टके दी बूढी ते आना सिर मुनाई


अभी केजरीवाल से जुड़ा एक मुद्दा हवा में है. मुद्दा है कि उन्होंने कोई नब्बे करोड़ से ज़्यादा रुपये राजनीतिक मशहूरी में खर्च कर दिए, जो उनसे वसूले जाने चाहियें. उनका कहना है कि ऐसा सभी राज्य करते हैं और उन्होंने तो बाकी राज्यों से बहुत कम खर्च किये हैं.
मेरा पॉइंट यह नहीं है कि किसने कितने खर्च किये. कम किये, ज़्यादा किये. वसूली होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए. न. मेरा पॉइंट यह है ही नहीं.
मेरा पॉइंट है कि किये ही क्यूँ? पब्लिक का पैसा पब्लिक के कामों पर खर्च होना चाहिए न कि किये गए कामों को बताने पर. आपको अलग से क्यूँ बताना पब्लिक को? आपका काम खुद नहीं बोलता क्या? देवी शकीरा तो बोलती हैं कि हिप्स भी बोलते हैं और झूठ नहीं बोलते, सच बोलते हैं और आपको लगता है कि आपके काम जिनसे करोड़ों-अरबों रुपये का पब्लिक को फायदा पहुंचा हो, वो भी नहीं बोलते. आपको लगता है कि उसके लिए अलग से करोड़ों-अरबों रूपये खर्च करने की ज़रूरत है, यह बताने को कि पब्लिक को कोई फायदा पहुंचा है. वैरी गुड.
पंजाबी की कहावत है एक. टके दी बूढी ते आना सिर मुनाई. 
एक और कहावत है. दाढ़ी नालों मुच्छां वध गईयाँ.
मतलब खुद समझिये, मैं नहीं समझाऊंगा.

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