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Showing posts from January, 2017
Sherlock Holmes, "Why can't people think?"
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हैरान हैं शेरेलोक होल्म्स! हैरान हैं कि लोग सोच क्यूँ नहीं पाते! सोच मतलब तार्किक, अर्थपूर्ण, वैज्ञानिक सोच. जवाब यह है कि सोच अपने ही खिलाफ लड़ाई होती है. युद्ध. जो करे खुद से खुद. अपने ही बने-बनाए, घड़े-घड़ाए विचारों, मान्यताओं के खिलाफ़ जंग. जंग लगे विचारों के खिलाफ जंग. और अधिकांश लोग डरते हैं कि इस जंग में कुछ खो न दें. जबकि खोने को कुछ भी नहीं सिवा मूर्खता के और जीतने को जीवन से भरपूर जीवन है. डर के आगे जीत है. लेकिन डर के आगे हथियार डाल देते हैं अधिकांश लोग. बाहरी प्रतिमाएं तोड़ना आसान है, लेकिन आन्तरिक प्रतिमा तोड़ना बेहद मुश्किल. इसीलिए सोच नहीं पाते और इसीलिए कभी जीत पाते नहीं. इन्सान की तरह पैदा होते हैं,रोबोट में तब्दील कर दिए जाते हैं और रोबोट की तरह मर जाते हैं.
काटजू साहेब की मूर्खता के चंद नमूने
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मार्कंडेय काटजू नब्बे प्रतिशत से ज़्यादा भारतीयों को मूर्ख कहते हैं. मैं सहमत हूँ उनसे शत-प्रतिशत. बस एक बात है. उन मूर्खों में काटजू साहेब को भी शामिल करता हूँ. पहली मिसाल देता हूँ उनकी मूर्खता की. हाल-फिलहाल सौम्या मर्डर केस में कोर्ट की जजमेंट पर टिप्पणी करने के लिए बेशर्त माफी माँगनी पड़ी उनको. दूसरी मिसाल. वो समझते हैं कि पाकिस्तान और बांगला-देश भारत के साथ दुबारा मिल जायेंगे. मेरे से लिखवा लो, ग्र्र्रर...बल्कि मैं लिख ही रहा हूँ, ये दोनों मुल्क तैयार हो भी जाएं, आज भारतीय खुद इनके साथ जुड़ना पसंद नहीं करेंगे. और यदि एक करना ही है तो पूरी दुनिया को एक करने की कोशिश क्यूँ की न जाए? दुनिया वैसे भी एक ही है. लकीरें इंसानी बेफकूफियों ने ही तो डाली हैं. उस दिशा में काम क्यूँ न किया जाए? यह आधा-अधूरा क्यूँ सोचना? तीसरा मिसाल. जनवरी सोलह, दो हजार सत्रह को लिखा उन्होंने, "My prediction about the forthcoming Punjab Assembly elections is based on reason, not emotion. If Punjab elections had been held an year back, AAP would have got a majority. But in the past year its ima...
प्रॉपर्टी आपकी दुश्मन है
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प्रोपर्टी के धंधे में हूँ बरसों से और मेरी समझ है कि तकरीबन सब इंसानी बीमारियों की वजह प्रॉपर्टी का कांसेप्ट है. कहावत भी है. ज़र, जोरू और ज़मीन झगड़े की जड़ होती हैं. थोड़ा गहरे में ले जाने का प्रयास करता हूँ. पहले तो जो भी व्यक्ति इस पृथ्वी पर आ जाए उसे बेसिक ज़रूरतें हर हाल में मिलें यह समाज का फर्ज़ होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं है तो वो समाज अभी संस्कृत नहीं हुआ. और आप लाख कहते हों कि हमारी संस्कृति महान है, लेकिन अभी संस्कृति का क-ख-ग भी नहीं पढ़ा इंसान ने. जिस कृति में बैलेंस न हो, संतुलन न हो, वो कैसी संस्कृति? एक तरफ़ लोग महलों जैसी कोठियों में रहें और दूसरी तरफ़ कोठड़ी भी न मिले, इसे आप संस्कृति कहना चाहते हैं, कह लीजिये, मैं तो विकृति ही कहूँगा. हम सब धरती के वासी हैं, लेकिन विडम्बना यह है कि हम में से बहुत के पास धरती का सर छुपाने लायक टुकड़ा भी नहीं जिसे वो अपना कह सकें. अपने ही ग्रह पर हमारे पास गृह नहीं है. कैसे कहें कि पृथ्वी हमारा घर है? कहा यह गया है आज तक कि रोटी, कपड़ा और मकान ही बेसिक ज़रूरतें हैं, लेकिन अधूरी बात है यह. इन्सान को रोटी, कपड़ा, मकान के साथ ही प्यार, सम्मा...
An example is an example is an example is an example, just to exeplify the point, hence do not go on fucking it up.
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A pointer is meant to show you the point and if you miss the point and catch the pointer, what is the point in showing you the point?
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"अम्मीजान कहतीं थीं, धंधा कोई छोटा नहीं होता"
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शाहरुख़ खान फरमाते हैं, अपनी ताज़ा-तरीन फिल्म 'रईस' में, "अम्मीजान कहतीं थीं, धंधा कोई छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता." तो ठीक, स्मगलिंग हो चाहे गैंग-बाज़ी, धंधा कोई छोटा नहीं होता, खोटा नहीं होता. जाएँ और 'रईस' फिल्म देखें. फिल्म बनाना, एक्टिंग करना उसका धंधा है और धंधे से बड़ा कोई धर्म-ईमान होता नहीं, तो वो एक टैक्सी चलाने वाली गुमनाम औरत को भी अपनी फिल्म की प्रोमोशन में शामिल कर लेता है. लेकिन उनसे 'तू'...'तू' करके बात करता है, जबकि वो उसे 'सर', 'सर' कह कर सम्बोधित कर रही हैं. इडियट! तमीज नहीं. अगर वाकई वो टैक्सी ड्राईवर न होकर कोई बड़ी तुख्म चीज़ होतीं तो फिर करके दिखाता....'तू...तू'. हू--तू---तू ...न करा देतीं तो. वो 'तू' इसीलिए निकल रहा है मुंह से कि उन्हें छोटी औरत समझ रहा है. उनके धंधे को छोटा समझ रहा है. एक और प्रमोशनल वीडियो में श्रीमान शाहरुख़ बताते हैं कि रईस कौन है. उनके मुताबिक रईस कोई पैसे वाला नहीं है, वो सब रईस हैं, जो खुश हैं, जिंदा-दिल हैं, कुछ-कुछ ऐसा. ठीक है, मैं सहमत...
Foolish Quote-- Never argue with a fool. Someone watching may not be able to tell the difference.
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हरेक को अपना धरम, धरम लगता है, दूजे का भरम लगता है. संघी को सिखाया गया है कि हिंदुत्व जीवन-पद्धति है और इस्लाम मात्र पूजा-पद्धति. जबकि इस्लाम खुद को दीन कहता है, पूरा जीवन दर्शन. और वो है भी. और हिंदुत्व नाम की कोई चीज़ है नहीं. बांधते रहो शब्दों में, वो सब आपके अपने प्रोजेक्शन हैं. हिंदुत्व तो अपने आप में कुछ है ही नहीं.
ज्ञान के विभिन्न पहलु
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वेद मतलब ज्ञान...विदित होना. लेकिन वेदना शब्द भी वेद से आता है. Ignorance is bliss. अज्ञान वरदान है. चूँकि जैसे-जैसे जीवन में आपकी जानकारी बढ़ती है, वैसे-वैसे चिंता भी बढ़ती है. चिंतन बढ़ता है तो चिंता भी बढ़ती जाती है. ऐसा न हो जाए, वैसा न हो जाए. ये गलत न हो जाए, वो गलत न हो जाए. वेद वेदना बन जाता है. लेकिन इस दुविधा के बावजूद, चिंता के बावज़ूद ज्ञान ही इन्सान को चिंता-मुक्त करने की क्षमता रखता है. या यूँ कहें कि कम परेशानियों वाला, कम चिंताओं वाला जीवन दे सकता है, सो वेद सम्मान का विषय है. Knowledge sets you free. बहुत बार हमें कुछ नहीं पता होता और यह भी नहीं पता होता कि हमें नहीं पता. जैसे किसी वनवासी, जो स्कूल नहीं गया, जिसने किताब नहीं देखी, जिसने पेन-पेंसिल नहीं देखी, उसे नहीं पता कि पढ़ना-लिखना भी कुछ होता है. जब तक उसे स्कूल आदि नहीं दिखायेंगे उसे यह तक नहीं पता लगेगा कि उसे नहीं पता कि पढ़ाई भी कुछ होती है. इसे कहते हैं अंग्रेज़ी में,"You don't know and you don't know that you don't know." बहुत बार हमें नहीं पता होता, लेकिन यह पता होता है क...
लिबरल इस्लाम माने क्या?
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लिबरल इस्लाम नाम की कोई चीज़ नहीं होती...इस्लाम सिर्फ इस्लाम है....लिबरल या नॉन-लिबरल वाली कोई बात नहीं....जाकिर नायक सही कहता है कि इस्लामिक को यदि कोई फंडामेंटलिस्ट अगर कोई समझता है तो सही समझता है और यह गौरव की बात है....जो फंडामेंट, जो बुनियाद मोहम्मद साहेब ने डाली, उसी पर जीवन की बिल्डिंग खड़ी करना, खड़ी रखना ही तो इस्लाम है. तो इस्लाम लिबरल या नॉन-फंडामेंटलिस्ट हो ही नहीं सकता, हाँ कोई मुसलमान हो सकता है कि ऐसा हो जाए और जब वो ऐसा होता है तो निश्चित ही धर्म-च्युत हो रहा है, बे-ईमान हो रहा है.
I WOULD HAVE GIVEN "PARAMVEER CHAKRA" TO THAT SOLDIER
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That Soldier should be given a Gallantry award. Gallantry is not killing politically-declared-rivals. Gallantry is taking a bold step, standing against the atrocities of the Giants. Gallantry is fighting Goliaths whereas knowing perfectly well that one is just a David's size. Had I been the PM of this country, I would have given him a "Paramveer Chakra".
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Idiocy is always in majority and democracy is the government of the majority. So democracy is the Government of the idiots, for the idiots, by the idiots. While reading 'by the idiots', you might think that I am wrong. Because how could so shrewd, so cunning, so clever politicians be called idiots? But I am sure, I am not wrong. These so called leaders are not wise, they are clever, over-clever but not wise, they are idiots, propelling the whole humanity, the whole earth to commit a collective suicide.
दुनिया कैसे बदलती है
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दुनिया-जहाँ की बकवास करता है राजनेता कि समाज में जो बेहतरी हो रही है उसी की वजह से है. होता विपरीत है. राजनेता ही वजह है कि समाज में जो बेहतरी आ सकती है, वो या तो आती नहीं या बरसों, दशकों लटक जाती है. अभी ज़्यादा पुरानी बात नहीं है, कंप्यूटर शिक्षा का विरोध कर रहे थे बिहार के बड़े नेता. एक पुल बन कर तैयार होता है, उद्घाटन नेता कर आता है. न तो पैसा नेता का है, न पुल बनाने की तकनीक नेता की है. और जो पुल दस साल पहले बनना चाहिए था, वो आज उद्घाटित हो रहा है, उस देरी की जो कु-ख्याति नेता को मिलनी चाहिए थी, उसकी बजाए नेता सारा श्रेय अपनी झोली में डाल लेता है. बिजली का आविष्कार हुए सालों हो गए, आज तक बहुत से गाँवों में बल्ब नहीं जला . यह है राजनेता की मेहनत का फल. वो बीच में न होता तो यह काम कब का हो चुकता. असल में तो तुरत हो जाना चाहिए था. खैर, एक मिसाल देता हूँ भविष्य की. एक छोटी दिखने वाली इन्वेंशन कैसे दुनिया बदल सकती है, समझ आना चाहिए. आपको पता ही होगा हाइब्रिड का...
Bold मतलब क्या?
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सोशल मीडिया पर माँ-बहन की गालियों से हर पोस्ट को अलंकृत करना बोल्ड हो गया है. अरविन्द को 'अरविन्द भोसड़ी-वाल' और मोदी समर्थकों को 'मोदड़ी के' लिखना गर्व का विषय माना जाने लगा है. Jolly LLB फिल्म का एक गाना है, "मेरे तो L लग गए......" बप्पी लाहिड़ी साहेब ने गाया है. L मतलब लौड़े. जब इत्ता गा दिया था, यह भी गा ही देना था. सनी देओल की फिल्म है 'मोहल्ला अस्सी'. बैन है वैसे तो लेकिन देख ली मैंने. इस फिल्म में एक डायलाग प्रसाद की तरह बंटता है. और वो है, "भोसड़ी के." 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' जैसी घटिया फिल्म एक कल्ट फिल्म बन जाती है, चूँकि उसमें गालियों की भरमार है."कह के लेंगे." क्या लेंगे? मन्दिर का प्रसाद? नहीं. वो ही जानें, जिन्होंने यह डायलॉग लिखा. वैसे 'मादर-चोद' शब्द लंगर की तरह बंटा है फिल्म में. यू-ट्यूब पर कुछ सीरीज इस लिए मशहूर हो रही हैं कि बनाने वाले नंगी गालियाँ दिखाने की हिमाकत कर रहे हैं. एक छोटी लड़की है मल्लिका. उसके विडियो में आखिरी टैग-लाइन मालूम है क्या है? "भाग भोसड़ी के." AIB एक मशहूर you...
'आर्ट्स' की वापिसी
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दसवीं में स्कूल में टॉप किया था मैंने और अंग्रेज़ी में तो शायद पूरी स्टेट में. कुछ ख़ास नहीं आती थी लेकिन अंधों में काना राजा वाली स्थिति रही होगी. सबको उम्मीद थी कि मैं मेडिकल में या नॉन-मेडिकल में जाऊंगा. नॉन - मेडिकल में इंजीनियर बनते थे और मेडिकल में डॉक्टर. लेकिन मुझे तो न डॉक्टर बनना था और न ही इंजीनियर. मैं अपनी ज़िन्दगी के चार-पांच साल वो सब पढ़ने में नहीं लगाना चाहता था जो मैं पढ़ना नहीं चाहता था. मुझे साहित्य और फिलिसोफी और साइकोलॉजी, ऐसे विषयों में रूचि थी. खैर, आर्ट्स में आ गया. मात्र दो महीने पढ़ के प्रथम डिविज़न से पास होता रहा. बाकी समय लाइब्रेरी और रीडिंग सेंटर के नाम. जो पढ़ सकता था, पढ़ गया उन सालों में. खैर, उन दिनों आर्ट्स में वो छात्र जाते थे, जो परले दर्जे के निकम्मे माने जाते थे. जिनके बस का कुछ नहीं था. आर्ट्स के विद्यार्थिओं के करियर की अर्थी निकल चुकी मानी जाती थी. स्थिति आज भी कुछ बदली नहीं है. आज भी डॉक्टरी, वकालत , चार्टर्ड-अकाउंटेंसी की पढ़ाई करने वाले ही कीमती माने जाते हैं. और आर्ट्स पढने वाले आवा...
नागरिकता यानि सिटीजनशिप यानि क्या?
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मुझे हमेशा 'नागरिकता' और 'सिटीजन-शिप', ये दोनों शब्द उलझन में डाल देते हैं. जो लोग ग्रामीण होते हैं, वो नागरिक नहीं होते क्या? अंग्रेज़ी में तो 'कंट्री' शब्द ही गाँव के लिए प्रयोग होता है. बहुत पहले हम क्रॉस कंट्री दौड़ लगाया करते थे. तब तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया इस शब्द पर. लेकिन आज मतलब पता है. गाँवों में से दौड़ते हुए जाना. किसी दौर में गाँव ही कंट्री था. मेरा गाँव, मेरा देश. लेकिन फिर नगर बस गए. तो नागरिकता ही राष्ट्रीयता हो गई. सिटीजन-शिप मतलब नेशनलिटी. यहीं लोचा है, हमने नागरिकता को ग्रामीणता से, कस्बाई जीवन से, आदिवासी जीवन से, वनवासी जीवन से बेहतर मान रखा है. शहरी-करण बाकी सब तरह के जीवन पर आच्छादित हो गया है. जबकि बहुत मानों में शहरीकरण ही इंसानियत की सब बीमारियों का जनक है. शहरीकरण मात्र जनसंख्या वृद्धि की मजबूरी है. यही वजह है कि जिसे 'कंट्री-शिप' कहना चाहिए उसे हम 'सिटीजन-शिप' कहते हैं. और मेरे लिए तो और भी दिक्कत है. मुझे जब कोई परिचय पूछता है तो खुद को भारत का नागरिक बताते हुए उलझन ...
"नोट-बन्दी से प्रॉपर्टी नहीं होगी सस्ती"
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वहम है कि नोट-बंदी से प्रॉपर्टी सस्ती हो जायेगी. प्रॉपर्टी में हूँ सालों से. कुछ नहीं होगा. लोग रेट कम कर ही नहीं रहे. कौन अपनी करोड़ों रुपये की जायदाद रातों-रात आधी कीमत पर बेचने को राज़ी होगा? जिसकी कोई ज़बरदस्त ज़रूरत हो तो बेच भी जाए, लेकिन ऐसे लोग तो पहले भी औने -पौने में बेच जाते थे. बावज़ूद उसके बगल वाली प्रॉपर्टी उससे सवाये रेट पर बिकती थी. बगल वाली क्या उसी प्रॉपर्टी को खरीदने वाला सवाई ढेड़ गुणा कीमत पर बेच जाता था. सो अभी लोग इंतज़ार करेंगे. कौन जाने अढाई साल बाद सरकार बदल जाए. नई पालिसी आ जाए. और खरीदने वाले को भी कैसे कुछ सस्ता मिलेगा? वो अगर एक करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी को तीस लाख रुपये में दिखाता था तो आज उसे अगर वही प्रॉपर्टी सत्तर लाख रुपये में मिल भी जाए तो जो चालीस लाख रुपये वो पहले से ज़्यादा वाइट में दिखा रहा है उस पर टैक्स नहीं भरेगा क्या? कोई खास फर्क नहीं है खरीदने वाले को. वो पहले सारा धन बेचने वाले को देता था, अब अगर बेचने वाले को थोड़ा कम दिया भी तो जितना कम देगा, उससे कहीं ज़्यादा सरकार को टैक्स देना होगा. सो नतीजा निल-बटा-सन्नाटा. ...
खुद की जय करें. बेबाक.
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आपको बता दिया गया कि खुद की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए. अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनना. और आप अपना गुण बताना गुनाह मानने लगे. बात काफी कुछ सही है, खुद को हर कोई तीस क्या, तीस करोड़-मारखां ही समझता है. लेकिन एक पहलु और भी है. हम अक्सर अपनी वो क्वालिटी भी प्रदर्शित करने में या कहने में झिझकने लगते हैं जो कि वाकई हम में हैं, इस डर से कि हमें घमंडी न मान लिया जाए. मेरा मानना यह है कि पहले एक तृतीय व्यक्ति की तरह, थर्ड परसन की तरह की खुद के गुण-अवगुण आंकें. निष्पक्ष अवलोकन. है तो मुश्किल, लगभग असम्भव, लेकिन फिर भी कोशिश करें. और फिर अगर खुद में कुछ भी काबिल-ए-तारीफ़ पाएं तो उसे बताने में, कहने में मत चुकें. समझने दें, जिसे जो समझना हो. दूसरों की जय से पहले, खुद की जय करें. बेबाक़. चैलेंज करे कोई तो अपना पक्ष मजबूती से रखें. That-is-it. सिखाया तो यह भी गया था कि सदा सच बोलें लेकिन भगत सिंह से अंग्रेज़ों ने साथियों का पता पूछा हो तो सच बोलना चाहिए उनको? बचपन में बहुत कुछ अंट-शंट सिखाया गया है. मौका है सफाई का. झाड़-झखाड-उखाड़ का. मेरे साथ रहें, खुददे काफी कुछ उड़ जाएगा, ...
8 Shortest stories, with beautiful meanings----Whats-app Gyan
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(1) Those who had coins, enjoyed in the rain. Those who had notes, were busy looking for shelter. (2) Man and God both met somewhere, Both exclaimed ... "My creator" (3) He asked are you-"Hindu or Muslim" Response came- I am hungry (4) The fool didn't know it was impossible. ... So he did it. (5) "Wrong number", Said a familiar voice. (6) What if, God asks you after you die .... "So how was heaven??" (7) "They told me that to make her fall in love I had to make her laugh. But every time she laughs, I am the one who falls in love." (8) We don't make friends anymore, We Add them nowadays.
हम उस देश के वासी हैं
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हम उस देश के वासी हैं, जहाँ सड़क ही स्पीड-ब्रेकर का काम करती है. स्पीड-ब्रेकर नहीं गाड़ी-ब्रेकर का काम भी करती है. हम उस देश के वासी हैं, जिसमें कुछ भी नहीं बासी है. यहाँ तो हर साल रामलीला भी नए ढंग से पेश की जाती है. हम उस देश के वासी हैं, जिसके वासी इतने धार्मिक हैं कि सड़कों पर ही नमाज़ पढ़ते हैं, लंगर चलाते हैं, शोभा-यात्राएं निकालते हैं और हर आने-जाने वाले को धार्मिक रंग में रंगने का मौका देते हैं. हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है, इतनी पवित्र कि हज़ारों गंदे नाले भी उसमें गिर कर पवित्र हो जाते हैं. बाकी आप जोडें ...............
इन्सान सबसे ज़्यादा बुद्धिमान प्राणी समझा जाता है. है क्या?
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शर्लाक होल्म्स जिस समय में दिखाए गए हैं , लन्दन की सड़कों पर घुड-गाड़ियाँ चलतीं थी. बग्घियां. समस्या एक ही रहती थी. सड़कों पर लीद ही लीद हो जाया करती. फिर कार, स्कूटर आदि इन्वेंट हो गए. लोगों ने सुख की सांस ली. लेकिन जल्द ही अगली समस्या आ गई. सब तरफ वायु प्रदूषण फैलने लगा. दिल्ली में गाँव अधिकांश हरियाणा के जाटों के हैं. जाट हैं या कौन हैं मालूम नहीं, लेकिन कहते सब खुद को जाट हैं. मैं तो नहीं मानता जात-पात-जाट-पाट को लेकिन अगले मानते हैं. बड़ा दबदबा है इनका. कोई चूं नहीं कर पाता इनके इलाकों में. किरायेदार इनके नाम से ही मकान-दूकान खाली कर जाते हैं. इनसे लिया कर्ज़ा कोई मार नहीं सकता. लेकिन दबदबे का एक नुक्सान भी है इनको. इनके इलाकों में ज़मीन की कीमत कभी उतनी नहीं रहती जितनी होनी चाहिए. जल्दी से कोई बाहर का व्यक्ति इन गाँवों में प्रॉपर्टी लेना पसंद नहीं करता. ट्रैफिक जाम जानते हैं कैसे होते हैं? सयाने लोग अपनी साइड छोड़ सामने से आने वाले वाहनों की साइड में चलने लगते हैं. ज़्यादा सयाने हैं न. बेवकूफ तो वो होते हैं जो अपन...
“इस्लाम के खतरे और इलाज”
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इस्लाम का पर्दाफ़ाश ज़रूरी है . लेकिन यह नहीं लगना चाहिए कि हम हिन्दू या किसी भी और बेवकूफी के तरफ़दार हैं. लगना क्या हम किसी भी और बेवकूफी के समर्थक होने ही नहीं चाहिए, चाहे कितनी भी पवित्र समझी जाती हो. A Holy-shit is shittier than any other shit. चर्च ने भी बहुत निर्दोष मरवाए , लेकिन वो दौर खत्म हो चुका. वहां सुधार की लहर चली , और चर्च को सरकार से अलग किया गया. यहाँ भारत में भी सैद्धांतिक रूप से धर्म और सरकार अलग हैं लेकिन असल में मन्दिर , मस्ज़िद, गुरुद्वारा ही सरकार में हैं. मुस्लिम अक्सर कहते हैं कि इस्लामिक आतंकवाद के फैलने में मुख्य हाथ अमेरिका का है..... इससे मैं असहमत हूँ. इस्लाम तो शुरू ही तलवार के जोर से हुआ. और अमेरिका की बेवकूफी है निश्चित ही जो कुछ पंगे लिए.......लेकिन इस्लाम के पास पेट्रो-डॉलर की ताकत बढ़ते ही उसने यूरोप को नचा दिया और अमेरिका को नचाने पर आमदा है. इस्लामिक जो सारा दोष अमेरिका पर देते हैं , वो बकवास है. अमेरिका के दखल से पहले और बाद---दुनिया का इतिहास कुछ और बताता है. और वो कुछ और यह है कि इस्लाम दुनिया की सबसे खतरनाक सिद्धांतों में स...
Tushar – Generating AIDS Awareness
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https://staroftheday.wordpress.com/2009/06/04/tushar-generating-aids-awareness/ Dubbed as the most deadly ailment human body has ever fought, scientists have been running a race against time for years now to find a cure to the deadly human immunodeficiency virus (HIV) that causes acquired immunodeficiency syndrome (AIDS). The manners in which this lethal virus can infect (sexual intercourse, use of infected needles, saliva and vaginal secretion of infected individuals and from HIV-infected mother to baby) makes the human body more vulnerable to it. This – coupled with the fact that there is no cure yet available – has woken up the world to generate more and more awareness to prevent this fatal disease from spreading. Unfortunately, India is still fighting hard to do that, thanks to the increasing poverty and relatively low literacy levels. However, our “Star of the Day’ today is doing every bit to do that in a manner that is unique in itself but well thought out and can do wonder...