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Showing posts from April, 2017
डॉक्टर, वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट... प्रोफेशनल कहे जाते हैं....मतलब 'धंधे-वाले'.'प्रोफेशनल'. अब मत कहना किसी महिला को कि वो 'धंधे वाली' है चूँकि अधिकारिक तौर पर सिर्फ डॉक्टर, वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट ही 'धंधे वाले' हैं, 'प्रोफेशनल' हैं.

टके दी बूढी ते आना सिर मुनाई

अभी केजरीवाल से जुड़ा एक मुद्दा हवा में है. मुद्दा है कि उन्होंने कोई नब्बे करोड़ से ज़्यादा रुपये राजनीतिक मशहूरी में खर्च कर दिए, जो उनसे वसूले जाने चाहियें. उनका कहना है कि ऐसा सभी राज्य करते हैं और उन्होंने तो बाकी राज्यों से बहुत कम खर्च किये हैं. मेरा पॉइंट यह नहीं है कि किसने कितने खर्च किये. कम किये, ज़्यादा किये. वसूली होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए. न. मेरा पॉइंट यह है ही नहीं. मेरा पॉइंट है कि किये ही क्यूँ? पब्लिक का पैसा पब्लिक के कामों पर खर्च होना चाहिए न कि किये गए कामों को बताने पर. आपको अलग से क्यूँ बताना पब्लिक को? आपका काम खुद नहीं बोलता क्या? देवी शकीरा तो बोलती हैं कि हिप्स भी बोलते हैं और झूठ नहीं बोलते, सच बोलते हैं और आपको लगता है कि आपके काम जिनसे करोड़ों-अरबों रुपये का पब्लिक को फायदा पहुंचा हो, वो भी नहीं बोलते. आपको लगता है कि उसके लिए अलग से करोड़ों-अरबों रूपये खर्च करने की ज़रूरत है, यह बताने को कि पब्लिक को कोई फायदा पहुंचा है. वैरी गुड. पंजाबी की कहावत है एक. टके दी बूढी ते आना सिर मुनाई.  एक और कहावत है. दाढ़ी नालों मुच्छां वध गईयाँ. मतलब खुद ...

सच-झूठ/ झूठ-सच

आप झूठ कभी सौ प्रतिशत बोल ही नहीं सकते. उसमें भी आपको सच तो मिलाना ही पड़ता है. सबसे सफ़ल झूठा वो होता है, जो सच बोलता है. मतलब सच ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करते हुए झूठ बोलता है. शातिर आदमी सच-झूठ का घाल-मेल इस तरह से करता है कि जो वो चाहे, वो ही नज़र आये और यही मिलावट अनाड़ी इस तरह से करता है कि जो वो नहीं दिखाना चाहता, वो दिख जाता है. मैं अक्सर कहता हूँ कि ढोल अपनी पोल खुद खोल देता है. बजता घना है. थोथा चना बाजे घना. लेकिन उस बजने में ही अपना राज़-फ़ाश कर जाता है. समझ-दार व्यक्ति वो है जो सच और झूठ के इस घाल-मेल में से हंस की तरह मोती चुगता है, बाकी छोड़ देता है. हंसा तो मोती चुगे.....
ये जो किसान अपना रोना रो रहे हैं, इनको कहना है, "अबे ओये, जब बच्चों की लाइन लगा रहे थे, तब नहीं सोचा कि यही बच्चे कल तुम्हारी धरती माता के इत्ते टुकड़े करेंगे कि वो बेचारी इनमें से किसी का भी पेट न भर पायेगी. इडियट. ठेका नहीं लिया किसी ने तुम्हारा."
कल की उठी 'आम आदमी पार्टी' ने दिल्ली का मुख्यमंत्री दिया, MCD में 48 councillor दिए, पंजाब में 4 MP दिए, 21 विधायक दिए, इसे हार कहते हैं या जीत? सन्दर्भ के लिए ध्यान दें कि भाजपा का जन्मदाता संघ नब्बे साल पहले बना था.

धनतंत्र से जनतंत्र के सफर का सूत्र

डॉक्टर, वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट... प्रोफेशनल कहे जाते हैं....मतलब 'धंधे-बाज़'.'प्रोफेशनल'. अब मत कहना किसी महिला को कि वो 'धंधे वाली' चूँकि अधिकारिक तौर पर सिर्फ डॉक्टर, वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट ही 'धंधे वाले' हैं, 'प्रोफेशनल' हैं. खैर, मेरा पॉइंट यह है कि इनको अपने धंधे की मशहूरी करना कानूनन मना है. किसलिए? इसलिए कि काबलियत न होते हुए भी पैसे के दम पर इनमें से कोई मशहूरी कर-करा के लोगों को बेवकूफ न बना पाए. इसलिए कि ये लोग आम-जन के बहुत ही सेंसिटिव मामलों को डील करते हैं. इसलिए कि इनमें से अगर कोई आगे बढ़े तो मात्र "माउथ टू माउथ" रेफरेंस की वजह से और यह रेफरेंस तभी मिलता है जब किसी में काबलियत हो और उस काबलियत का फायदा रेफरेंस देने वाले को मिला हो. अभी केजरीवाल से जुड़ा एक मुद्दा हवा में है. मुद्दा है कि उन्होंने को नब्बे करोड़ से ज़्यादा रुपये राजनीतिक मशहूरी में खर्च कर दिए, जो उनसे वसूले जाने चाहियें. उनका कहना है कि ऐसा सभी राज्य करते हैं और उन्होंने तो बाकी राज्यों से बहुत कम खर्च किये हैं. मेरा पॉइंट यह नहीं है...

देवी शकीरा जी के शर्करा शब्द

देवी शकीरा पहले ही कह चुकी हैं. हिप्स झूठ नहीं बोलते. हिप्स क्या शरीर का कोई भी अंग-प्रत्यंग झूठ नहीं बोलता. तभी तो स्किन टाइट कपड़े पहने जाते हैं. कपड़ों में भी शरीर दिखाने की चाह. नग्न होने की चाह. हिप्स झूठ नहीं बोलते, चाहे शकीरा के हों, चाहे किसी के भी हों. अमेरिकी कैदी अपने पायजामे नीचे सरका देते थे, ताकि बिन बोले ही देखने वाले समझ जाएँ कि उनकी सहमति है सेक्स सहभागिता में. अब आज के नौजवान और नौजवानियाँ जॉकी का कच्छा दिखाते हुए नीचे सरकी अपनी पतलून से क्या मेसेज देना चाहते हैं, वो ही जानें, बस गुज़ारिश इतनी सी है कि शकीरा जी के शर्करा शब्द याद रखें. नारी शक्ति ऐलान करती है कि उनका हक़ है जैसे मर्ज़ी कपडे पहनें. बिलकुल पहनें भई. यह तो वैसे भी महावीर का मुल्क है, जिनके वस्त्र आसमान ही था. दिगम्बर. यह तो नागा बाबाओं का मुल्क है. यह तो कश्मीर की लल्ला का मुल्क है. नग्न संत. यह तो सदियों से काम-क्रीडा में लिप्त नग्न मूर्तियों से पटे खजुराहो के मन्दिरों का मुल्क है. यह तो काम के सूत्र लिखने वाले वात्स्यायन का मुल्क है. ठीक मर्ज़ी है आपकी, जैसे मर्ज़ी कपड़े पहनें, या न भी पहनें. मेरा तो प...
'केजरीवाल का ओड-इवन' और 'मोदी की नोटबंदी', दोनों इस दौर के असफ़ल प्रशासनिक प्रयोग हैं.

भावना मैडम को आहत करें

कुछ भी कहो, लिखो, बको, भौंको कोई परवा नहीं लेकिन इनकी पवित्र सी, सौम्य सी भावना मैडम आहत नहीं होनी चाहिए. इनके धर्म, मज़हब, पन्थ, दीन पर अटैक नहीं होना चाहिए और इनके गुरु महाराज, पैगम्बर, अवतार तो इंसानी आलोचना से परे की चीज़ हैं. आपको उनके हर कथन, हर करम पर मुंडी 'हाँ' में ही हिलानी है. अगर आपने ज़र्रा भी इनकी आलोचना की तो इनकी वो जो हैं न, सौम्य सी भावना जी, उनको चोट लग जाती है. लेकिन मैं कहता हूँ कि अगर आप इनकी भावना जी को आहत करने की हिम्मत नहीं करते तो आपका लेखन, सोचन सब कूड़ा है, करकट है, कायरता है, बुजदिली है, चूँकि यही भावना मैडम पूरी दुनिया में गंद फैलाएं हैं. कुछ भी कहो, लिखो, बको, भौंको कोई परवा नहीं लेकिन इनकी पवित्र सी, सौम्य सी भावना मैडम आहत ज़रूर होनी चाहिए.

गज़ब ढंग बिज़नैस के

कार बनाने वाली कम्पनियों को लगता है कि पिछली सीट पर बैठने वालों की टांगों की लम्बाई बैठते ही स्वयमेव छोटी हो जाती हैं. गोलगप्पे वाले भैया को लगता है कि उसके देते ही गोलगप्पा आप हज़म कर लेते हैं सो वो दूसरा गोलगप्पा पहले वाले के साथ ही तैयार रखता है. और नेता जी को लगता है कि वो कुछ भी करें, लेकिन चुनावी बाज़ी पोस्टरबाजी, नारेबाज़ी, भाषण-बाज़ी से जीती जा सकती है. बिज़नैस करने का अपना-अपना ढंग है.
This is a misconception that all Chinese look alike, another misconception is this that they produce inferior quality products. First point, all Sikhs look alike to the foreign people, all black people look alike to the white people. So nothing special about Chinese. Second point, Chinese produce all kinda product, what if your importers import inferior products only?
ऋषियों की तपस्या भंग करने के लिए उर्वशी, मेनका जैसी अप्सराएं बनीं थीं और डाइटिंग करते लोगों की तपस्या भंग करने के लिए नाना और दादा प्रकार के व्यंजन बने हैं.

कौन है पैगम्बर ,गुरु, अवतार

हर वो बात जिससे दुनिया में बेहतरी आती हो आयत है, धुर की बाणी है, भगवत गीता है और ऐसी बात करने वाला हर शख्स  पैगम्बर है, गुरु है, अवतार है और  जो यह बात न समझे वो उल्लू नहीं है, गधा नहीं है, बंदर नहीं है बस  इडियट है.

राजनीति में पदार्पण का विचार

कांटे को निकालने के लिए काँटा प्रयोग करना होता है कहते हैं कि कीचड़ में पत्थर मारोगे तो छींट खुद पर भी पडेंगी. लेकिन कीचड़ को साफ़ करने के लिए कीचड़ में उतरना पड़ता है दीवार को साफ़ रखने के लिए "यहाँ न थूकें" जितना लिख कर खराब करना ही पड़ता है. करना पड़ता है. इसे विज्ञान की भाषा में 'नेसेसरी ईविल' कहते हैं बुराई है लेकिन ज़रूरी बुराई है. नेसेसरी ईविल. जैसे फ्रिक्शन. यानि घर्षण. इससे गति में बाधा पड़ती है. जितनी ज़्यादा होगी फ्रिक्शन, उतनी गति घटती जायेगी लेकिन अगर फ्रिक्शन जीरो होगी तो गति बिलकुल नहीं होगी. जैसे मानो फर्श पर तेल गिरा हो, ऐसे चिकने तल पर आगे बढ़ना लगभग असम्भव हो जाता है. लेकिन अगर किसी सरफेस पर बहुत पत्थर हों, खड्डे हों तो भी चलना मुश्किल हो जाता है.नेसेसरी ईविल. सोचता हूँ राजनीति, जिसमें कोई नीति नहीं, उसमें चला ही जाऊं. नहीं?

MCD

मेरी गली में जो सफाई कर्मचारी है, उसने आगे लड़के रखे हैं, कम सैलरी पर, वो उठाते हैं, कूड़ा, जितना भी उठाते हैं. MCD के काम देखते हुए इनके वेतन बढ़ाने नहीं घटाने चाहियें...वैसे तो लगभग सभी सरकारी कर्मचारियों के वेतन बहुत ज़्यादा हो चुके हैं, छुट्टियाँ बहुत ज़्यादा हैं, भत्ते बहुत ज़्यादा हैं और इनके कामों पर कोई अंकुश है नहीं, तभी तो हर कोई सरकारी नौकरी के लिए मरा जाता है.

भाजपा ने जगह-जगह ये बड़े होर्डिंग लगाये हैं, MCD की उपलब्धियां लिखी हैं. एक भी बोर्ड ऐसा नहीं जिसपे लिखा हो कि हमने दिल्ली की सफाई की है या करेंगे.

Political Correctness

अभी-अभी एक पोस्ट नाज़िल हुई है मुझ पर. हाज़िर है. "एक शब्द-संधि है "Political Correctness". इसका अर्थ समझने लायक है, मतलब व्यक्ति जिसे सही कहता है या जिसे गलत कहता है, वो यह इसलिए नहीं कहता कि उसे वो सही लगता है या गलत लगता है. नहीं, ऐसा वो इसलिए कहता है कि राजनैतिक तौर पर ऐसा कहना उसके लिए सही है, करेक्ट है, फायदेमंद है. Political Correctness. भारत में यह टर्म बहुत कम प्रयोग होती है, होनी चाहिए, शातिरों को एक्सपोज़ करती है यह टर्म. दूसरी टर्म है "Social Correctness". इसका मतलब आप खुद ही समझ चुके होंगे. इसे भी प्रयोग होना चाहिए."

क्यों वोट दें "आप " को, दिल्ली MCD चुनाव में?

नमस्कार मित्रो, मैं तुषार कॉस्मिक. पिछले ऑडियो में मैंने बताया था कि क्यूँ आप सबको वोट भाजपा या कांग्रेस को न देकर सिर्फ आम आदमी पार्टी को ही देना चाहिए. इस ऑडियो में बात आगे बढ़ाता हूँ लेकिन स्थानीय मुद्दों को मद्दे-नज़र रखते हुए. मैं पश्चिम विहार, A-4 में रहता हूँ. हमारे पास एक park है राजीव गांधी park. पहले तो मुझे park का यह नाम ही नहीं जमता. गांधी परिवार के अलावा भी अनेक लोगों का योगदान है इस मुल्क को आगे बढ़ाने में. लेकिन एअरपोर्ट तो इंदिरा गांधी, मेट्रो स्टेशन तो राजीव गांधी, सब तरफ गांधी ही गांधी. यह गांधी की गंध से कब आज़ाद होंगे हम? कब भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, विवेकानन्द, लाला लाजपत रॉय, चित्त्गाँव के मास्टर दा, सी वी रमन, रामानुजन जैसे लोगों के प्रति अपना सम्मान पेश करेंगे? यह एक ही परिवार की गुलामी कब छोडेंगे हम? कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी, उनके पल्ले बस एक ही बात है कि वो गांधी परिवार से हैं. दूसरी कोई योग्यता है क्या इनके पल्ले. योग्यता, जिस के दम पर ये दोनों मुल्क को नेतृत्व दे सकते हैं? कुछ नहीं. खैर, जनवरी, दो ह...

मेरा लेखन ---- नक्कार-खाने की तूती

शुरू-शुरू में प्रियंका त्रिपाठी ने जब मेरा लिखा पढ़ा तो उनको बिलकुल यकीन नहीं हुआ कि यह सब बकवास मैं खुद लिख रहा हूँ. उन्होंने तमाम ढंग से मेरे लिखे को टैली किया, कहाँ से कॉपी मार रहा हूँ? गूगल, फेसबुक सब खंगाल दिया. बहुत मुश्किल से उन्हें मेरी बक-बक करने की क्षमता पर भरोसा हुआ. ऑनलाइन छोड़ दूं तो घर हो या बाहर, मेरे लिखे को कोई टके सेर नहीं पूछता, कोई पढ़ता नहीं, पढ़ता छोड़ो देखता तक नहीं, देखता छोड़ो कोई थूकता तक नहीं, तो भी अपनी पड़ोसन को ज़बरन सुना रहा था एक बार. सुनने के बाद बोलीं, "अच्छा लिखा है भैया, आपने लिखा है यह सब?" मैं उनका मुंह ताकता रहा. अभी-अभी फेसबुक पर कोई भाई लिख रहा था कि फेसबुक पर लिखने से कुछ नहीं होगा. यहाँ भी मित्र लिखते हैं अक्सर,"लिखिए, लेकिन छोटा लिखिए". बिलकुल असहमत हूँ उनकी इस बात से. मैंने तो कल ही लिखा एक पाठक को, कि यदि आपको मेरा लेखन लम्बा लगता है तो आप मेरे लिखे को पढने के हकदार ही नहीं हैं, विदा लीजिये. आप सेक्स करते हैं तो उसे छोटा रखना चाहते हैं या चाहते हैं कि चलता रहे? जब आप छोटा लिखे की आशा करते हैं तो इसका मतलब है, आप...

विचार-योद्धा

मैं कहीं भी अकेला जाऊं, पीछे से घर वाले फ़ोन करते हैं, हर घंटे. क्यूँ? इसलिए कि कहीं मैं किसी से भिड़ तो नहीं गया? बड़ी बिटिया के स्कूल मात्र दो बार गया और दोनों बार लड़ आया, बाद में फैसला दिया गया कि मुझे कभी भी वहां नहीं जाने दिया जायेगा, चूँकि बच्ची वहीं पढ़ानी है. आप मेरा लिखा पढ़ते हैं, निरी लड़ाई है.  भारत इतने मुद्दों से जकड़ा है कि लड़ाई-भिड़ाई तो होगी ही. जब आप व्यवस्था बदलने की कोशिश करेंगे तो पुरानी व्यवस्था आपको सुस्वागतम नहीं कहने वाली. वो तमाम कोशिश करेगी अपने आप को जमाए रखने के लिए.  मेरा ख्याल है कि भिड़ना शुभ संकेत है. भारत को और बहुत लोग चाहियें जो भिड़ सकें. जो भारत की वैचारिक बोझिलता को, अवैज्ञानिकता से भरी बे-वस्था को छिन्न-भिन्न कर सकें. योद्धाओं का सम्मान होता था पहले. आज भी होना चाहिए. आज युद्ध तीर तलवार से नहीं, विचार से होने हैं.  "मैं भी ठीक, तू भी ठीक", किस्म के लोग मात्र मिटटी लौंदे हैं, जिधर मोड़ो, मुड़ने को तैयार.  ये क्या लड़ेंगे? न...न....भारत को लड़ाकों की सख्त ज़रूरत है. योद्धाओं की, विचार-योद्धाओं की, जो अवैज्ञानिकता की ईंट से ईंट ...

असल भारतीयता क्या है

कहा-सुना जाता है कि मनु ने वर्ण-व्यवस्था बनाई. वैसे वर्ण का अर्थ रंग है. तो यह पहला रंग-भेद था शायद. न सिर्फ भेद था, भेद-भाव भी था. ब्राहमण को पूरे समाज के सर पर बिठा दिया. मैं तो हैरान हूँ आज भी मंदिरों में ब्राह्मण खुले-आम कहते हैं कि ब्राह्मण की सेवा की जाए. और जो जातियां, उपजातियां पनपीं, वो सिर्फ ब्राह्मणों ने अपनी सुविधा के लिए अपने यजमानों की मोहरबंदी की है. जैसे ज़मीन बांटते चले जाएँ किसान के बच्चे और अपना हिस्सा अपने-अपने नाम रजिस्ट्री करवाते जाएँ, जैसे लोग अपनी गाय-भैंस पहचानने के लिए गर्म लोहे से इन जानवरों के शरीर दाग देते हैं, वैसे ही ब्राह्मणों के परिवार जैसे बढ़े तो उन्होंने अपनी सुविधा के लिए कि कौन किसका ग्राहक, यह पहचान के लिए लोगों कि उपजातियां और फिर उन उपजातियों की भी उपजातियां घड़ लीं. हरिद्वार चले जाएँ, पण्डे लेकर बैठे हैं पोथे. और कौन किसका यजमान, वो हिसाब जाति, उपजाति से होता है. आज जिसे हिन्दू व्यवस्था कहा जाता है उसमें यह ब्राह्मण व्यवस्था एक धारा रही है न कि एक-मात्र धारा. वाल्मीकि रामायण में जाबालि राम का विरोध करता है तर्कों से, उसे क्या कहेंगे? चार्वाको...

स्कूलों को लूटने वाले गिरोह के 3 मेंबर गिरफ्तार

एक गिरोह पकड़ा गया है, जो स्कूलों को लूटता था. मैं इनके नेक काम के लिए इन्हें दिल से बधाई देना चाहता हूँ. यह रही खबर और लिंक कमेंट बॉक्स में है. "स्कूलों को लूटने वाले गिरोह के 3 मेंबर गिरफ्तार" विशेष संवाददाता, द्वारका 40 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों में रॉबरी और चोरी करने वाले गिरोह के तीन मेंबर गिरफ्तार कर लिए गए। इनके टारगेट पर नेताओं के स्कूल भी रहते थे। एडमिशन के टाइम में इस गिरोह ने मोटी रकम मिलने की उम्मीद में यह वारदातें की। साउथ वेस्ट दिल्ली में पिछले दिनों कई प्राइवेट स्कूलों में चोरी और लूट की वारदातें हुई थी। दिन निकलने से पहले लुटेरे स्कूलों के गार्डों को बंधक बना कर इनके ऑफिस में रखी रकम लूट कर ले गए थे। डीसीपी सुरेंद्र कुमार के मुताबिक, एसीपी ऑपरेंशंस राजेंद्र सिंह की देखरेख में बनाई गई टीम ने इन वारदातों का सुराग लगाया। इंस्पेक्टर रमेश कुमार और एसआई नवीन कुमार की टीम ने तीन मुलजिम गिरफ्तार कर लिए। इनके नाम हैं बबलू, दीपक और सुनील लाला। बबलू और दीपक मजनूं का टीला इलाके में रहते हैं। सुनील बुराड़ी इलाके के संत नगर में रहता है। इन तीनों से स्कूलों से लूटा ग...

प्राइवेट स्कूलों की ईंट से ईंट बजा दो, वो तुम्हारी ज़मीन पर बने हैं

दिल्ली में हूँ, यहाँ फुटों के हिसाब से ज़मीन बिकती है. उस ज़मीन का टॉयलेट भी खरीदने की भी क्षमता नहीं होती स्कूल के मेनेजर की. अरबों रुपये की ज़मीन होती है स्कूल के पास. है, किसी की औकात की ज़मीन खरीद कर चला ले स्कूल?  किसकी है वो ज़मीन? पब्लिक की. आपकी.  यह जो आप शब्द प्रयोग करते हैं न 'सरकारी'. हकीर है यह शब्द. फ़कीर है यह शब्द. 'सरकारी' शब्द से लगता है पब्लिक का तो कोई हक़ ही नहीं इसमें, सब सरकार का है. नहीं. 'पब्लिक' शब्द का प्रयोग कीजिये 'सरकारी' की जगह. 'सरकारी अफसर' नहीं 'पब्लिक सर्वेंट' कहें. 'सरकारी स्कूल' नहीं 'पब्लिक स्कूल' कहें. और यह जो खुद को 'प्राइवेट स्कूल' कहते हैं , ये भी 'पब्लिक स्कूल' हैं, जो पब्लिक की ज़मीन पर चलाए जाते हैं. रवीश कुमार स्कूलों की लूट पर जन-सुनवाई चला रहे हैं पिछले तीन-चार दिन से, लेकिन सरकारी और प्राइवेट और पब्लिक स्कूलों की परिभाषा नहीं समझ पाए, पॉइंट उठाया, लेकिन कौन सरकारी, कौन प्राइवेट, कौन पब्लिक स्कूल, यह नहीं समझ-समझा पाए. असल में स्कूल का सारा धन्धा दान लेकर ...

दिल्ली के नगर निगम चुनाव

नमस्कार मित्रो. अगले चंद मिनटों में क्लियर करता हूँ कि आप को वोट मात्र "आम आदमी पार्टी" को क्यूँ देना चाहिए और क्यूँ भाजपा या कांग्रेस को अपना बेशकीमती वोट नहीं देना चाहिए. बस चंद मिनट. ये चंद मिनट आपके, आपके परिवार और बच्चों की भलाई के लिए सही इन्वेस्टमेंट साबित होंगे मित्रो. एम् सी डी चुनाव हैं. म्युनिसिपल कारपोरेशन. जिसके सबसे अहम कामों में से है एक है, शहर की सफाई. अभी पीछे एक प्रोग्राम देखा, जिसमें बताया गया कि मोहनजोदाड़ो और हडप्पा की खुदाई में आधुनिक कमोड और सीवरेज सिस्टम से मिलता जुलता इंतेज़ाम मिला है. माने सदियों पहले यहाँ गन्दगी निपटाने का इतेजाम किया गया था लेकिन आज उस मुल्क की राजधानी, दिल्ली कूड़े का ढेर बन चुकी है. कौन ज़िम्मेदार है? दिखाया ऐसे जा रहा है, समझाया ऐसे जा रहा है, जैसे गन्दगी के लिए, चिकनगुनिया या डेंगू के लिए केजरीवाल ज़िम्मेदार हों. अरे भाई, जब सफाई का ज़िम्मा उनका है ही नहीं तो वो ज़िम्मेदार कैसे हो गए? दिल्ली में बरसों से MCD में भाजपा है, ज़िम्मा उसका है, ज़िम्मा उसका था. अब पोस्टर लगें हैं भाजपा की तरफ से, लिखा है,“नए चेहरे, नई सोच.” और नए ...