Monday, 28 August 2017

Justice delayed is justice denied.

क्या लगता है कि सिर्फ डेरों के चीफ ही बाबा हैं? नहीं. लगभग सब राजनेता भी बाबा हैं और इनके कुकर्म भी वैसे ही हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि न्याय-व्यवस्था पंगु है. पंगु करके रखी गई है. जान-बूझ कर. वरना रोज़ एक नया बाबा/ नेता जेल में होगा. क्यों चार-छः महीने की तारीख दे जाती है कोर्टों में? क्यों तारीख पे तारीख दी जाती है? क्यों बीस-बीस साल तक कोर्ट केस घिसटते रहते हैं? जजों की संख्या कम है, यही न? नहीं है यह वजह. वजह है सब बड़े चोर नहीं चाहते कि कोर्ट सक्षम हों. नहीं चाहते कि फैसले दिनों में, महीनों में हों. मुकद्दमे दशकों तक घिसटते रहें तो कैसे होगा न्याय? कई लोग मर जायेंगे. या मार दिए जायेंगे. या फिर खरीद लिए जायेंगे. या धमका दिए जायेंगे. ऐसे में क्या घंटा न्याय होना है. यह कोई जहाँगीर का घंटा थोड़े न है, आधी रात को भी बजाओ तो भी न्याय मिलने की आशा हो. यहाँ तो नयाय के नाम पर वकीलों का पेट भरना होता है. वकील ही नहीं कोर्ट का पेट भी भरना होता है. कोर्ट भी लाखों रुपये फीस लेती है. एडवांस में. लखनऊ की एक ज़मीन का केस देख रहा हूँ, बारह साल से चल रहा है और आज तक एक पार्टी उसमें यही मुद्दा बनाए है कि सामने वाली पार्टी ने कोर्ट फीस कम जमा की है. अबे, की हो कम जमा फीस, तो क्या हुआ? अगर उसके साथ अन्याय हुआ या उसकी जेब में पैसे हों ही न देने को तो क्या उसे न्याय नहीं मिलना चाहिए? इडियट. लेकिन यहाँ ऐसे ही चलता रहता है सब. राम-रहीम के फैसले पर आम-जन खुश हैं. कोर्ट को सराह रहे हैं लेकिन यह भी देखने की बात है कि पन्द्रह साल लग गए फैसला आने में. यह भी तो अन्याय है. एक कथन है अंग्रेज़ी का , "Justice hurried is justice buried." लेकिन भारत में जिस हिसाब से केस घिसटते हैं यो तो यह कहना ज़्यादा सही है, "Justice delayed is justice denied." और कह सकते हैं, "In India Justice is not hurried, it is worried, it is buried." तुम संख्या बताओ, जितने जज चाहियें एक साल में मैं दे सकता हूँ, तुम्हारे ही समाज से दूंगा, trained. देखो कैसे नहीं होते साल-दो साल में फैसले? लेकिन फट के हाथ में आ जायेगी तुम्हारे नब्बे प्रतिशत नेताओं की, बाबाओं की, माताओं की, मौलानाओं की, फादरों की. इज्ज़त मेरा मतलब. ये क्यों चाहेंगे कि ऐसा हो जाये? असल बीमारी यह है. नमन ..तुषार कॉस्मिक

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