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Showing posts from November, 2016

आप बहुत खुश हैं चूँकि कहीं आप अमीरों से जलते थे

भक्त- मोदी जी ने बढ़िया कर दिया जो अमीरों का अरबों रूपया मिटटी हो गया. देशद्रोही- सर जी, आप बहुत खुश हैं. भक्त- वो तो हूँ. साले चोर. मुल्क का सारा पैसा दबा कर बैठे थे. देशद्रोही- सर जी, आप सच इस वजह से खुश हैं या इस वजह से कि आप अमीरों से जलते थे कि वो जो मज़े कर रहा था और आप नहीं कर पा रहे. भक्त- अबे जले मेरी जूती. भाग. देश द्रोही!!

मोदी जी और यूनान का कोई भविष्य-वक्ता

भक्त- यूनान का कोई भविष्य-वक्ता पहले ही कह गया था कि मोदी जी, दशकों तक भारत पर राज करेंगे. देश-द्रोही- सर जी, आपको नाम पता है उस भविष्य-वक्ता का? भक्त- उससे क्या फर्क पड़ता है? देश-द्रोही- आपने खुद पढ़ा है उस का लिखा? भक्त-नहीं. लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है. औरों ने पढ़ा है. देश-द्रोही- उस भविष्य-वक्ता का नाम Nastrodamus है और उसके लेख से अगर आप यह सिद्ध करना चाहो कि दावूद इब्राहीम भी प्रधानमन्त्री बन सकता है भारत का, तो ऐसा कर सकते हैं आप. उसकी शब्द ऐसे है कि जो मर्ज़ी मतलब निकाल ले कोई. भक्त- अबे तो फिर ठीक है जो मतलब हम ने निकाला वो ठीक भी हो सकता है. है कि नहीं? देश-द्रोही- लेकिन जो मतलब कोई और निकाले, वो भी ठीक हो सकता है. है कि नहीं? भक्त- नहीं, उसने मोदी जी के बारे में ही लिखा है और तू नहीं समझेगा. भाग. देश-द्रोही!

मोदी जी को वोट की राजनीति नहीं करते

भक्त- मोदी जी को वोट की राजनीति नहीं करते. उनको पता था कि वोट कट सकते हैं. फिर भी देश-हित में नोट बंदी की. की न? देश-द्रोही- सर जी, लेकिन पिछले इलेक्शन में पैसा तो उन्होंने पानी की तरह बहाया था. घर-घर मोदी, हर-हर मोदी ऐसे ही तो नहीं हो गया था. भक्त- उससे क्या फर्क पड़ता है? वो तो बाकी सभी पार्टी वाले भी कर रहे थे. देश-द्रोही- लेकिन मोदी जी अगर वोट की राजनीति नहीं करते तो फिर दो-दो जगह से इलेक्शन क्यूँ लड़ रहे थे? भक्त- अबे वो सब देश-सेवा के लिए ज़रूरी था. देश-द्रोही--- तो सर जी, अगर आगे हम उनको वोट न दें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा न. मोदी जी वोट की राजनीति थोड़े न करते हैं. नहीं? भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

आम आदमी ऑन रिकॉर्ड/ ऑफ रिकॉर्ड

भक्त- जितने भी सर्वे हुए हैं, लोगों ने नोट-बंदी की सराहना की है. देश-द्रोही- सर जी, सर्वे सब नकली हैं. भक्त- कैसे? देश-द्रोही--- मरना है, किसी ने मोदी जी के खिलाफ बोल के? वो केजरीवाल दिल्ली में क्या जीत गया, दिल्ली की और केजरीवाल की और उसके साथियों की ऐसी-की-तैसी कर रखी है मोदी जी ने. आम आदमी की क्या औकात? भक्त- आम आदमी आम-आदमी-पार्टी के साथ नहीं है, वो मोदी जी के साथ है. देश-द्रोही- सर जी, आम आदमी सिर्फ ओन रिकॉर्ड ही कह रहा है कि मोदी जी ने बहुत अच्छा किया. ऑफ रिकॉर्ड तो वो यही कह रहा है कि मोदी ने हमारे नोट खत्म कर दिए, हम मोदी के वोट खत्म कर देंगे. भक्त- चोप. ऐसा कुछ नहीं है. तुम देश-द्रोही हो . बस

2000 का नोट और रिश्वत

भक्त- 1000 और 500 के नोट इसलिए बंद किये गए हैं कि बड़े नोटों से रिश्वत देना आसान होता है. देश-द्रोही-- लेकिन फिर 2000 का नोट किस लिए सर जी? भक्त - वो भी बंद कर दिया जाएगा. देश-द्रोही-- फिर चालू ही क्यूँ किया सर जी? भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

“स्वच्छ भारत अभियान”--???

देशद्रोही- सर जी मोदी जी की प्रधान-मंत्री बनने के बाद की कोई उपलब्धि बताओ? भक्त- अबे, भूल गया, मोदी जी ने “स्वच्छ भारत अभियान” चलाया था. देशद्रोही- सर जी, वो तो सिर्फ अभियान चलाना था, उसका नतीजा तो निल-बटा-सन्नाटा है. भक्त- कैसे बे? देशद्रोही- वो देखा दिल्ली में गन्दगी है हर और एवम् बीमारियों का है शोर. भक्त- अबे वो तो केजरीवाल की वजह से है. देशद्रोही- लेकिन सर जी, सफाई तो MCD का ज़िम्मा है और MCD भाजपा के पास है और भाजपा में इस वक्त मोदी सर्वोच्च हैं और भारत के प्रधान-मंत्री हैं तो सफाई उनका ही ज़िम्मा हुआ कि नहीं? वैसे भी उन्होंने स्वच्छ अभियान चलाया था. उसमें देश की राजधानी की स्वच्छता शामिल थी कि नहीं? स्वच्छ अभियान का असल मतलब विरोधी पार्टियों का येन-केन-प्रकारेण सफाया तो नहीं था? भक्त- चोप! देशद्रोही!!

मोदी जी का नॉन-स्टॉप कम और मेरा स्कूटर

भक्त- अबे पता है तुझे, मोदी जी रोज़ अठारह घंटे काम करते हैं और कोई छुटी नही लेते. देशद्रोही- सर जी, मेरा स्कूटर खराब हो गया था. भक्त- तो? मैं देश के प्रधानमन्त्री की बात कर रहा हूँ और तू अपने स्कूटर को रो रिया है. देशद्रोही- सर जी, आगे भी तो सुनिए. स्कूटर मैं मकेनिक के पास ले गया. भक्त- अबे, फिर वही स्कूटर? मैं देश के प्रधानमन्त्री की बात कर रहा हूँ और तू अपने स्कूटर को रो रिया है. देशद्रोही- सर जी सुनिए तो. मकेनिक ने अट्ठारह घंटे उस पर काम किया,बिना रुके.| भक्त- अबे, पागल हो गया क्या? स्कूटर पर ही तेरी सुई अटक गई है. देशद्रोही- सर जी, सुनिए तो. पागल मैं नहीं स्कूटर हो गया. मेकेनिक अनाड़ी निकला. और उसके अट्ठारह घंटे की कड़ी मेहनत का नतीजा यह हुआ कि फिर मुझे उसे ठीक करवाने में स्कूटर की कीमत जितना ही खर्च करवाना पड़ा. लेकिन जान जैसा प्यारा था स्कूटर, सो खर्च किया. भक्त- चोप! देशद्रोही!!

वो प्रधान-मंत्री हैं, उनका सम्मान करो!

भक्त----- क्या बे यह? जब देखो मोदी जी के खिलाफ बकते रहते हो. मोदी जी देस के प्रधान-मंत्री हैं. हमें अपने प्रधान-मंत्री का सम्मान करना चाहिए. अब वो किसी पार्टी के प्रधान-मंत्री थोड़े न हैं. वो देश के प्रधान-मंत्री हैं. देशद्रोही--- वोईईईई तो, सर जी, भक्त---- क्या वोईईईए तो बे? देशद्रोही--- सर जी, वो ही तो मैं भी कहता हूँ. वो खुद भी तो समझें कि वो अब देश के प्रधान-मंत्री हीन. आरएसएस के प्रचारक नहीं. लेकिन वो तो हर चुनाव में पहुँचते हैं अपनी पार्टी का प्रचार करने. वो तो खुद नहीं मानते कि अब वो अपनी पार्टी के प्रधान-मंत्री नहीं हैं, देश के प्रधान-मंत्री हैं. भक्त--- अबे चोप, प्रचार करने का हक़ तो उनको भी है न अपनी पार्टी का. प्रधान-मंत्री भी हैं वो और अपनी पार्टी के सर्वोच्च मेम्बर भी. वो दोनों रोल अदा करते हैं. देशद्रोही--- सर जी अगर हम भी दोनों रोल अदा करते हैं तो वो आपको हज़म नहीं होता. मतलब हम वोटर भी हैं और विचारक भी. और हमें समझ आता है कि प्रजातंत्र को हाईजैक करके कॉर्पोरेट मनी के दम पर बना प्रधानमन्त्री सम्मान के काबिल वैसे ही नहीं. हमें समझ आता है कि सरकारों का सम्मान मात...

फर्ज़ीकल स्ट्राइक

देशद्रोही--- सर जी, मोदी सरकार की कोई और उपलब्धि बताएं. भक्त----- मोदी जी ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की. देशद्रोही--- सर जी, सच में क्या? सबूत तो दिया नहीं कोई. भक्त---- अबे, ऐसी घटनाओं के सबूत नहीं दिए जाते. दुश्मन फायदा उठा सकता है. देशद्रोही--- सर जी, फिर बताने की भी क्या ज़रुरत थी? सीक्रेट ही रखना था तो पूरी तरह ही सीक्रेट रख लेते. अब बताया है तो फिर पूरा बताने की डिमांड भी की जा सकती है. भक्त- अबे, वो सरकार तय करती है कि कितना बताना है और कितना नहीं बताना है. देशद्रोही--- सर जी, लेकिन बिन सबूत के ही मान लें सरकार की बात? भक्त- हाँ बे, उसमें गलत क्या है? देशद्रोही---- सर जी, लेकिन सरकार तो खुद मानती है कि उसकी बात पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. भक्त- अबे चोप! ऐसा कुछ नहीं है. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, अमित शाह ने खुद कहा कि मोदी जी के बोल-बच्चन जुमला मात्र हो सकते हैं. भक्त--- लेकिन जब सेनानायक ऐसा कह रहे हैं तो देश को और सवाल उठाने वालों को मानना चाहिए. देशद्रोही- लेकिन सर जी, सेना में तो खूब घोटाले हुए हैं. भक्त- अबे लेकिन वो मोदी जी का कार...

चोप्प! भाजपा में कोई भ्रष्टाचारी नहीं

देशद्रोही--- सर जी, अगर कोई हो तो अपनी पार्टी की ख़ासियत बताएं. भक्त----- अबे, हमारी पार्टी इकलौती पार्टी है, जो पाक-साफ़ है. यू क्नो, “पार्टी-विद-ए-डिफरेंस”. देशद्रोही--- सर जी, सच में क्या? भक्त---- और नहीं तो क्या? हम कोई आम-आदमी-पार्टी के नेताओं जैसे थोड़ा न है, जो रोज़ पकड़े जाते हैं. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, वो तो ज्यादातर तो ऐसे केस हैं जो पोकेट-मार पर भी न बने. और उनमें से ज्यादातर तो कोर्ट ने रद्द दिए हैं. भक्त- अबे, तू मूर्ख है, तुझे समझ नहीं आएगी. सिर्फ हमारी पार्टी ही इमानदार है. देशद्रोही- सर जी, लेकिन आपकी पार्टी के प्रमुख बंगारू लक्ष्मण तो सरे-आम रिश्वत लेते हुए पकडे गए थे. भक्त- हाँ बे, लेकिन वो इक्का-दुक्का केस था. देशद्रोही---- सर जी, लेकिन वो पार्टी प्रमुख थे. और फिर आपकी ही पार्टी के बड़े नेता राघव जी अपने नौकर के साथ सेक्स सम्बन्धों में पकड़े गए थे. भक्त- अबे! उसे पार्टी से निकाल तो दिया गया था. देशद्रोही--- सर जी, वो तो केजरीवाल भी कर रह है. भक्त- फिर भी हमारी पार्टी ही “पार्टी-विद-ए-डिफरेंस” है. ये इक्का-दुक्का केस है. देशद्रोही--- लेकिन सर ज...

अबे चोप, देशद्रोही!

भक्त----- मोदी, मोदी, मोदी. हर हर मोदी, घर घर मोदी. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, वो उमा भारती तो कहती हैं कि मोदी सिर्फ मीडिया द्वारा भरा गया गुब्बारा हैं. भक्त---- अबे वो विरोधिओं की चाल है सब. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, उमा जी तो भाजपा से ही सम्बन्धित हैं. और वो रामजेठमलानी भी कहते हैं कि मोदी ने उनको उल्लू बनाया है. भक्त-- अबे वो भी विरोधिओं की चाल है. देशद्रोही-- सर जी, लेकिन वो भी तो आपकी पार्टी से ही सम्बन्धित रहे हैं. और सर जी, वो शत्रुघ्न सिन्हा भी नोट-बैन पर कुछ सवाल उठा रहे हैं. भक्त--- हाँ बे, वो भी विरोधिओं की चाल है. देशद्रोही--- लेकिन वो भी तो आपकी पार्टी से ही सम्बन्धित हैं.और सर जी,वो मीनाक्षी लेखी ने भी पीछे कहा था कि नोट-बंदी बहुत गलत कदम होगा. भक्त--- हाँ बे, वो भी विरोधिओं की चाल है. देशद्रोही---- सर जी, लेकिन वो भी तो आपकी ही पार्टी से हैं. और वो राज ठाकरे भी कहते हैं कि मोदी जी सरकारी पैसे से अपनी पार्टी की रैली करते हैं. रैली के लिए जिस हेलीकाप्टर में उड़ते हैं वो भी सरकारे पैसे से उड़ता है. न सिर्फ वो बल्कि 25 हेलीकाप्टर तब तक हवा में उड़ते हैं, जब...

अमित शाह बीजेपी नेताओं के बैंक अकाउंट चेक करेंगे--???

देशद्रोही--- सर जी, सुना है, अमित शाह बीजेपी नेताओं के बैंक अकाउंट चेक करेंगे. भक्त----- मैं न कहता था शुरू से हमारी पार्टी सबसे ईमानदार है. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, फिर थे शायद आज़ादी से लेकर आज तक का सारा हिसाब राष्ट्र के आगे रख देंगे भाजपा नेताओं का. मल्ल्ब रोडपति से कैसे करोड़पति बने ज़रा ‘आम अमरुद आदमी’ को भी इतना जल्ली अमीर होने का नुस्खा मिल जाएगा. नहीं? भक्त---- अबे क्या बकैती करता है, वो तो बस नोट-बंदी के दौर की ही चेकिंग होनी है. देशद्रोही--- हम्म्म्म.......तो सर जी, भाजपा अपनी पार्टी का अकाउंट तो ज़ाहिर कर ही देगी कि उनके पास कितना पैसा आया, किस से आया? खास करके मोदी जी के चुनाव का खर्च किसने वहन किया वो तो पता लगा ही जाएगा. नहीं? भक्त- अबे, चोप. वो तो बस नोट-बंदी के दौर की ही चेकिंग होनी है. देशद्रोही--- चलिए सर जी, इतना भर तो बता ही देंगे अमित शाह कि जो 1100 करोड़ रुपये मोदी जी के कार्य-काल में advertisement पर खर्च किये हुए हैं, उनमें से कुछ भी पैसा उनकी पार्टी प्रचार में नहीं गया. नहीं? भक्त—अबे चोप, देशद्रोही!

“मेक इन इंडिया”---???

देशद्रोही--- सर जी, मोदीजी के कार्यकाल की कोई उपलब्धि और बताएं. भक्त----- मोदी जी ने “मेक इन इंडिया” चलाया. देशद्रोही--- लेकिन सर जी, सुना है वो ‘मेक इन इंडिया’ का शेर भी इंडिया से बाहर की कम्पनी ने बनाया है. भक्त- उससे क्या होता है? तुम उनकी योजना का मतलब समझो. देशद्रोही-----सर जी, लेकिन “मेड इन इंडिया” क्यूँ नहीं? या “मेड इन इंडिया बाय इंडियन” क्यूँ नहीं? मतलब हम भारतीयों के हाथ पैर, दिमाग कुछ कम है कि हमारे मुल्क में हम आमंत्रित करें दुनिया भर को कि आओ और यहाँ आकर उद्योग लगाओ. मतलब मोदी जी ने यह पहले से ही कैसे मान लिया कि हम खुद कुछ नहीं बना सकते? भक्त---- अरे वो बाहर से टेक्नोलॉजी आयेगी, बाहर के तकनीशियन आयेंगे, बाहर की पूंजी आयेगी तो यहाँ रोज़गार पैदा होगा. देशद्रोही--- मतलब न हम तकनीक पैदा कर सकते हैं, न सीख सकते हैं, न पूंजी पैदा कर सकते हैं. और न ढंग का रोज़गार. हम सिर्फ लेबर टाइप काम ही कर सकते हैं. यही न? भक्त- अरे भाई, हमारे पास अपार युवा शक्ति है, इसे रोज़गार भी तो देना है कि नहीं. देशद्रोही--- सर जी, उसके लिए “मेक-इन-इंडिया” क्यों? मेड-इन-इंडिया क्यों नहीं...

मोदी जी इमानदार है-2

भक्त- मोदी जी इमानदार है. न खाने देते हैं और न खाते हैं. देशद्रोही--- सर जी, इमानदार तो मनमोहन सिंह भी बहुत थे. भक्त--- तो? देशद्रोही--- मोदी जी की इमानदारी वैसी ही है जैसी मनमोहन सिंह की थी. क्या ज़रुरत है आपको खुद अपने हाथ काले करनी की? खुद करोगे तो पकडे जाओगे. मनमोहन सिंह के पीछे लोग घपले करते रहे और वो खुद सृष्टि के सबसे ईमानदार  व्यक्ति बने रहे. पर्दे पर मनमोहन सिंह थे पीछे नेतागण हेर-फेर करते रहे. भक्त—तो? मोदी जी इमानदार है. न खाने देते हैं और न खाते हैं. देशद्रोही----अब पर्दे पर मोदी हैं पीछे सबसे बड़े व्यापारी हैं. समझे साम्य. भक्त--  चोप! देशद्रोही!!

मोदी जी इमानदार हैं?-1

भक्त— मोदी जी इमानदार हैं. न खाते हैं, न खाने देते हैं. देशद्रोही- सर जी, वो तो अम्बानी परिवार के बहुत करीबी हैं. भक्त-तो गुनाह है क्या? देशद्रोही — नहीं सर जी, वो कह रहे थे कि बे-ईमानों का आजादी से लेकर आजतक का हिसाब-किताब निकाल लेंगे. भक्त- तो ? देशद्रोही - सुना तो हमने यह भी है कि अम्बानी बंधुओं के पिता जी श्री धीरू भाई ने सारा कारोबार ही मंत्री-संतरियो को रिश्वत देकर खड़ा किया था. तो फिर हम यह समझें कि आज़ादी से लेकर आज तक का अम्बानी बंधुओ का सारा चिटठा-पट्ठा जनता के सामने होगा. भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

28 नवम्बर का बंद-- ट्रिक भाजपा की

भक्त- 28 नवम्बर को जो दूकान बंद मिले, उससे कभी ज़िंदगी में सामान नहीं लेंगे. देशद्रोही- सर जी, आप तो चाहते हैं कि हिन्दू कभी मुसलमान को बिज़नस न दे. भक्त—तो? देशद्रोही-- पुरानी दिल्ली का करीम होटल देखा है, वहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख सब जाते हैं खाने. मालूम है क्यूँ? भक्त- क्यूँ बे? देशद्रोही- चूँकि उनका मटन खाते हुए लोग अपने हाथ तक खा जाते हैं. भक्त- अबे साबित क्या करना है तुझे? देश-द्रोही-- मेरे इर्द-गिर्द सबने चीन से बनी लड़ियाँ ही लगा रखीं थी दीवाली पे. आप तो चाइना का सामान भी बंद करने की गुहार कर रहे थे. भक्त- तो? देशद्रोही-- बाज़ार अपने नियमों से चलती है, आपके इस हुक्का-पानी बंदी से नहीं. बहुत दूर तक नहीं जाएगी यह ट्रिक. भक्त- अबे चोप, देशद्रोही!!

मोदी जी इसी माँ का ज़िक्र कर रहे थे जापान में

वो माँ मिल गई है, जो मोदी जी के नोट बैन के बाद बहुत खुश है, वही जिसके बेटा-बहु वैसे तो पूछते नहीं थे लेकिन नोट बैन के बाद उसके बैंक अकाउंट में अढाई लाख जमा करा गए थे. वही जिसका ज़िक्र मोदी जी जापान में कर रहे थे. वो माँ मिल गई है. आप भी देखें. https://www.youtube.com/watch?v=bM34Xs2SSQo

कश्मीर में पत्थरबाजी और नोट-बंदी - 2

भक्त- कश्मीर में पत्थरबाजी बंद हो गई नोट-बंदी से. देशद्रोही- सर जी, बंद तो सदर बाज़ार भी है तब से. भक्त- अगर बंद होता तो केजरीवाल एंड कम्पनी कल काहे बंद करवा रही है बे. देशद्रोही- सर जी, वो अमिताभ का डायलॉग याद आ रहा है, ये जीना भी कोई जीना है लल्लू. भक्त- अबे चोप, देशद्रोही!

भाजपा का पार्टी फंड- काला या गोरा धन

भक्त- मोदी साहेब ने नोट-बंदी काला धन खात्मे के लिए किया है. देशद्रोही- सर जी, शायद मुझ से कोई चूक हो गई हो, उन्होंने तो अपनी पार्टी का फंड कहाँ से आता है, वो भी घोषित कर दिया होगा. नहीं? भक्त- अबे चोप्प! वो पैसा नहीं बताया जा सकता चूँकि देने वाले का यदि पता चल जाए तो विरोधी पार्टी वाले उसके दुश्मन बन जाते है. देशद्रोही- सच्ची सर जी, जब रीटा बहुगुणा कांग्रेस छोड़ आपकी पार्टी में आ सकती हैं, जब सिद्धू आपकी पार्टी से आउट हो सकते हैं, तो क्या फर्क पड़ता है कि पार्टी फंड देने वाले भी पाला बदलते रहें? भक्त- बे चोप! देशद्रोही!!

मोदी जी ने नोट-बंदी की ठीक से तैयारी नहीं की या करने नहीं दी ?

देशद्रोही- मोदी जी ने नोट-बंदी की ठीक से तैयारी नहीं की.  भक्त- अबे तैयारी नहीं की या करने नहीं दी काले धन वालों? देशद्रोही—सर जी, मेरा मतलब था कि वो जो नए नोट छपे हैं, वो अगर पुराने ही साइज़ के छाप लेते तो ATM भी लोगों की आत्मा को राहत देते. वैसे देखें तो ATM का असल मतलब आत्म ही है. जो आत्मा को सुकून दे. भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

नोट- बंदी या डिक्टेटरशिप

देशद्रोही--- ये नोट-बंदी बिलकुल ही डिक्टेटर-शिप हो गई भैया. भक्त- नहीं ऐसा नहीं, मोदी जी ने लोगों की राय ली है, नमो app के ज़रिये. देशद्रोही- अच्छा है भैया, लेकिन यह राय किसी ऐसे ढंग से लेते कि उसमें सब लोग शामिल हो पाते. मतलब मेरे गाँव का भैंस चराने वाला ललुआ. खेत में मजदूरी करने वाला भोंदू. गाय के गोबर से सारा दिन उपले घड़ने वाली बिमला. नहीं? भक्त- अबे चोप, मौका दिया न. आज कल मोबाइल फ़ोन घर-घर है. हर- हर मोबाइल, घर-घर मोबाइल. देशद्रोही--- सर जी, लेकिन राय काम करे से पहले लेते तो कोई मतलब था. काम करने के बाद ली गई राय का क्या मतलब? नहीं? भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

चुनावी जुमला - असल मतलब

देशद्रोही- सर जी, वो मोदी जी ने चुनाव से पहले कहा था कि हर भारतीय के खाते में पन्द्रह- पन्द्रह लाख यूँ ही आ जाएंगे. उसका क्या? भक्त- अबे हराम की खाने के बहुत शौक़ीन हो. देशद्रोही- लेकिन सर जी, वो तो मुल्क का ही पैसा था न, जो वापिस आना था? मुल्क का, मतलब हमारा. तो हराम का कैसे हो गया? भक्त- अबे, वो मोदी जी ने पन्द्रह- पन्द्रह लाख आप लोगों के खातों में डलवाने नहीं, निकलवाने की बात कही थी. सो वादा पूरा कर दिया है. देशद्रोही—लेकिन सर जी, डलवाने की बात थी, हमने ठीक से सुना था. भक्त- बे चोप! देशद्रोही!!

कशमीर में पत्थर-बाज़ी और नोट- बंदी-1

देशद्रोही- सर जी, नोट-बंदी से बहुत दिक्कत हो रही है लोगों को, कई तो मर भी गए लाइन में खड़े खड़े बैंकों के आगे. भक्त- वक्त लगेगा अभी. बहुत अच्छे नतीजे आएंगे आगे. अभी से कुछ भी राय बनाना सही नहीं होगा. देशद्रोही- लेकिन सर जी, आप तो कह रहे थे कि कश्मीर में पत्थर-बाज़ी नोट-बंदी से ही कम हुई है. आपने इतनी जल्दी कैसे नतीजा निकाल लिया? भक्त- बे चोप! देशद्रोही!!

मीनाक्षी लेखी जी द्वारा नोट बैन की खिलाफत

देशद्रोही- सर जी, वो आपकी पार्टी की तेज़-तरार नेत्री मीनाक्षी लेखी जी का विडियो देखा. वो पीछे कह रही थी कि नोट बैन बहुत गलत होगी आम आदमी के लिए. भक्त- वो उनकी अपनी राय रही होगी, पार्टी की नहीं. देशद्रोही- लेकिन सर जी, वो तो पार्टी प्रवक्ता थीं तब. भक्त- चोप !! वो उनकी अपनी ही राय थी. देशद्रोही!

जन-धन अकाउंट का औचित्य

देशद्रोही- सर जी, मोदी जी की कोई उपलब्धी बताएं प्रधान-मंत्री बनने के बाद. भक्त- मोदी जी ने जन-धन योजना के तहत गरीब से गरीब लोगों को बैंक अकाउंट खुलवाए ही इसीलिए कि लोग अपना पैसा बैंक में रखें. देशद्रोही- लेकिन सर जी, अकाउंट तो कोई भी पहले भी खोल सकता था. भक्त- लेकिन उसके लिए हज़ार रुपये भी तो होने चाहिए थे? देशद्रोही- सर जी, अगर हज़ार रुपये भी नहीं हैं तो फिर अकाउंट खोलना ही किस लिए? भक्त- चोप! देशद्रोही- और सर जी, उन जन धन खातों के रख रखाव में जो खर्चा आया, वो जनता ने ही भरा न? उसका फायदा क्या जब इनमें से बहुत लोग हज़ार रूपया भी जमा करके खाता नहीं खुलवा सकते? भक्त- चोप! तुम्हें समझ नहीं आएगा, ये हाई इकोनोमिक्स की बातें हैं. देशद्रोही- ठीक है सर जी, फिर तो मेरे से वोट भी नहीं माँगा जाना चाहिए, मुझे कहाँ कुछ समझ आएगा. नहीं? भक्त- चोप! देशद्रोही!!

28 नवम्बर के भारत बंद पर टिप्पणी

भक्त-- भारत बंद कराने वालो को जरा पूछो, सरहद बंद कराने जाना है आओगे ???? देशद्रोही- सर जी, शुरुयात से ही शुरू करते हैं, यही सवाल मोदी जी से करते हैं. सवाल क्या करते हैं, उनको वहां खड़ा ही कर देते हैं. भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!!

मोदी जी का त्याग

भक्त- मोदी जी ने घर-बार सब छोड़ा मुल्क के लिए, कहा भी था उन्होंने गोवा में. देशद्रोही- सर जी, बीवी तो अपनाने से पहले ही छोड़ दी थी, फिर घर कब बनाया? और जब बनाया ही नहीं तो छोड़ा कब? भक्त- अबे, माँ नहीं हैं क्या उनकी? देशद्रोही- तो सर जी, क्या यह मानें कि जो भी अपनी माँ के साथ रहता है वो देश सेवा में अक्षम है. भक्त- अबे चोप! देश द्रोही!!

केजरीवाल बकवास है - सच में क्या?

भक्त- केजरीवाल बकवास है. दिल्ली को उल्लू बना दिया. देशद्रोही- सर जी, जब कोर्ट ने ही कह दिया कि दिल्ली का बॉस लेफ्टिनेंट गवर्नर है तो केजरीवाल को क्या दोष देना? भक्त- तूने देखा, दिल्ली में चारों और गन्दगी है. उससे ही बीमारियाँ फ़ैली हैं. देशद्रोही- पर सर जी, MCD तो भाजपा के पास है यानि राष्ट्र-वादी पार्टी के पास. भक्त- केजरीवाल की ही वजह से दिल्ली में अपराध बढे हैं. देशद्रोही- पर सर जी, दिल्ली पुलिस तो केंद्र के अधीन है, केजरीवाल क्या करेगा इसमें? भक्त- DDA भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है, केजरीवाल ने किया कुछ? देशद्रोही- पर सर जी, वो भी तो LG के अधीन है? भक्त- तो फिर केजरीवाल दिल्ली का मुख्य-मंत्री बना ही क्यों? देश-द्रोही- वोही तो फिर, केजरीवाल को दिल्ली का प्रधान-मंत्री बनने ही क्यूँ दिया गया. केंद्र को दिल्ली के चुनाव करवाने ही क्यूँ थे? या फिर दिल्ली को केजरीवाल को जितवाने की सज़ा दे रहे हैं मोदी जी? भक्त- अबे चोप! देशद्रोही!! आपिये!!

"मोदी की खतरनाक राजनीति"

मोदी अपना वोट बैंक बदल रहा है, वो भिखमंगे और जिनके पल्ले कुछ नहीं था, उनको टारगेट कर रहा है. उसे पता है, कि ये लोग jealous थे अमीरों से, और ये निहायत खुश हैं. उसे वोट अच्छा नौकरी पेशा देगा. या फिर जो कुछ भी पैसा नहीं जोड़ नहीं पाया, वो देगा. व्यापरी जी जान लगा देगा, मोदी को गिराने में. यह पक्का है. शत प्रतिशत. और मोदी को अब इस व्यापारी के पैसे की ज़रूरत नहीं है, चूँकि उसके पास टॉप-मोस्ट व्यापारी हैं, अम्बानी, अदानी. सो उसे अब छुट-पुट लोगों की कोई ज़रूरत नहीं है. और वोट वो इन्ही का पैसा फेंक कर, फिर से खींच लेगा, ऐसी उसे समझ है. ये जो लोग मोदी-मोदी के नारे उछाल रहे हैं, वो बहुत पेड होंगे. अपनी पार्टी rti में लायेंगे नहीं. अपना पैसा पहले ही सफेद कर चुके दूसरी दलों को कंगला कर दिए, अब आगे फिर से अँधा पैसा प्रयोग होगा, और वो बीजेपी की तरफ से होगा और शुरू हो भी चुका असल में. यह है राजनीति.

मोदी कैसे बना प्रधान-मंत्री

मोदी ने प्रजातंत्र को किडनैप किया था, हाईजैक किया था. अन्ना आन्दोलन की वजह से एक vaccum क्रिएट हो गया था राजनीति में कांग्रेस की जगह छिन्न चुकी थी जिसे अन्ना ग्रुप नहीं भर पाया  वो तितर-बितर हो गया विकल्प नहीं दे पाया वरना भाजपा पहले भी थी ऐसा क्या हो गया था कि मोदी मोदी हो गई लोग तो अन्ना के साथ थे फिर मोदी कहाँ से आ गया चूँकि विकल्प नहीं दे पाए अन्ना के साथी भौतिक विज्ञानं का नियम है vaccum को उसके इर्द गिर्द जो भी हो वो भरने का प्रयास करता है सो भर गया, भरा गया...मोदी मोदी हो गेया छद्म प्रजातंत्र से

काला धन --गोरा धन

1. कोई धन ‘काला धन’ नहीं होता जब तक सरकार टैक्स आटे में नमक जैसा न लेती हो. 2. कोई व्यक्ति चोर नहीं होता जब तक सरकार टैक्स चोरों जैसे न लेती हो. 3. कोई व्यक्ति बे-ईमान नहीं होता जब तक सरकार खुद इमानदार न हो. 4. कोई टैक्स ही सही नहीं होता जब तक उसमें सबकी भागीदारी न हो. मतलब जो लोग टैक्स देने के काबिल न हों उनको इस मुल्क में बच्चे पैदा करने का हक़ भी क्यूँ हो? क्या आप पड़ोसी के बच्चे को पालने के लिए ज़िम्मेदार हैं. अगर नहीं तो फिर जो टैक्स नहीं भर सकते उनके बच्चे आप क्यूँ पालें? 5. इन बिन्दुओं पर सोचें, समझ आ जायेगी, देशद्रोह के, बेईमान के ठप्पे लगाने से कुछ नहीं होगा, दिमाग पर जोर देने से होगा.

प्रजातंत्र या अर्थतन्त्र का षड्यन्त्र

मोदी भक्त-जन, बस इतना जवाब दें कि कोई धन काला कैसे हो गया? सरकार  नौकर है. जनता मालिक है. है कि नहीं? फिर आज तक कभी कोई सर्वे हुआ कि जनता (मालिक) कितना टैक्स देकर सरकार चलवाना चाहती हैं? अँधा-धुंध टैक्स लगाओ और फिर कोई न दे तो उसे चोर घोषित करो.  ऐसी सरकारों की ऐसी की तैसी. भाजपा के अपना खाता बताया कि करोड़ों रुपये जो मोदी खर्च करके PM बना , वो कहाँ से आए थे? हमें कॉर्पोरेट धन से हमारे नेता बने लोगों का विरोध करना चाहिए. हमें छदम प्रजातंत्र का विरोध करना चाहिए. तभी हम प्रजातंत्र के असली मतलब को जी पायेंगे.वरना हम सिर्फ अर्थ-तन्त्र आधारित छद्म-तन्त्र षड्यन्त्र में पड़े रहेंगे. असल प्रजातंत्र तब होगा जब आप और मुझ में से कोई भी प्रधान-मंत्री बन सके. बन सके अपनी मन्त्रणा की क्षमता की वजह से. न कि इसलिए कि वो किसी संस्था में जीवन भर रहा, न कि इसलिए कि उसे कोई अंध-धुंध पैसे से देवता बना गया. उम्मीद है समझ आए. तुषार कॉस्मिक

मोदी को कैसे गिराएं

  चोर को नहीं, चोर की मां को मारो. मोदी को गिराना है तो मोदी-भक्त के हर कुतर्क को बेरहमी से काटो. उससे उलझो मत, कोई फायदा नहीं होगा. उसके फैलाए हर कुतर्क के  जवाब में तर्क फैलाओ. मोदी अपने आप गिर जाएगा. जिस हथियार का प्रयोग करके वो प्रधान-मंत्री बना है, वही उसके खिलाफ प्रयोग करो. पंजाबी में इसे ही कहते हैं, “तेरी जुत्ती, तेरे सर.”

"मोदी कहाँ गलत है, देखें--गुलाम मालिक बन गया"

आप सब्ज़ी खरीदते हो तो मोल भाव करते हो....बेचने वाला अपना रेट बताता है...आप अपना. चौक से लेबर भी लेते हो तो मोल भाव करते हो, मज़दूर चार सौ मांगता है, आप तीन सौ कहते हो, करते-कराते बीच में कहीं सौदा पट जाता है. आप ड्राईवर रखते हो, वप अपनी डिमांड रखता है, आप अपनी तरफ से काम बताते हो और अपनी तरफ से क्या दे सकते हो अह बताते हो, सौदा जमता है तो आप उसे hire कर लेते हो. अब आओ सरकार पर. सरकार जनता की नौकर है. PM/ CM/ सरकारी नौकर सब पब्लिक के सर्वेंट हैं, नौकर.   पब्लिक को मौका दिया क्या कि वो मोल भाव कर सके कि सरकार को कितनी तनख्वाह (टैक्स) देना चाहती है? नहीं दिया न. बस.यही फेर है. नौकर मालिक बन बैठा है. जनतंत्र तानाशाही बन बैठी है. एक कहानी सुनाता हूँ, बात समझ में आ जाएगी.  बादशाह एक गुलाम से बहुत खुश रहता था. गुलाम भी बहुत सेवा करता, बादशाह मुंह से निकाले और फरमाईश पूरी. एक बार बादशाह ने भरे दरबार में कह दिया कि मांग क्या मांगता है. वो कहे, "नहीं साहेब, कुछ नहीं चाहिए". बादशाह ने फिर जिद्द की. "मांग, कुछ तो मांग". सारा दरबार हाज़िर. आखिर गुलाम ने मांग ही...

"नोट-बंदी/ गन्दी-बंदी"

प्रजातंत्र में सरकार नौकर है और जनता मालिक. नौकर अपनी तनख्वाह तब तक बढवाने की जिद्द नहीं कर सकता जब तक कि पहले सी दी जा रही तनख्वाह का हक़ ठीक से अदा न कर रहा हो. नौकर अपनी तनख्वाह तब तक नहीं बढवा सकता, जब तक मालिक राज़ी न हो. नौकर कौन होता है जबरदस्ती करने वाला? जनता की मर्ज़ी भई, अगर उसे कम तनख्वाह वाला नौकर पसंद हो तो वो वही रखेगी. जनता को विकास चाहिए लेकिन इस शर्त पर नहीं कि उसकी जेब में पड़े एक रुपये की चवन्नी रह जाए. नहीं यकीन तो पूछ के देख लो. और बेहतर था यह सब गंदी-बंदी करने से पहले पूछते. और गाँव, गाँव, कस्बे-कस्बे पूछते. यह क्या ड्रामा है? जो करना था, वो कर दिया. बाद में पूछते हो, वो भी मोबाइल app बना कर. जहाँ पचास प्रतिशत लोगों को वो app की abcd ही नहीं पता होगी. और अगर पता भी होगी तो कौन दुश्मन बनाए सरकार को अपनी असल राय ज़ाहिर करके . सो साहेबान, ज़्यादा सयाने मत बनिए. अक्सर ज़्यादा सयाने लोग बेवकूफ ही बनते हैं, सयाना कव्वा गू पर गिरता है.

“नोट-बंदी -- मोदी की अक्लमंदी या अक्ल-बंदी”

सबसे पहले हमें समझना होगा कि प्रजातंत्र क्या है. ठीक है. ठीक है. आप जानते हैं , “ हमारी सरकार , हमारे लिए , हमारे द्वारा. ” यानि दूसरे शब्दों में सरकार और कुछ नहीं , ‘ हम ’ ही हैं. सरकारी तन्त्र , निजाम ‘ हम ’ ही हैं. आगे समझिए कि पैसा क्या है. पैसा असल में चंद कागज़ के या धातु के टुकड़े नहीं हैं. पैसा एक व्यक्ति की शारीरिक और दिमागी मेहनत है , जिसे हमने कागज़ या धातु के टुकड़ों के रूप में स्वीकृत किया. अब जैसे घर चलाने के लिए पैसा चाहिए , वैसे ही सरकारी तन्त्र चलाने के लिए पैसा चाहिए. बिलकुल सही बात है. सरकार को हम ने हक़ दिया है कि वो हम से टैक्स के रूप में वो पैसा ले सकती है. और जो व्यक्ति टैक्स दे वो इमानदार , जो न दे वो बे-ईमान. सही है न. लेकिन एक पेच है! सरकार हमने बनाई. बल्कि परिभाषा के हिसाब से सरकार हम ही हैं. सरकारी अमले में जो भी लोग हैं, चाहे वो चुने गए नेता हों, चाहे सरकारी नौकर वो हमारी ही सेवा के लिए हैं. कहते भी है पब्लिक सर्वेंट. यानि पब्लिक का नौकर.  फिर से समझ लीजिये सिद्धान्त: मालिक जनता है और नौकर ये नेतागण हैं ये सरकारी लोग हैं. लेकिन असल में ...