जिगर मुरादाबादी के शब्द हैं जो राज कुमार के होठों पर आ कर अमर हो गए. "ज़माना हम से है, हम जमाने से नहीं."
जब आप फैशन की दुनिया में कदम रखते हैं तो यहाँ आप बस जमाने के कदम-ताल से कदम मिलाने को ही प्रयास-रत रहते हैं. हम ज़माने से हैं, ज़माना हम से नहीं. जिस्म पर क्या जमेगा, इसकी परवा नहीं करते, 'इन' 'आउट' की परवा करते हैं बस. कहाँ 'इन' है, क्या 'इन' है, किसके 'इन' है, और अगर कुछ 'इन' है भी तो आप भी उसे 'इन' करें, यह मुझे आज तक समझ नहीं आया.
अभी कपूरथला में इंगेजमेंट का आयोजन था. किसी से बात कर रह था, "ब्याह शादी पर ये जो अचकन, चूड़ी-दार पायजामे पहनते हो, क्यूँ?"
कारण उसे नहीं पता था.
मैंने कहा, "शायद सब पहनते हैं, इसलिए तुम भी पहनते हो."
उसने कहा, "नहीं, मुझे यह सब पहनना अच्छा लगता है."
मैंने कहा कि उसे अच्छा क्या इसलिए नहीं लगता कि सबको अच्छा लगता है.
अब वो कुछ गोता खा गया.
ईमानदार लड़का था, वरना साफ़ मुकर जाता कि नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था.
मुझ से कोई पूछ रहा था कि वकील गर्मी में काला कोट और काला गाउन सा क्यूँ पहनते हैं?
मैंने कहा, "कोई वजह जैसी वजह समझ नहीं आती. सब अज़ीब है. जब कोई डिग्री लेता है, तो अज़ीब सी टोपी और अज़ीब सा गाउन पहनता है. मुझे इन सब में से किसी के पीछे कोई तार्किकता नज़र नहीं आती."
देवी शकीरा पहले ही कह चुकी हैं. हिप्स झूठ नहीं बोलते. हिप्स क्या शरीर का कोई भी अंग-प्रत्यंग झूठ नहीं बोलता. तभी तो स्किन टाइट कपड़े पहने जाते हैं. कपड़ों में भी शरीर दिखाने की चाह. नग्न होने की चाह. हिप्स झूठ नहीं बोलते, चाहे शकीरा के हों, चाहे किसी के भी हों.
अमेरिकी कैदी अपने पायजामे नीचे सरका देते थे, ताकि बिन बोले ही देखने वाले समझ जाएँ कि उनकी सहमति है सेक्स सहभागिता में. अब आज के नौजवान और नौजवानियाँ जॉकी का कच्छा दिखाते हुए नीचे सरकी अपनी पतलून से क्या मेसेज देना चाहते हैं, वो ही जानें, बस गुज़ारिश इतनी सी है कि शकीरा जी के शर्करा शब्द याद रखें.
रवीश कुमार को मैं काफी संजीदा टीवी एंकर मानता हूँ...पर जनाब तपती गर्मी में कोट पहने टाई लगाये समाचारों पर समीक्षा प्रस्तुत कर रहे थे............कहीं तो सोच में गड़बड़ है
कपड़े तक पहनने में लोग अंध-विश्वासी हैं...न सिर्फ अनपढ़, कम पढ़े लिखे बल्कि ठीक ठाक पढ़े लिखे लोग भी.
अब कोट, टाई पहना व्यक्ति ही संजीदा लगेगा, सभ्य लगेगा, यह अंध विश्वास नहीं तो क्या है
मेरा धंधा है कपड़े का, कौन सा कपड़ा Casual है, कौन सा Formal, सब अंध विश्वास है
आदमी मरे मरे रंग पहने, औरत चटकीले रंग, यह अंध विश्वास है
बुजुर्ग हैं तो मरे-मरे रंग पहने, यह अंध विश्वास है
ऊँची एड़ी वाली स्त्री अच्छी दिखती हैं, यह अन्धविश्वास है....चीन में तो स्त्री के छोटे पैर सुन्दर दीखते हैं, इसका इतना जबरदस्त अंध विश्वास था कि बच्चियों को इतनी छोटे लोहे के जूते पहनाये जाते थे कि उनका बाकी शरीर तो बढ़ जाता था लेकिन पैर छोटे रह जाते थे, इतने छोटे कि वो अपाहिज हो जातीं थी.....हमेशा के लिए....अभी भी शायद एक आध औरत उन बदकिस्मत औरतों में से जीवित हो.
मैं मुक्त हूँ, उन्मुक्त हूँ, लम्बे बाल रखता हूँ. स्त्रियों जैसे. तंग पतलून के साथ कुरता पहनता हूँ और गले में रंग-बिरंग रेशमी वस्त्र. 'अजीबो-अमीर' लुक्स. "बोहेमियन" लुक्स. आप मुझे एक बार मिलेंगे तो कभी नहीं भूलेंगे.
खैर, अगली बार जब आप कपडे पहने तो ध्यान रखें कि आप कहीं पिछलग्गू तो नहीं.
ध्यान रखें कि आप एक के पीछे एक चलने वाली भेड़ तो नहीं.
ध्यान रखें कि ज़माना आप से है, या आप जमाने से हैं.
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