Sunday, 16 April 2017

क्यों वोट दें "आप " को, दिल्ली MCD चुनाव में?

नमस्कार मित्रो,
मैं तुषार कॉस्मिक.

पिछले ऑडियो में मैंने बताया था कि क्यूँ आप सबको वोट भाजपा या कांग्रेस को न देकर सिर्फ आम आदमी पार्टी को ही देना चाहिए.

इस ऑडियो में बात आगे बढ़ाता हूँ लेकिन स्थानीय मुद्दों को मद्दे-नज़र रखते हुए.

मैं पश्चिम विहार, A-4 में रहता हूँ. हमारे पास एक park है राजीव गांधी park.

पहले तो मुझे park का यह नाम ही नहीं जमता. गांधी परिवार के अलावा भी अनेक लोगों का योगदान है इस मुल्क को आगे बढ़ाने में.

लेकिन एअरपोर्ट तो इंदिरा गांधी, मेट्रो स्टेशन तो राजीव गांधी, सब तरफ गांधी ही गांधी. यह गांधी की गंध से कब आज़ाद होंगे हम?

कब भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, विवेकानन्द, लाला लाजपत रॉय, चित्त्गाँव के मास्टर दा, सी वी रमन, रामानुजन जैसे लोगों के प्रति अपना सम्मान पेश करेंगे? यह एक ही परिवार की गुलामी कब छोडेंगे हम?

कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी, उनके पल्ले बस एक ही बात है कि वो गांधी परिवार से हैं. दूसरी कोई योग्यता है क्या इनके पल्ले. योग्यता, जिस के दम पर ये दोनों मुल्क को नेतृत्व दे सकते हैं? कुछ नहीं.

खैर, जनवरी, दो हजार सोलह में एक ई-मेल किया था मैंने हमारी पार्षद रेनू काम्बोज जी को. जिसमें मैंने इस park के विषय में बिन्दुवार कुछ सुझाव दिए थे. हालांकि नतीजा जीरो आया था लेकिन ई-मेल आज भी मेरे पास ऑन-रिकॉर्ड हैं, कॉपी कोई भी मित्र मुझ से ले सकते हैं.

इस ई-मेल में पहला पॉइंट था कि park में प्ले-ग्राउंड और सिटींग एरिया को अलग-अलग नहीं दिखाया गया है. तो होता यह है कि जहाँ लैंड-स्केपिंग की गई है, वहां लोग-बाग़ बैठते हैं उनका बैठना सही भी है, लेकिन वहीं बच्चे क्रिकेट खेलते हैं, फुटबाल खेलते हैं, तो क्यूँ न आप बोर्ड लगवा दें कि जिससे पता लगे कि खेलने के लिए कौन सा एरिया है और बैठने के लिए कौन सा?

अगला पॉइंट था, park में कुत्ते बहुत होते हैं और तो और स्थानीय लोग भी अपने कुत्ते घुमाते हैं तो पहले तो ऐसे गेट लगाये जा सकते हैं कि जानवर न पार न जा पायें, दूजा कुत्ते न घुमाएं जाएँ, ऐसे बोर्ड भी क्यूँ न लगाये जाएँ?

तीसरा पॉइंट था कि park के एक हिस्से के बीचों-बीच एक सीमेंट का चबूतरा बना है, शायद स्केटिंग के लिए, लेकिन इस चबूतरे की वजह से वो सारा हिस्सा ही ठीक से प्रयोग नहीं हो पाता, वरना park का वो टुकड़ा, एक बड़े मैदान के तौर पर प्रयोग होता, जहाँ फ़ुटबाल, क्रिकेट आदि खेला जा सकता था. और स्केटिंग वहां करता भी नहीं कोई.

पांचवा पॉइंट था, कि लोग देवी-देवता की फोटो-मूर्ती पेड़ों के इर्द-गिर्द विसर्जित करते हैं, मना करो भाई उनको, बोर्ड लगाओ मनाही के, ऐसे park इन कामों के लिए थोड़ा हैं. विसर्जन करें जैसे भी, लेकिन स्थानीय park में नहीं.

छठा पॉइंट था, park में रेगुलर सफाई नहीं है, सफाई करायें. सन्दर्भ के लिए बता दूं कि अभी कुछ दिन पहले तक जहाँ फाइबर का झूला लगा है, वहां कूड़े को ढेर किया जाता था और वहीं कूड़ा जलाया भी जाता था, यह तो था सफाई का हाल.

सातवां पॉइंट था, वाल्किंग के लिए जो ट्रैक बनाया गया है, वहां जो सख्त पत्थर बिछे हैं, वो हटा लिए जाएँ. चूँकि पत्थरीला सरफेस न तो दौड़ने के लिए अच्छा माना जाता है और न ही चलने के लिए. घुटनों, टखनों और अन्य जोड़ों पर कुप्रभाव पड़ता है सख्त तल पर लगातार दौड़ने चलने से. और यह मूर्खता मुल्क भर में चलती है.

इस में चौथा पॉइंट मैंने स्किप किया था जान-बूझ कर. आखिरी में पेश करने को. चौथा पॉइंट park के कोने में बने टॉयलेट को लेकर था. मैंने लिखा कि यह टॉयलेट ऐसा है कि न वहां कोई लाइट का इंतेज़ाम है, न सफाई कर्मचारी है, न पानी का इंतेज़ाम है और यह अलग-थलग सा पड़ा है, जहाँ कोई नहीं जाता.

और अब मुझे पता लगा कि इस टॉयलेट को बनवाने में छ लाख से ज़्यादा खर्च किये गए. rti लगा पता किया है मित्रों ने. वैरी गुड. धेले का नहीं है यह टॉयलेट. आज तक एक भी बन्दा इसे प्रयोग करता मैंने नहीं देखा है. है ही ऐसी बेतुकी जगह कि कोई क्या प्रयोग करेगा? और ज़रूरत भी क्या ऐसे पार्कों में टॉयलेट की. सब तरफ आबादी है सटी हुई, जिसने जाना है टॉयलेट अपने घर जायेगा, यहाँ क्या इतनी मारा-मारी? जहाँ भी बनायेंगे बदबू भरेंगे. इस टॉयलेट की ज़रूरत किसे थी? निश्चित ही यहाँ के वासियों को तो थी नहीं. बाकी आप खुद नतीजा निकालें.

मित्रो, आपका घर पचास गज का हो, सौ गज का हो, एक एक इंच सही प्रयोग हो, एक एक पैसे का सदुपयोग हो, आप प्रयास करते हैं. करते हैं कि नहीं? पंजाबी की कहावत है, “सांझा बाप न रोवे कोई?” यहाँ सांझी ज़मीन है, सांझा पैसा है तो कोई सही डिजाइनिंग नहीं है, कोई वैज्ञानिक समझ नहीं है, बस जहाँ मर्ज़ी landscaping कर दी, जहाँ मर्ज़ी स्केटिंग की जगह बना दी, जहाँ मर्ज़ी टॉयलेट बना दिए, जहाँ मर्ज़ी ये बड़े बड़े बेतुके से गेट खड़े कर दिए, जिनकी कोई उपयोगिता नहीं.

आज भी भाजपा के समय के लगाये लोहे के पुराने झूले टूटे-फूटे पड़े हैं उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं. जनता तो पागल है न उसे दिखाता कहाँ है? भाजपा जो पार्कों में फाइबर के झूले लगाने के होर्डिंग लगवा रही है उसे इस park के पुराने झूलों के दर्शन करवा दिए जाएँ. मामला साफ़ हो जायेगा, किसी को कुछ समझाना नहीं पड़ेगा.

कांग्रेस के एक पार्षद ने तो इस park में चार-पांच फुट की ऊंचाई के पिलरों पर बल्ब लगवा दिए थे. चार हफ्ते नहीं चले वो बल्ब. सब टूट-फूट गए. ज़रा कॉमन सेंस नहीं लगाई. अपने घर के बाहर आप छोड़ दीजिये चार फुट की ऊंचाई पर CFL, कुछ दिन बाद न CFL बचेगा, न होल्डर.

पुरानी बात है, कांग्रेस थी पॉवर में. A-4 फ्लैट्स की एंट्री पर कूड़ेदान हुआ करता था, लोग कूड़े से पहले ही परेशान थे, मोबाइल टॉयलेट और खड़ा करवा दिया लाकर, वहां पर. उस समय वहां झुग्गियां थीं और कांग्रेस के लिए वो वोट-बैंक था. याद रखियेगा कांग्रेस का वह दौर, जो आज कहती है, “अनुभव है उनके पास”. अनुभव दिल्ली को गंद-खाना बनाने का, लूटने का.

सर्विस लेन के खांचे कूड़े से भरे पड़े हैं, व्यक्तिगत खर्चे से साफ़ करवाते हैं लोग. और ऐसा इसलिए है कि कोई सुध लेने वाला नहीं है कि घरों से निकलने वाले मल की सही निकासी हो रही है कि नहीं.

ये जो स्थानीय मुद्दे पेश किये हैं मैंने, ये कोई मेरी ही स्थान के हों ऐसा बिलकुल भी नहीं है. आप जहाँ भी रहते हों, ऐसे ही मुद्दे आपके स्थान के इर्द-गिर्द भी बिखरे होंगे. ये मुद्दे यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं.

और ये मुद्दे काफी हैं साबित करने को कि वोट भाजपा को नहीं जाना चाहिए, वोट कांग्रेस को नहीं जाना चाहिए.

एक और बात, आम आदमी पार्टी का एलान है कि हाउस-टैक्स माफ़ करेंगे. हालाँकि केजरीवाल जी ने बता दिया है कि MCD एक्ट के कौन से सेक्शन के तहत वो ऐसा कर सकते हैं, फिर भी सोशल मीडिया पर चिल्लम-चिल्ली है कि उनके पास पॉवर ही नहीं होगी ऐसा करने की. यह विरोध साबित करता है कि विपक्षियों के दिल में दिल्लीवासियों के लिए ज़रा प्यार, ज़रा दर्द नहीं है. अगर होता तो कहते कि ठीक है, अगर केजरीवाल दिल्ली की जनता को कैसी भी राहत दे पायेंगे तो हम उनका साथ देंगे, साथ देंगे अगर उनके पास पॉवर नहीं भी होगी तो भी, उनको कानूनी तन्त्र-मन्त्र में नहीं उलझायेंगे, जन-तन्त्र की मूल भावना का ख्याल रखेंगे. लेकिन जनता के लिए वाकई प्रेम हो तब न. देश किनसे बनता है? देश-वासियों से. और यदि देश-वासियों से प्रेम नहीं तो  देश-प्रेम का नारा मात्र जुमला है, चुनावी जुमला. और मित्रो, विपक्षियों का देश प्रेम वाकई जुमला है, शिगूफा है, फरेब है, चूँकि विपक्ष चाहता ही नहीं कि दिल्ली की जनता को कोई राहत मिले. याद रखियेगा, इसी विपक्ष ने दिल्ली में कूड़ा-कूड़ा कर दिया, इसी विपक्ष ने दिल्ली में बीमारियाँ फैलायीं, इसी विपक्ष ने आपको केजरीवाल को चुनने की सज़ा दी, आज मौका है, आप अपने वोट की ताकत से इनको सज़ा दें.

तो मित्रो, वोट सिर्फ आम आदमी पार्टी को वोट दीजिये. इनके कैंडिडेट को आज़मा कर देखिये. ये कोई हमारे रिश्तेदार नहीं बन जायेंगे, यह कोई हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत शादी नहीं होने जा रही जिसमें तलाक़ मुश्किल है, कोई सात जन्मों का, जन्म-जन्मान्तर का बंधन नहीं बंधने जा रहा. नहीं, मात्र तीन साल बाद चुनाव फिर होंगे. नहीं काम करेंगे तो इनको भी धक्का दे दीजियेगा. लेकिन अभी आपके वोट पर सिर्फ हक़ आम आदमी पार्टी का है, और किसी का नहीं.

सुनने के लिए धन्यवाद...फिर से नमस्कार...मैं तुषार

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