Posts
Showing posts from October, 2017
शब्द
- Get link
- X
- Other Apps
"अरे भाई, एक सेल्फी खींचना मेरी." "समय चार बजे, तिथी बीस, नवम्बर दो हज़ार सत्रह को हमारे यहाँ मुख्य अतिथि होंगे श्रीमान महादेव प्रसाद." "हमारे इलाके की MCD चेयरमैन चुनी गईं श्रीमति बिमला देवी." "प्रतिभा पाटिल हमारी राष्ट्रपति थीं." सेल्फी सेल्फ यानि खुद की खुद ही लेना है. लेना मतलब फोटो. मैं कोई हस्त-मैथुन की बात नहीं कर रहा. तो कोई और कैसे ले सकता है? कोई और लेगा तो फिर यह सेल्फी कैसे होगी? है कि नहीं? "एक सेल्फी खींचना मेरी." इडियट! तिथी छोड़ो, समय तक निश्चित है, फिर भी 'अतिथि'! स्त्री हैं फिर भी "चेयरमैन"! और स्त्री हैं फिर भी पति! 'चेयर-वुमन' कहने में शर्म आती है तो शब्द प्रयोग होता है चेयर-पर्सन. लेकिन 'राष्ट्र-पत्नी' तो अभी कोई शब्द घड़ा ही नहीं गया. क्या करें? हाय-हाय ये मज़बूरी. राष्ट्र का पति कोई हो जाये, यह तो बरदाश्त है, लेकिन पत्नी! यह तो शोचनीय, शौचनीय है. कैसे शब्दों का उल्ट-पुलट प्रयोग करते हैं हम, ये कुछ मिसाल हैं. बहुत पहले एक नाटक देखा था बॉबी ...
राजनीति का कूड़ा सफाई का ढंग
- Get link
- X
- Other Apps
मिसाल:----आपको पता है डाक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील को प्रचार करना मना है चूँकि ऐसा माना जाता है कि ये लोग सिर्फ अपनी काबलियत के दम पर ही काम पाएं न कि प्रचार करके. चूँकि इनके हाथ में लोगों के जीवन के बेहद नाज़ुक फैसले होते हैं. सो कोई घटिया डाक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील पैसे के दम पर प्रचार कर के किसी का बेड़ा-गर्क न कर दे. पॉइंट:--- क्या हर राजनेता का चुनाव भी बिना प्रचार के नहीं होना चाहिए. बस अपना प्लान पेश करें, कैसे क्रियान्वित करेंगे यह पेश करें. और चुन लिए जायें. असल में चुनाव प्लान का ही होना चाहिए. व्यक्ति चुना जाए, लेकिन व्यक्ति गौण हो, प्लान प्रत्यक्ष हो, प्लान प्रमुख हो. एक ही झटके में राजनीति का कूड़ा साफ़.
सनातन
- Get link
- X
- Other Apps
सनातन सिर्फ यह है कि कुछ भी सनातन नहीं है. Change is the only Constant. सनातन, तथा-कथित सनातन अगर वाकई सनातन है तो open डिबेट मन्दिरों में आयोजित करे, चाहे वो राम के खिलाफ हो, चाहे पक्ष में...चाहे कृष्ण को खंडित करे, चाहे मंडित....चाहे कोई पंडित हो चाहे खंडित ....सनातन को क्या परवा?.....बदलने दो अगर कुछ बदलाव आता है तो...Change is the only Constant.
मीठे-2 फॉरवर्डड मेसेज
- Get link
- X
- Other Apps
बिटिया पूछ रही थी, "आजकल व्हाट्स-एप्प और फेसबुक पर इतनी मीठी-मीठी परोपकार और पारस्परिक भाईचारे की बातें लोग भेजते हैं एक-दूसरे को लेकिन इस सब से असल ज़िन्दगी में तो कोई फर्क आया लगता नहीं. लोग खूब चालाकी, होशियारी, धोखा-धड़ी करते हैं. ऐसा क्यों है?" "बिटिया, लोगों के फैसले उनकी ज़रूरतें तय करती हैं न कि इस तरह के फॉरवर्ड किये गए मीठे मेसेज. करना उन्होंने वही है जिससे उनकी ज़रूरत पूरी होती हो. और ज़रूरतें बिना चालबाज़ी किये पूरी हो जायें, वैसा समाज अभी तो बनने नहीं जा रहा, चूँकि वैसे समाज के लिए बदलाव की प्रक्रिया को समझने तक की भी औकात नहीं इन फसबुकियों और व्हाट्स-एप्पियों की." "तो फिर आप क्यों लिखते हो सोशल मीडिया पर?" "वैसे ही. शायद कोई चमत्कार हो जाए."
पटाखे
- Get link
- X
- Other Apps
पटाखे बंद होना स्वागत-योग्य है. पटाखों का हिन्दू धर्म से-दीवाली से कोई लेना-देना है ही नहीं. और हो भी तब भी कोई भी बकवास चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो, बेहिचक बंद कर दी जानी चाहिए. मुझे याद है, जब बड़ी बिटिया पैदा हुई तो उसकी पहली दीवाली पर मैं उसे गोदी लेके बैठा था. यूरेका फोर्ब्स का एयर प्यूरी-फायर नया-नया लिया था. बब्बू के कानों को ढक रखा था अपने हाथों से और एयर प्यूरी-फायर चला रखा था. बब्बू अब इतनी समझदार हो चुकी है कि पटाखों को सिरे से बकवास मानती है. अब छोटी वाली को खांसी रहती है. बाजारी खाना भी ज़िम्मेदार है, कितना ही मना करो बच्चे गंद-मंद खा ही लेते हैं. लेकिन एक वजह दिल्ली की खराब हवा भी समझता हूँ. मुझे ख़ुशी है कि पटाखे नहीं मिल रहे. और उम्मीद करता हूँ कि न मिलें और दीवाली बिना धुयें-धक्कड़ के बीते. कोर्ट को धन्य-वाद. जज साहेब को मेरे बच्चों की तरफ से बेहद प्यारभरा नमन. वरना इस मुल्क में राजनेताओं के हाथों तो कुछ भी अच्छा होने से रहा. कैसे हो सकता है? जो आते ही पागल भीड़ का फायदा उठा कर हैं, वो उस भीड़ के पागल-पन के खिलाफ कोई भी फैसला कैसे कर सकते हैं? सो मौजदा हाल...
जय शाह बनाम 'द वायर' केस
- Get link
- X
- Other Apps
अस्सी करोड़ रुपये के आरोप के खिलाफ सौ करोड़ रुपये का मान-हानि का मुकद्दमा! आप तो अपनी औकात अस्सी करोड़ रुपये भी नहीं मानते तो फिर सौ करोड़ रुपये का मुकद्दमा कैसे? चलो अस्सी करोड़ रुपये मान भी लें तो भी सौ करोड़ का मुकद्दमा कैसे कर दिए भइये? 20 करोड़ का घोटाला तो यहीं कर दिए हो. पक्का हारोगे, बुरी तरह से. मुकद्दमा करना कोई तीर मारना नहीं होता और तुमने तो वैसे ही तुक्का मारा है.... वो क्या नाम है तुम्हारा अमित शाह के बेटे जी.
सरकार और कोर्ट
- Get link
- X
- Other Apps
"जब इस देश में सारे फैसले कोर्ट को ही करने है- जैसे के रोहिंग्या मुसलमान हिंदुस्तान में रहेंगे या नहीं रहेंगे, कश्मीर में सेना पैलेट गन चलाएगी या कौनसा गन चलाएगी, दिवाली पर पटाखे चलाएंगे या नहीं चलाएंगे, मूर्ति विसर्जन होगा कि नहीं होगा, दही हांडी की ऊंचाई कितनी होगी, राम मंदिर बनेगा या नहीं बनेगा तो फिर यह वोट डाल कर सरकार बनाने की क्या जरूरत है कोर्ट से ही पूछ लिया करो - कि प्रधानमंत्री भी कौन बनाना है...?" Ambrish Shrivastava जी ने लिखा है. मैंने जवाब दिया है, "सरकार की शक्ति और कम होनी चाहिए......कोर्ट, सीबीआई, इलेक्शन कमीशन जैसी ही स्वतंत्र संस्थाएं होनी चाहिए...जनतंत्र का यही अर्थ है....वरना यह पूरी तरह से डिक्टेटरशिप हो जाएगी....और प्रधान-मंत्री कौन तो नहीं लेकिन कैसे बने इस पर निश्चित ही कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए....यह जिस तरह से 'पैसा फेंक तमाशा देख' चलता है चुनाव में, यह तो लोकतंत्र नहीं लोक के खिलाफ षड्यंत्र है..."
मोदी के मुकाबला का सही ढंग
- Get link
- X
- Other Apps
अगर आप चाहते हैं कि भाजपा को अगले चुनाव में पिछली बार जैसी जीत न मिल पाए तो एक तरीका है.....आपको मोदी भक्तों (चाहे असली-चाहे नकली) द्वारा फैलाए गए तर्कों-कुतर्कों के खिलाफ बेहद शालीनता से, तर्कों से, आंकड़ों से, सबूतों से भरी पोस्ट सोशल मीडिया पर फैलानी चाहिए. संघ-भक्तों से कैसे भी विवाद में मत पड़िए, कुछ फायदा नहीं, मात्र समय और ऊर्जा खराब होगी. बस इनकी पोस्टों को इन्हीं के खिलाफ प्रयोग कीजिये. लेकिन आपको यह सब करने का हक़ तभी है जब आप किसी भी और धर्म के ठेकेदार न हों. यदि आप मुस्लिम हैं, सिक्ख हैं, ईसाई हैं या फिर कोई भी और धर्मो को कस के पकड़े हैं तो फिर रहने दीजिये क्यों कि यह सलाह सिर्फ उनके लिए है, जिनका धर्म-कर्म क्रिटिकल थिंकिंग, तार्किक वैचारिकता फैलाना है न कि कोई ख़ास धर्म-ध्वजा फहराना. यह सलाह उनके लिए है जो संघ-भक्ति ही नहीं सब तरह की भक्ति-पैरोकारी के खिलाफ बोलने-लिखने की हिम्मत रखते हों. यह सलाह उनके लिए है जो लिख सके कि इस्लाम, सिक्खी, ईसाईयत और अन्य सब तरह के तथा-कथित धर्म इंसानी दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति हर लेते हैं चूँकि हर धर्म इंसानी सोच को किसी किताब या ...
नई राजनीति
- Get link
- X
- Other Apps
मिसाल:----आपको पता है डाक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील को प्रचार करना मना है चूँकि ऐसा माना जाता है कि ये लोग सिर्फ अपनी काबलियत के दम पर ही काम पाएं न कि प्रचार करके. चूँकि इनके हाथ में लोगों के जीवन के बेहद नाज़ुक फैसले होते हैं. सो कोई घटिया डाक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील पैसे के दम पर प्रचार कर के किसी का बेड़ा-गर्क न कर दे. पॉइंट:--- क्या हर राजनेता का चुनाव भी बिना प्रचार के नहीं होना चाहिए. बस अपना प्लान पेश करें, कैसे क्रियान्वित करेंगे यह पेश करें. और चुन लिए जायें. असल में चुनाव प्लान का ही होना चाहिए. व्यक्ति चुना जाए, लेकिन व्यक्ति गौण हो, प्लान प्रत्यक्ष हो, प्लान प्रमुख हो. एक ही झटके में राजनीति का कूड़ा साफ़.
भारत माता ध्वस्त होनी चाहिए
- Get link
- X
- Other Apps
संघी सोच है. भारत माता की जय! असल में भारत माता ध्वस्त होनी चाहिए और चीन माता भी और जापान माता भी और अमेरिका माता भी. और इस तरह की बाकी सब माता. जब तक ये सब माता विदा न होंगी, 'वसुधैव कुटुम्बकम'-'विश्व बंधुत्व' ये शब्द बस शब्द ही रहेंगे. ये माता बीमारियाँ हैं. आपको शायद ध्यान हो, हमारे यहाँ तो चेचक की बीमारी को भी माता समझा जाता था. इस भारत माता को बीमारी पता नहीं कब समझेंगे? दीवारें. हमारे घर की दीवारें ही तो हैं, जो मुझ में और आप में एक गैप बनाये रखती हैं. वरना फर्क क्या है, मुझ में और आप में? ये घर, मोहल्ला, प्रदेश, देश सब दीवारें हैं. सब दीवारें ध्वस्त होनी चाहियें. धरती माता की जय हो जाएगी. कल हमारा यह कुटुम्ब और ग्रहों-नक्षत्रों तक फ़ैल सकता है. उनकी भी जय. लेकिन हम तो यही सोच छोड़ के राज़ी नहीं कि कोई हिन्दू-भूमि है और कोई पाकिस्तान है. जैसे धरती माता ने रजिस्ट्री कर के दे रखी हो अलग-अलग. संघ की शाखा में रोज़ प्रार्थना गाई जाती है, जिसमें एक लाइन हैं, "त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्." हे हिन्दू-भूमि तूने मेरे सुख में वृद्धि की है. और उन्होंने त...
अमिताभ बच्चन जन्म-दिवस स्पेशल
- Get link
- X
- Other Apps
लानत है, उस मुल्क कि सभ्यता संस्कृति पे, जहाँ सदी के महानायक के रूप में ऐसे व्यक्ति को प्रतिबिम्बित किया जाता रहा है ---- 1) जिन्होंने ने फिल्मों में काम करने के अलावा लगभग कुछ नहीं किया...अरे यदि मानदंड फिल्मों में काम ही रखना था तो बेहतर था गुरुदत्त को या आम़िर खान जैसे व्यक्ति को महानायक मान लेते.....कम से कम इन लोगों ने समाज को अपनी फिल्मों के ज़रिये बहुत कुछ सार्थक देने का प्रयास तो किया ....अमिताभ की ज्यदातर फिल्मों में दिखाया क्या गया...एक एंग्री यंग मैन .....जो समाज की बुराईयों से लड़ता है शरीर के जोर पे.....सब बकवास ....शरीर नहीं विचार के जोर से समाज की बुराई खतम की जा सकती है..और जिन कलाकारों ने यह सब दिखाने का प्रयास किया, वो चले गए नेपथ्य में...उनकी फिल्मों को आर्ट फिल्में, बोर फिल्में कह के ठुकरा दिया गया.....समाज को कचरा चाहिए था..अमिताभ की फिल्मों ने कचरा परोस दिया.....काहे की महानता? कला में क्या बलराज साहनी, ॐ पूरी, नसीरुद्दीन शाह किसी से कम रहे हैं....अगर सिनेमा के महानायक की ही बात कर लें तो भी अमिताभ मात्र कचरा सिनेमा के ही महानायक हैं. कुछ फिल्में अच्छी की हैं,...
भगवान
- Get link
- X
- Other Apps
'भगवान' शब्द का संधि-विच्छेद करें तो यह है भग+वान. भग वाला. योनि वाला. योनि, जहाँ से सब जन्म लेते हैं. ध्यान दीजिये, 'भगवान' शब्द पुरुषत्व और स्त्रीत्व दोनों लिए है. हम भगवान शब्द को पुलिंग की तरह प्रयोग करते हैं. लेकिन वो 'पु-लिंग' है तो 'स्त्री-भग' भी है. वो 'भगवान' है. वो अर्द्ध-नारीश्वर है. वो 'भगवान' है. वो शून्य है अब है तो फिर शून्य कैसे और शून्य तो फिर है कैसे लेकिन वो दोनों कबीर समझायें तो उलटबांसी हो जाए गोरख समझायें तो गोरख धंधा हो जाए वो निराकार है और साकार भी साकार में निराकार और निराकार में साकार वो प्रभु वो स्वयम्भु वो कर्ता और कृति भी वो नृत्य और नर्तकी भी वो अभिनय और अभिनेता भी वो तुम भी और वो मैं भी बस वो ...वो ...वो ...वो मैं नास्तिक नहीं हूँ......हाँ, लेकिन जिस तरह आस्तिकता समझी जाती है, उन अर्थों में आस्तिक भी नहीं हूँ. मेरे लिए हमारा समाज ही भगवान है, हमारी धरती ही भगवती है, हमारा ब्रह्मांड ही ब्रह्मा है. मैं कॉस्मिक हूँ. मैं तुषार कॉस्मिक हूँ. केवल कुछ प्रश्न और सभी धर्म और इन धर्मों पर आधारित संस्कृतियाँ धराशायी ...
होय वही जो राम रची राखा/ जो तुध भावे साईं भलीकार/ तेरा भाना मीठा लागे/ जो होता है अल्लाह की रजा में होता है
- Get link
- X
- Other Apps
कहानी सुनी-पढ़ी होगी आपने कि एक राजा और मंत्री शिकार खेलते हुए चोट-ग्रस्त हो जाते हैं. राजा बड़ा परेशान हो जाता है. लेकिन मंत्री कहता है, जो होता है ईश्वर भले के लिए करता है. फिर उन्हें आदिवासी पकड़ लेते हैं और बलि देने लगते हैं. तो राजा बड़ा परेशान होता है. मंत्री फिर भी शांत रहता है. धीमी आवाज़ में राजा को कहता है, जो करता है ईश्वर अच्छा ही करता है. राजा परेशान. आग तेज़ की जा रही है, बस भूने ही जाने वाले हैं वो दोनों और मंत्री को सब सही लग रहा है? भूने जाने से पहले दोनों के कपड़े उतारे जाते हैं तो दोनों चोटिल दीखते हैं. दोनों को छोड़ दिया जाता है, चूँकि घायल व्यक्ति को बली न देने की परम्परा थी उन आदिवासियों की. घर को लौटते हुए मंत्री कहता है राजा से, " राजा साहेब, मैं न कहता था, ईश्वर जो करता है सही ही करता है." राजा सहमति में सर हिलाता है. लेकिन मेरा सर असहमति में हिल रहा है. मेरा मानना है कि इन्सान तक आते-आते वो अल्लाह, वाहेगुर, राम अपना दखल छोड़ देता है. इन्सान को उसने अक्ल दी है, अपने क्रिया-कलापों की फ्रीडम दी है. और फि...
हमारी दिवाली-हमारे पटाखे
- Get link
- X
- Other Apps
बड़ा दुखित हैं मेरे हिन्दू वीर. कोर्ट ने पटाखों पर बैन लगा दिया दिवाली पर. धर्म खतरे में आ गया. धर्मों रक्षति रक्षतः. व्हाट्स-एप्प और फेसबुक का जम कर प्रयोग हो रहा है, हिन्दुओं को जगाने में. मैंने सुना था कि लोगों ने ख़ुशी से घी के दीपक जलाए थे राम जी वापिस आये थे तो. दीपावली शब्द का अर्थ ही है दीपों की कतार. लेकिन पटाखे भी चलाये थे, यह तो मैंने नहीं सुना. शायद आविष्कृत भी नहीं हुए थे. चीन ने आतिश-बाज़ी का आविष्कार किया था शायद. नहीं, लेकिन यह कैसे हो सकता है? हम तो पुष्पक विमान, एटम बम तक खोज चुके थे. निश्चित ही आतिश-बाज़ी भी हमारी खोज है. पटाखे निश्चित ही हम ने चलाए थे, जब राम जी लौटे थे तो. लेकिन वाल्मीकि रामायण तो कहती है कि राम के आगमन पर सारा ताम-झाम भरत की आज्ञा से शत्रुघ्न ने करवाया था, लेकिन उसमें पटाखों का तो कोई ज़िक्र नहीं है. रास्तों के खड्डे भरे गए थे, उन पर पानी छिड़का गया था, फूल बिखेरे गए थे. घरों पर झंडे लगाए गए थे और स्वागत में गण्य-मान्य लोगों के साथ गणिकाएं (वेश्याएँ) तक खड़ी की गयीं थी राम के स्वागत में. सो यह बकवास भूल जायें कि लोग राम के आगमन पर खुश थे और स्वय...