आप झूठ कभी सौ प्रतिशत बोल ही नहीं सकते. उसमें भी आपको सच तो मिलाना ही पड़ता है.
सबसे सफ़ल झूठा वो होता है, जो सच बोलता है. मतलब सच ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करते हुए झूठ बोलता है.
शातिर आदमी सच-झूठ का घाल-मेल इस तरह से करता है कि जो वो चाहे, वो ही नज़र आये
और
यही मिलावट अनाड़ी इस तरह से करता है कि जो वो नहीं दिखाना चाहता, वो दिख जाता है. मैं अक्सर कहता हूँ कि ढोल अपनी पोल खुद खोल देता है. बजता घना है. थोथा चना बाजे घना. लेकिन उस बजने में ही अपना राज़-फ़ाश कर जाता है.
समझ-दार व्यक्ति वो है जो सच और झूठ के इस घाल-मेल में से हंस की तरह मोती चुगता है, बाकी छोड़ देता है. हंसा तो मोती चुगे.....
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