इलेक्शन आते हैं, अँधा पैसा खर्च होता है.
झंडे, डंडे, सूरज, तारे, नारे, सब घुमा दिए जाते हैं. गली...गली..घर घर.
जब तक सूरज चंद रहेगा.....@#$%& तेरा नाम रहेगा.
"हर हर महादेव" तब्दील हो कर "हर हर मोदी, घर घर मोदी" बन जाते हैं और कोई हिन्दू मठाधीश ने इस पर ऐतराज़ नहीं उठाता!
जिसे सारी उम्र आपने नहीं देखा, जिसकी किसी उपलब्धि को आप नहीं जानते, उसका चेहरा आप अपने चेहरे से ज़्यादा बार देख चुके होते हैं इलेक्शन के चंद दिनों में.
जनतंत्र धनतंत्र में बदल गया, सबको पता है.
चुनाव काबलियत से कम और पैसे से ज़्यादा जीता जाता है, सबको पता है.
घूम-फिर कर संसद में राजे, महाराजे, और अमीर पहुँच जाते हैं, सबको पता है.
इसे जनतंत्र कहते हैं? यह जनतंत्र के नाम पर एक बहूदी बे-वस्था है, जिसे जनतंत्र होने का गुमान बहुत है. जब भी सुनता हूँ "भारत दुनिया का सबसे बड़ा जनतंत्र है" तो समझ नहीं आता कि हंसू कि रोऊँ. कॉर्पोरेट मनी का नंगा नाच है यह तथा-कथित जनतंत्र.
कुछ भी कहो इसे यार, लेकिन जनतंत्र मत कहना, मुझे मितली सी आती है. "यहाँ शुद्ध भोजन मिलता है", ऐसा बोर्ड लगाने से मक्खियों से भिनभिनाता ढाबा शुद्ध-बुद्ध हो जाता है क्या? बोर्ड. बोर्ड से भ्रमित होते हैं लोग. बोर्ड बढ़िया होना चाहिए.
इस गलगली सी, लिजलिजी सी बे-वस्था पर एक बहुत बढ़िया बोर्ड टांग दिया गया है. जनतंत्र. प्रजातंत्र. जन खुश है कि उसका तन्त्र है. प्रजा खुश है कि उसका तन्त्र है. जनता का तन्त्र. लानत!
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