Sunday, 2 April 2017

तुझे तमीज नहीं औरत से बात कैसे करनी है?

ज़रा  झड़प जाए औरत से आदमी... कहती हैं मोहतरमा.. "तुझे तमीज नहीं औरत से बात कैसे करनी है?"

मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जब औरत, आदमी बराबर है तो औरत से बात करने के लिए कोई अलग से तमीज़ क्यूँ होनी चाहिए?

और जिन औरतों को कोई ज़्यादा तमीज़ की दरकार हो उन्हें घर क्यूँ नहीं बैठना चाहिए?

है कि नहीं?

अब समझ आया क्यूँ रिसेप्शन पर स्कूल वाले, अस्पताल वाले, जाली कम्पनी वाले औरतों को, लड़कियों को बैठाते हैं?

ताकि आपके जायज़ तर्क को बदतमीज़ी साबित किया जा सके, ताकि  आप डरें कि औरत है तो कहीं आप पर बलात्कार का आरोप ही न लगा दे. बल से किया गया कार्य. कैसा भी. 

"तमीज नहीं औरत से बात कैसे करनी है?"

वैरी गुड. अरे भई, मुझे  बात ही नहीं करनी ऐसी औरत से, बात छोड़ो शक्ल नहीं देखनी, शक्ल देखनी छोड़ो थूकना तक नहीं ऐसी की शक्ल पर, थूकना छोड़ो.....खैर, छोड़ो, आगे आप खुद्दे समझ गए होंगे.

आदमी बिठाओ न. अब अगर औरत बिठाओगे तो बता दो कौन सा एक्ट, सेक्शन, सब-सेक्शन कहता है  कि आदमी को  ज़्यादा  तमीज़ की ज़रूरत है औरत से बात करने के  लिए आदमी के मुकाबले?

इडियट!

और जब मैं "इडियट" लिखता हूँ तो समझ जाइए उसमें @&^%$#*? सब शामिल होता है.

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