क्या कर सकते हैं कि वकीलों की अंधेर-गर्दी से, कालिमा से बच सकें? कुछ सलाहें हैं, शायद काम आयें:--
१. पहले तो यह समझें कि केस आपका है, वकील का नहीं. आप जितने मर्ज़ी पैसे दें, जितने मर्ज़ी आपके अच्छे सम्बन्ध हों वकील के साथ, आपका केस वकील के लिए बहुत से केसों में से एक है. हो सकता है, उस केस पर आपके जीवन की दशा और दिशा टिकी हो, लेकिन वकील के लिए ऐसा कुछ नहीं होता. सो आप को खुद अपने केस का स्टूडेंट बनना होता है, केस से पहले, केस के दौरान और केस जीतने-हारने के बाद भी चूँकि मामला अपील में जा सकता है. केस से जुड़े एक्ट पढ़ें, जजमेंट पढ़ें, और अपने पक्ष में सबूत इक्कठे करने का जी-तोड़ प्रयास करें.
२. कोर्ट में जो भी सबमिशन हों, चाहे आपके, चाहे आपके विरोधी के, उन सबकी सर्टिफाइड कॉपियां ले लें. अगर कभी कोर्ट की फाइल में कोई हेर-फेर करने की कोशिश करेगा तो पकड़ा जाएगा. और अगर कोर्ट की फाइल गुम गई, गुमा दी गयी तो आपके पास होगी न एक फाइल, बेक-अप जो काम आयेगा.
३. बहुत बिजी वकील कभी न लें. जो पहले से ही बिजी है या बिजी दिखा रहा है खुद को, वो क्या ख़ाक समय निकालेगा आपके लिए? लाख काबिल हो लेकिन उसकी क़ाबलियत आपके काम नहीं आने वाली.
४. जो वकील खुद को जूनियर वकील कहे, उसे कभी hire मत करना. जो जूनियर होने की हीनता-ग्रन्थि से पीड़ित है, वो सिवा पीड़ा के क्या देगा?
५. जो वकील आपको सिर्फ अपने दफ्तर, गाड़ी, चेले-चांटों की फौज, अपने लैपटॉप, कंप्यूटर, फ़ोन आदि से प्रभावित करना चाहे, उससे तो कोसों दूर रहें. वकील वो करें जो खुद स्टडी कर सके और आपको करने में मदद कर सके.
६. हमेशा एक से ज़्यादा वकीलों के सम्पर्क में रहें, आपका वकील क्या सही-गलत कर रहा है, वो क्रॉस-चेक होता रहेगा और इमरजेंसी में अगर मौजूदा वकील को अलविदा करना होगा तो दूसरा हाज़िर रहेगा.
७. शुरूआत में कभी किसी वकील को एक-मुश्त मोटी रकम न दें, वरना आपके लिए वकील छोड़ना मुश्किल हो जायेगा. और पैसा लेने के बाद वकील ऐसे व्यवहार करेगा जैसे आपने उसे नहीं, उसने आपको hire किया है. आपके मेसेज का जवाब नहीं देगा, आपके फ़ोन नहीं सुनेगा, तारीख पर लेट आएगा या आएगा ही नहीं.
८. वकालतनामा एक तरह का ऑथोर्टी लैटर है जो आप देते हैं वकील को. इसमें आप उसे जितना करने का हक़ देंगे वो उतना ही कर पायेगा, उससे रत्ती भर ज़्यादा नहीं. तो उसे केस वापिस लेने का, अपने साइन किये बिना कोई भी कागज़ात कोर्ट में दाखिल करने का, खुद की मौजूदगी के बिना कोर्ट में हाज़िर होने का हक़ मत दीजिये वकालतनामे में. और आपके वकील को फीस कितनी मिलनी है, वो भी इसमें लिख दीजिये. अब आपका वकील खुद-मुख्तियार नहीं होगा बल्कि आपके दिए मुखित्यार-नामे के मुताबिक ही काम कर पायेगा.
९.कोर्ट मे जहाँ तक हो सके, हर बात लिखित में दें. लिखित का रिकॉर्ड है, जिसे जज भी इग्नोर नहीं कर सकता. बोले का कोई रिकॉर्ड नहीं है. जंगल में मोर नाचा किसने देखा? कोर्ट में CCTV लगेंगे, लेकिन कब? पता नहीं. लेकिन आप तो बहस भी लिखित में दे सकते हो. जहाँ आप लिखित से चूके, वहीं आपने विरोधी को, जज को, अपने वकील को मौका दे दिया Manipulation का.
१०. manupatra.com, indiankanoon.org, lawyersclubindia.com, caclubindia.com, rtiindia.org कुछ काम की वेबसाइट हैं. देख सकते हैं.
११. अपने केस को स्ट्रोंग बनाने के लिए अगर कहीं RTI से जानकारी निकाल कर स्ट्रोंग बनता हो तो ऐसा ज़रूर करें.पुराने फोटो, काल रिकॉर्डिंग, विडियो रिकॉर्डिंग भी खंगाल सकते हैं.
१२. तारीख सिर्फ कोर्ट में शक्ल दिखाने और वकील को पैसे देने के लिए नहीं होती. दो तारीखों के बीच का वक्फा जो है उसमें बहुत कुछ काम करना होता है, काम किया जा सकता है. स्थिति के मुताबिक रिसर्च की जा सकती है. सबूत जुटाए जा सकते हैं. ये सब आप वकील पर छोड़ देंगे इस उम्मीद में कि वो कर ही लेगा तो आप मूर्ख साबित होंगे. और यही सब 'वो' है, आपके केस की जीत या हार तय करता है.
१३. नीचे आर्बिट्रेशन क्लॉज़ दे रहा हूँ. इसे पढ़िए, समझिये. यह आपके वर्षों बर्बाद होने से बचा सकती है. यह क्लॉज़ तकरीबन सभी तरह के AGREEMENTS/ CONTRACTS में प्रयोग की जा सकती है. जैसे बयाने का अग्रीमेंट. किराए का अग्रीमेंट. फिर भी क्लॉज़ का प्रयोग करने से पहले आर्बिट्रेशन क्या है, इसे स्टडी कर लें. बस इतना समझ लें कि है जादू की छड़ी. खैर, यह है क्लॉज़:---
“If any dispute or difference whatsoever arising between the parties out of or relating to the construction, meaning, scope, operation or effect of this Contract or the validity or the breach thereof shall be settled by arbitration in accordance with the Rules of Arbitration of the ‘Indian Council of Arbitration’ and the award made in pursuance thereof shall be binding on the parties. Arbitration is to be referred to ‘Indian Council of arbitration’ and the place of arbitration will be the office of ‘Indian Council of Arbitration’, situated at Federation House, Tansen Marg, New Delhi-110001. The fees of the arbitrators and all the other charges of the arbitration whatsoever will be borne by both the parties equally. The party failing to pay these expenses will be ex parte. If requested by any party, ‘Indian Council of Arbitration’ may resolve the matter within 3 months under fast track arbitration. No Legal action can be taken under this agreement for the enforcement of any right without resorting to the arbitration. There-after if any court case is initiated by any of the party of this deed, the case shall be exercised within the jurisdiction courts of the ……… courts.”
ये कुछ टिप्स हैं जो वकालत की अंधेर-ग्रदियों से मुवक्किलों को ही नहीं, कामयाब वकील बनने की चाह रखने वालों को भी बचा सकते हैं.
कमेंट ज़रूर लिखें. प्लीज, अच्छा लगेगा मुझे, मैं सिर्फ दो दिन और हूँ आपके साथ.
"Lawyers lose the cases due to their own mistakes and win due to their opponents' mistakes",तुषार कॉस्मिक.
Bahut important jaankari h. Bahut bahut dhanyavaad
ReplyDeleteशुक्रिया जी
Delete