अपुन मुफ्त-खोरे हैं. औकात नहीं कि बीवी-बच्चों के साथ थिएटर जा कर हजार-डेढ़ हजार रुपये खर्च किये जायें सो बड़ी ईमानदारी से अपनी बे-ईमानी स्वीकार करता हूँ कि या तो youtube पर चोरी-छुप्पे डाली गई फिल्में देखता हूँ या फिर टोरेंट से डाउनलोड की हुईं.
पीछे तीन फिल्में देखीं. सब youtube पर.
१.अंकुर अरोड़ा मर्डर केस.
२.मसान.
३.अगली (अगली-पिछली वाला नहीं, अंग्रेज़ी वाला UGLY).
मैं बहुत क्रिटिकल व्यक्ति हूँ. अक्सर पाठक कहते हैं कि नकरात्मक है मेरी सोच. लेकिन अगर मैं कुछ नकारता हूँ तो कुछ स्वीकार भी रहा होता हूँ. मिसाल के लिए ये तीन फिल्में.
सबसे बढ़िया है "अंकुर अरोड़ा मर्डर केस". यह फिल्म आपको बहुत कुछ सिखाती है. मेडिकल वर्ल्ड कैसे आम आदमी को भूतिया बनाता है उसका तो सजीव चित्रण है ही लेकिन साथ-साथ वकील लोग कैसे अपने ही मुवक्किल से खिलवाड़ कर रहे होते हैं, इसका भी नमूना पेश करती है यह फिल्म. इस फिल्म को मैं भारत में आज तक बनी दस सर्वोतम फिल्मों में रखता हूँ. ज़रूर देखें. एक्टिंग, निर्देशन, कथानक सब मंझा हुआ. हाँ, बच्चे के मर्डर से जुड़ा है मामला, बहुत बड़ा दिल करके जैसे-तैसे देख पाया, आप भी देख लीजियेगा.
दूसरी फिल्म दो वजह से पसंद की. एक तो वो वजह है जो अक्सर लोग नज़र-अंदाज़ कर जाते हैं. हर फिल्म का एक बैक-ड्राप होता है. यानि कहानी कहाँ घूम रही है. बैक-ड्राप जंगल है, गाँव है, शहर है, पहाड़ है, क्या है. फिल्म कहानी के साथ-साथ और क्या दिखा रही है. जैसे अमोल पालेकर की फिल्में मध्यम-वर्गीय जीवन दिखाती हैं. टीवी पर आने वाले सास-बहु किस्म के सीरियल बहुत उच्च-वर्ग का जीवन दिखाते हैं. तो बैक-ड्राप. बैक-ड्राप भी फिल्म का एक करैक्टर होता है. स्ट्रांग करैक्टर. फिल्म का नाम "मसान" शायद रखा भी इसीलिए गया है. यह फिल्म काशी के पंडों का जीवन दिखती है, वो पंडे जो दाह-संस्कार कर्म में रत हैं. उनके जीवन की झलकियाँ. काशी के जीवन की झलकियाँ. तो आप इस वजह से देख सकते हैं यह फिल्म और सिनेमैटोग्राफी इतनी उम्दा है कि लगता है जैसे काशी में ही घूम रहे हैं.
दूसरा पॉइंट, इस फिल्म "मसान" को देख यह समझने का है कि पुलिस वाला कैसे ब्लैक-मेल करता है एक पंडे को और पैसे ऐंठता है. और ऐसा इसलिए होता है चूँकि पंडा और उसकी बेटी कानून नहीं समझते. मेरे जीवन का तजुर्बा है कि आप सौ में से निन्यानवें मौकों पर जो रिश्वत देते हैं, खाह-मखाह देते हैं, आपको कायदे-कानून का पता ही नहीं होता और इसी का सरकारी आदमी फायदा उठाता है. अगर आपको कानून पता हो तो रिश्वत मांगने वाला खुद आपको रिश्वत देकर जान छुड़वाएगा. खैर फिल्म ज़रूर देखिये. अदाकारी भी बढ़िया है.
अगली फिल्म अगली (Ugly) है. यह फिल्म आईना है हम सब के लिए. हम सब निहायत खुदगर्ज़ हो चुके हैं, बेहद सकीर्ण सोच के हो चुके हैं और इस खुदगर्ज़ी, इस संकीर्णता का नतीजा है कि पूरा समाज बुरी तरह से UGLY हो चुका है और इस कलेक्टिव ugliness का नतीजा बच्चे भुगतते हैं. कैसे? यह देखने के लिए यह फिल्म देखें.
नमन..तुषार कॉस्मिक
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